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डर इसे कहते हैं

डर इसे कहते हैं

by मुकेश गुप्ता
in जनवरी २०२० - आप क्या चाहते हैं?, सामाजिक
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असली डर किसे कहते है और डर का माहौल क्या होता है ? इसे जानने के लिए वर्तमान समय में श्रीलंका सबसे बेहतर उदाहरण है। श्रीलंका की सत्ता में आते ही राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे साम, दाम, दंड, भेद की नीति का पालन करते हुए खुलेआम अपने विरोधियों का सफाया कर रहे है।

हाल ही में श्रीलंका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में टर्मिनेटर कहे जाने वाले गोटबाया राजपक्षे बहुमतों से जीत हासिल कर राष्ट्रपति बने हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी सत्तारूढ़ पार्टी के सजीत प्रेमदास को 13 लाख से अधिक मतों से पराजित किया। चुनाव में उन्हें 52.25 फीसदी वोट मिले तथा उनके प्रतिद्वंदी प्रेमदास को केवल 42 फीसदी वोट मिले। राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक और श्रीलंका के नायक माने जाने वाले गोटबाया राजपक्षे की विराट विजय अपने आप में बहुत कुछ कहती है। उनके विजय में ही अनकही सच्चाई छुपी हुई है। भारत की दृष्टी से भी इसे समझना बेहद जरुरी है और लाभप्रद भी है।

श्रीलंका में राष्ट्रविरोधी ताकतें भयभीत

जैसे ही श्रीलंका के राष्ट्रपति पद पर गोटबाया राजपक्षे आसीन हुए वैसे ही राष्ट्रविरोधी ताकते देश छोड़ कर भागने की तैयारी करने लगे। इसकी भनक लगते ही गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें चिन्हित कर लगभग 700 लोगों को देश के बाहर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। जिससे राष्ट्रविरोधी ताकते और अधिक भयभीत हो गई है। उन सभी के हाथ – पैर ठन्डे हो गए है। आख़िरकार गोटबाया राजपक्षे से राष्ट्रविरोधी ताकते इतना डर क्यों रही है ? इसकी असली वजह क्या है ? आइये जानते है गोटबाया राजपक्षे के बारे में…

टर्मिनेटर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे

एक दशक पूर्व जब श्रीलंका में लिट्टे का आंतक अपने चरम पर था और उसकी आतंकी गतिविधियां जगजाहिर थी। आतंकी हथियारों के बल पर श्रीलंका के एक बड़े भूभाग पर कब्ज़ा कर अलग देश की मांग कर रहे थे। तब महिंद्रा राजपक्षे ने लिट्टे के खिलाफ आर – पार की जंग का ऐलान कर सैन्य ऑपरेशन शुरू किया। लिट्टे और श्रीलंका के बिच बहुत लम्बे समय तक युद्ध चला। उस समय रक्षा मंत्री थे गोटबाया राजपक्षे। उन्होंने लिट्टे नामक आतंकवाद के समूल नाश का संकल्प लिया और देश के सबसे घातक सैन्य दस्ते का इस्तेमाल कर निर्ममता से आतंकियों का सफाया शुरू किया। बताया जाता है कि इस ऑपरेशन के अंतिम निर्णायक समय पर लगभग 40 हजार आतंकियों का नरसंहार किया गया था। इसके बाद लिट्टे का श्रीलंका की धरती से सम्पूर्ण सफाया हो गया और श्रीलंका आतंकवाद से मुक्त हुआ। आतंकवाद के समूल नाश करने के कारण श्रीलंका में गोटबाया राजपक्षे एक सशक्त लीडर के रूप में उभरे और उन्हें लौहपुरुष माना जाने लगा। तब से ही उन्हें श्रीलंका में टर्मिनेटर कहा जाने लगा। उनका परिवार भी उन्हें टर्मिनेटर ही कहता है। उनकी इस उपलब्धि और सशक्त छवि के चलते श्रीलंकाई राष्ट्रवादी समाज उन्हें उम्मीद भरी नजरों से देखता है और वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रविरोधी तत्व उनसे डरे सहमे से रहते है।

श्रीलंका में नहीं चल सकती राष्ट्रविरोधी गतिविधियां

भारत में जिस तरह खुलेआम टुकड़े – टुकड़े गैंग, असहिष्णुता गैंग, अवार्ड वापसी गैंग, जिहादी आतंकवादी, अलगाववादी, स्लीपर सेल, अर्बन नक्सली, माओवादी आदि राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चलाते है और इसाई मिशनरी धर्मांतरण जैसा देशविरोधी कृत्य करती है। उस तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधियां अब श्रीलंका में नहीं चल सकती। राष्ट्रपति बने गोटबाया राजपक्षे की कठोर छवि और रणनीति इतनी प्रभावशाली है कि उनसे कोई बच नहीं सकता। वह किसी के दबाव में आकर काम नहीं करते। प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे और गोटबाया राजपक्षे दोनों ही सगे भाई है। दोनों ही राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक और आक्रामक नेता माने जाते है।

