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बचाना ही होगा पर्यावरण

हवा में घुलता जहर

by मनीष मोहन गोरे
in फरवरी 2020 - पर्यावरण समस्या एवं आन्दोलन विशेषांक, सामाजिक
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कारण, प्रभाव और बचावहमारा देश प्रदूषण के मामले में बहुत आगे है जो कि चिंता की बात है। दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 7 शहर भारत के हैं। भारत के इन 7 शहरों में से चार शहर दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के हैं। इस समस्या का अविलम्ब समाधान किया जाना जरूरी है।

जब हम किसी गांव या ऐसी खुली जगह पर जाते हैं, जहां पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में मौजूद हों, वहां की हवा ताजा होती है और वातावरण शुद्ध होता है। सांस लेने में तकलीफ नहीं होती। वहीं अगर दिल्ली जैसे महानगर की बात की जाए तो वहां की आबोहवा में हमें घुटन महसूस होती है। इस घुटन भरे वातावरण के पीछे मुख्य वजह है वायु प्रदूषण। वायुमंडल में हानिकारक और विषैले पदार्थों का लगातार बढ़ना वायु प्रदूषण के अहम कारण हैं।

शहरों की हवा में तेजी से जहर घुलता जा रहा है। बढ़ते जनसंख्या घनत्व और इसके फलस्वरूप वाहनों की बढती संख्या और कल-कारखानों जैसी दूसरी तमाम मानवीय गतिविधियां महानगर के वायुमंडल को दूषित कर रही हैं। हमारे देश में वायु प्रदूषण के तीन मुख्य स्रोत हैं: पहला वाहन, दूसरा उद्योग और तीसरा घरेलू स्रोत जैसे रसोई और घरेलू उपकरणों से निकलने वाला प्रदूषण। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, बेंगलुरु और कानपुर जैसे महानगर वायु प्रदूषण की गंभीर चपेट में हैं।

अनेक प्रकार के प्रदूषण का आंकलन और उनके नियंत्रण की निगरानी करने वाली सरकारी एजेंसी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश में अनेक स्थानों पर मौजूद 24 ऐसे गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की है, जहां पर लगे उद्योग उन स्थानों के वायुमंडल को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। सिंगरौली, कोरबा, वापी, अंकलेश्वर, हावड़ा, दुर्गापुर, मनाली, चेम्बूर, धनबाद, नागडा, रतलाम, तारापुर ऐसे ही कुछ स्थान हैं। यहां लगे उद्योगों में पावर प्लांट, खनन, रासायनिक उद्योग, आयल रिफायनरी, स्टील प्लांट, फर्टिलाइजर उद्योग, थर्मल पावर प्लांट, कागज उद्योग, डिस्टिलरी, टेनरी, फूड प्रोसेसिंग यूनिट और पेट्रोकेमिकल उद्योग वायु प्रदूषण के प्रभाव में इजाफा कर रहे हैं।

शहरों के अलावा गांव भी आज इस वायु प्रदूषण से अछूते नहीं हैं। गांवों में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत घरों में इस्तेमाल होने वाला ईंधन है। गोबर से बने उपले और लकड़ी को ज्यादातर ईंधन के तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जाता है। गांव के घरों में वेंटिलेशन की भी उचित व्यवस्था नहीं होती जिसकी वजह से रसोई से निकला धुंआ घर को प्रदूषित करता है और साथ ही घर में रहने वाले लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाता है।

पराली दहन और स्माग का कहर:

बीते कुछ सालों से सर्दी के आते ही दिल्ली और आसपास के शहर गैस चेम्बर में तब्दील हो जाते हैं। मीडिया के जरिए हम स्माग के बारे में पढ़ते-सुनते आ रहे हैं कि देश के कुछ शहरों में दीवाली के समय या उससे कुछ दिन पहले हवा में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। यह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती है।

गांवों में फसल की पैदावार और उसकी कटाई के बाद फसलों के जो अवशेष बचते हैं, किसान उसके निपटारे के लिए उन्हें खेतों में ही जला देते हैं जिसकी वजह से धुंए का अंबार वायुमंडल में पहुंचता है। ठंड की शुरुआत होने से पहले ही महानगरों के वातावरण में हल्के मटमैले रंग की धुंध नजर आने लगती है। इसकी वजह से कभी-कभी आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ भी होती है। जिस धुंध को हम कोहरा समझने की भूल कर देते हैं, दरअसल वह खतरनाक और जहरीला स्माग होता है। ‘स्माग’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले साल 1900 की शुरुआत में लंदन में किया गया था। यह दो शब्दों से मिलकर बना है स्मोक और फाग यानि जिस कोहरे में प्रदूषण का धूुआ घुला हो, उसे मौसम विज्ञान की भाषा में स्माग कहते हैं। यह पीला या काला कोहरा होता है जो वायु प्रदूषण का एक विशेष प्रकार है। साधारण शब्दों में यह कोहरे, धूल और कई प्रकार की जहरीली गैसों जैसे कि नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर से मिल कर बनता है। दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में स्माग की मुख्य वजह वाहनों से निकला धुंआ और खेतों में पराली का जलाना होता है।