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी नहीं किया जा सकता

आये दिन भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हो – हल्ला मचाया जाता है। यहां तक की देश के प्रधानमंत्री तक को गलियां दी जाती है। अभिव्यक्ति की आड़ में जेएनयू जैसे यूनिवर्सिटी में भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर मांगे आजादी, हम ले कर रहेंगे आजादी, कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा, आदि अनेक राष्ट्रविरोधी नारे लगाये जाते है। उन लोगों का मीडिया में महिमा मंडन किया जाता  है। मानवाधिकार, एनजीओ एवं अन्य संगठनों का नेक्सस मिलकर देश की चुनी हुई सरकार को टारगेट करता है। और सरकार के साथ ही देश को बदनाम करने के लिए एजेंडे के तहत षड्यंत्रपूर्वक काम करता है। लेकिन याद रखे इस तरह की राष्ट्र विरोधी अभिव्यक्ति की आजादी दुनिया के किसी भी देश में नहीं है और श्रीलंका में तो बिलकुल ही नहीं है। भारत में कुछ ज्यादा ही छुट मिली हुई है इसलिए अराजक तत्व अभिव्यक्ति की आजादी का दुरूपयोग कर रहे है। ऐसे ही हरकते यदि हमारे पड़ोशी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, म्यांमार, और श्रीलंका में की गई होती तो विरोधियों का नामोनिशान मिट जाता। अब समय आ गया है कि भारत सरकार भी इन मामलों को गंभीरता से ले व सख्त कदम उठाये और राष्ट्रविरोधी तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करें ताकि भारत की धरती पर सदियों – सदियों तक जिन्ना – जयचंद जैसा कोई गद्दार पैदा न हो।

डर इसे कहते है

अभी हाल ही में उद्योगपति राहुल बजाज ने एक कार्यक्रम के दौरान गृहमंत्री अमित शाह से सवाल पुछा कि देश में डर का माहौल है। ये जो डर है उसके बारे में कोई बोलेगा नहीं, माहौल बदलना पड़ेगा। यूपीए शाशन काल में हम किसी को भी गालियां दे सकते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। इसके जवाब में अमित शाह ने कहा कि आपके पूछने के बाद अब कोई नहीं मानेगा की कोई डरता है। कुछ लोगों ने ये हव्वा बनाया है। किसी को भी डरने की जरुरत नहीं है। नरेन्द्र मोदी और हमारी सरकार पर अखबारों व मीडिया ने बहुत कुछ लिखा और बोला है। आज भी धड़ल्ले से लिख रहे है। सबसे ज्यादा यदि किसी के खिलाफ लिखा और बोला गया है तो वह हमारे खिलाफ ही है। जैसा कि आप बोल रहे है तो सरकार माहौल बदलने का प्रयास करेगी। मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि किसी को भी डरने की जरुरत नहीं है। सब लोग संसद में भी बोलते है। सभी प्लेटफार्म पर बोलते है और सोशल मीडिया पर भी खुल कर बोलते है।

असली डर किसे कहते है और डर का माहौल क्या होता है ? इसे जानने के लिए वर्तमान समय में श्रीलंका सबसे बेहतर उदाहरण है। श्रीलंका की सत्ता में आते ही राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे साम, दाम, दंड, भेद की नीति का पालन करते हुए खुलेआम अपने विरोधियों का सफाया कर रहे है। उनका या उनकी सरकार का विरोध करने वालों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। विरोधी राजनीतिक पार्टियों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। बताया जाता है कि जो लोग उनके खिलाफ खबरे छापते है, जो उनकी विचारधारा को स्वीकार नहीं करते, वह सभी लोग खतरे में है। जिन्होंने मानवधिकार की आड़ में विदेशी शक्तियों के इशारे पर गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ मुहीम चलाई थी। उन सभी पत्रकारों, मानवधिकार कार्यकर्ताओं, जाँच अधिकारीयों और सेक्युलर का चोला पहने हुए अराजक तत्त्वों की जान खतरे में है। ऐसे डर के माहौल में यह सभी देश छोड़ कर भागना चाहते है लेकिन वहां के एयरपोर्ट पर अलर्ट जारी किया जा चूका है। ताकि इनमें से कोई भी देश छोड़ कर भाग न सके। वर्तमान समय में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ बोलने का साहस किसी में नहीं है। इसे ही असली डर कहते है और यहीं वास्तविकता में डर का माहौल होता है।

 

मुकेश गुप्ता

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