महानगर स्माग के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील स्थान होते हैं, क्योंकि यहां पर ट्रैफिक बहुत होता है और जहां ट्रैफिक है, वहां वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य शहरों की तुलना में ज्यादा होगा ही। महानगरों में वाहनों से निकले धुंए की वजह से यहां वायु प्रदूषण तो हमेशा रहता ही है, लेकिन सवाल यह उठता है कि मटमैली धुंध या स्माग केवल सर्दी आने से पहले और दीवाली के आसपास के दिनों में ही क्यों आसमान में दिखाई देती है। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि सर्दी की शुरुआत में सुबह और शाम के समय वायुमंडल में नन्ही बूंदें लटकती रहती हैं। ट्रैफिक और पराली से उठा धुंआ जब आसमान में ऊपर उठता है तो इन ओस की बूंदों में उलझ जाता है। हवा की गति कम होने से यह धुंआ वायुमंडल से बाहर नहीं निकल पाता। इसकी वजह से हमें आसमान में स्माग या काले रंग की धुंध नजर आने लगती है। जब दीवाली आती है तो उस दौरान होने वाली आतिशबाजी से जो धुंआ निकलता है, वह भी ओस की बूंदों में उलझकर स्माग पैदा करता है। यह केवल भारत की समस्या नहीं है, दुनिया के कई बड़े शहर सर्दी के मौसम में स्माग की चपेट में आ जाते हैं।

स्माग के जिम्मेदार कारक:

स्माग की इस खतरनाक स्थिति के पीछे मुख्य जिम्मेदार है जंगलों का सफाया और पेड़ों की बेतहाशा कटाई। दिल्ली-एनसीआर की अगर बात करें तो यहां दौड़ रहे वाहन हर दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इसके अलावा दूसरे राज्यों से आने वाले लाखों वाहन भी दिल्ली के वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं और यहां रहने वालों की सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। एक आंकड़े के अनुसार दिल्ली की सड़कों पर एक करोड़ से भी ज्यादा वाहन दौड़ते हैं। इसमें देश के दूसरे राज्यों के वाहनों का योगदान भी है। कुछ साल पहले तक दिल्ली में वाहन से होने वाला वायु प्रदूषण 30 प्रतिशत हुआ करता था जो अब बढ़ कर 40 प्रतिशत हो गया है। इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से लगती हैं जहां बड़ी मात्रा में खेती की जाती है। किसान भाई बरसों से फसल की कटाई के बाद बची पराली को खेत में ही जला देते हैं। इसमें बहुत ज्यादा मात्रा में धुंआ उत्पन्न होता है। यही नहीं, खेतों में यूरिया और दूसरे कृषि रसायनों, कीटनाशकों के अनुचित प्रयोग के कारण हमारे वायुमंडल में मीथेन और नाइट्रस आक्साइड जैसी जहरीली गैसों की मात्रा भी बढ़ जाती है। ये गैसें स्माग के साथ घुल कर और भी खतरनाक हो जाती हैं।

दिल्ली-एनसीआर में उद्योगों और लैंडफिल साइट की वजह से यहां करीब 23 प्रतिशत प्रदूषण होता है। इसमें केवल गाजीपुर और ओखला लैंडफिल साइट से निकलने वाला धुंआ और उद्योगों का योगदान करीब 10 प्रतिशत है। निर्माण, कूड़ा जलाना, शवदाह जैसे कार्यों से भी वातावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। घर और उद्योगों में जेनरेटरों के इस्तेमाल, रसोई से निकलने वाले धुए से भी वायु प्रदूषण होता है और ये स्माग को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं।

वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव:

वायु प्रदूषण को मापने के लिए पीएम 2.5 माइक्रॉन के कण को आधार बनाया गया है। पीएम 2.5 के लिए सामान्य वायु प्रदूषण का स्तर 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर होता है। यह स्तर सामान्य वायुमंडल का स्तर है जो मनुष्य और पर्यावरण के लिए अनुकूल समझा जाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि दिल्ली एनसीआर में वायुमंडल में प्रदूषण का यह स्तर 300 से लेकर 700 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर पाया जाता है। यही नहीं, दिल्ली के कुछ इलाकों में तो यह स्तर 900 तक पाया गया है। यह बेहद घातक स्थिति है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वायु प्रदूषण के स्तर को समय-समय पर मापता रहता है और जरूरी दिशा-निर्देश भी जारी करता है ताकि जन सामान्य वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति को लेकर जागरूक रहें। वायु प्रदूषण में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर हमारी सांस के रास्ते फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और दमा, लंग कैंसर जैसी अनेक गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं।

वायु प्रदूषण हो या स्माग, ये हमारे स्वास्थ्य पर घातक असर डालते हैं। वृद्धजन, छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बीमार लोग स्माग को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। स्माग हमारे शरीर में विटामिन डी के निर्माण में बाधा डालता है। इसलिए ज्यादा समय तक स्माग के माहौल में रहने से रिकेट्स बीमारी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। स्माग में दरअसल वाहनों के धुंए से निकले सूक्ष्म पार्टिकुलेट कणों के अलावा, नाइट्रोजन मोनो आक्साइड और सल्फर डाइआक्साइड जैसी जहरीली गैसें मिल जाती हैं तथा ये सभी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। हमारी त्वचा के लिए भी स्माग नुकसानदायक है। खासतौर पर जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, उनके लिए स्माग और भी अधिक नुकसान पहुंचाता है। स्माग का बुरा असर हमारे श्वसन तंत्र पर सबसे ज्यादा होता है। सीने और आंखों में जलन और खांसी तो स्माग से जुड़ी सबसे सामान्य समस्याएं होती हैं। इनके अलावा, छोटे बच्चों में निमोनिया की मुख्य वजह बनती जा रही है। स्माग के बढ़ते प्रकोप से गले और फेफड़े के कैंसर की समस्या लोगों में तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह से दमा की बीमारी और गंभीर हो जाती है। दूसरी तरफ दमा के अटैक और फेफड़े के संक्रमण के कारण अब मरने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। फेफड़े के संक्रमण के अलावा, सांस लेने में मुश्किल, सांस लेते समय सीने में दर्द, थकान, सिर में दर्द, दम घुटने की वजह से उल्टी होना जैसी स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से अपने पाँव पसार रही हैं।

ऐसा नहीं है कि वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव केवल मनुष्यों पर होता है। पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं और समूचे पर्यावरण पर स्माग का बुरा असर होता है। यह फसलों और जंगल को भी भारी नुकसान पहुंचाता है। कृषि वैज्ञानिकों ने पाया है कि स्माग के दुष्प्रभाव से गेहूं, सेम, टमाटर, मूंगफली और कपास की फसलें खराब हो जाती हैं और उनकी पैदावार घट जाती है।

वायु प्रदूषण और स्माग: बचाव के उपाय

जैसाकि पहले हमने चर्चा किया कि दुनिया के कई देश और उनके शहर स्माग की मार झेल रहे हैं। अमेरिका, चीन जैसे अनेक देश और लास एंजिल्स, बीजिंग, तेहरान जैसे उनके कई शहर स्माग से प्रभावित होते हैं। कई देशों ने स्माग से बचाव के लिए अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण इकोफ्रेंडली कदम भी उठाए हैं। जैसे कि चीन ने कोयले के इस्तेमाल में 70 प्रतिशत तक कमी लाने और साल 2020 तक कोयलामुक्त होने का लक्ष्य तय किया है। चीन ने कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग पर जोर दिया है। इसमें सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों से भरे गोले हवा में दागे जाते हैं जो आसमान के बादलों को बरसाते हैंं। इसके द्वारा वायुमंडल के निचले हिस्से में मौजूद स्माग के छंटने में सहायता मिलती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन एक अरसे से दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों को प्रदूषण पर काबू करने के लिए आगाह करता रहा है। खासतौर पर वायु प्रदूषण और स्मॉग को लेकर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के सभी प्रदूषण से प्रभावित देशों को जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारा देश प्रदूषण के मामले में बहुत आगे है जो कि चिंता की बात है। दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 7 शहर भारत के हैं। भारत के इन 7 शहरों में से चार शहर दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के हैं।

वायु प्रदूषण और स्माग के प्रकोप को मद्देनजर रखते हुए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि पर्यावरण की इस समस्या का अविलम्ब समाधान किया जाए। स्वच्छता के समान वायु प्रदूषण को लेकर भी एक जनांदोलन खड़ा किए जाने की परम आवश्यकता है। वायु प्रदूषण से जुड़ी इस समस्या का तत्काल समाधान कर पाना तो संभव नहीं है, मगर हम अपने व्यवहार, आदत और दिनचर्या में मामूली परिवर्तन लाकर इस समस्या को काफी हद तक कम कर सकते हैं। जैसे कि दिल्ली सरकार ने ट्रैफिक के आड-इवन नामक एक बहुत ही सराहनीय कदम उठाया था। इससे दिल्ली एनसीआर के वायु प्रदूषण पर थोड़ा ही सही लेकिन अच्छा असर हुआ था। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (भारत सरकार) की एक पहल ग्रीन गुड डीड्स भी एक पर्यावरण हितैषी कदम है। इस तरह के विशेष प्रयास वायु प्रदूषण और स्माग जैसी चुनौती के लिए बहुत आवश्यक हैं। अभी हाल के समय में इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इससे जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता में कमी लाई जा सकती है। इसे और बढ़ावा दिए जाने की जरुरत है। एक वाहन से अकेले सफर करने की आदत में हमें बदलाव लाना होगा और इसके स्थान पर कार पूल या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेना उचित कदम होगा। बेशक स्वच्छ आबोहवा में सांस लेना सभी मनुष्यों का मौलिक अधिकार है लेकिन हम सबको भी एक स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण को सुनिश्चित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

 

मनीष मोहन गोरे

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