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पूर्वोत्तर और शेष भारत

पूर्वोत्तर और शेष भारत

by श्रृति सिन्हा
in नवम्बर २०१५, सामाजिक
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पौराणिक आख्यानों, भग्नावशेषों एवं प्रादुर्भूत शिवलिंगों को देखकर यह सिद्ध होता है कि पूर्वोत्तर भारत शेष भारत से कटा हुआ नहीं था। इन जनजातियों के साथ भारतीय संस्कृति के सूत्र हजारों वर्षों से गूंथे हैं। अतः पूर्वोत्तर भारत सदियों से भारतवर्ष का ही अभिन्न अंग है।

पूर्वोत्तर भारत पहले सात राज्यों ‘असम,  मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड, अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा से मिलकर बना था। अब इसमें सिक्किम के जुड़ने से यह आठ राज्य हो गए हैं। पूर्वोेत्तर भारत हिमालय से लेकर बांग्लादेश, बर्मा, चीन, तिब्बत, नेपाल व भूटान की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को छूता है। यहां की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, बोली शेष भारत से बिलकुल अलग है। यहां पर कई जातियां व जनजातियां निवास करती हैं और अधिकांश लोगों का मंगोल नस्ल के होने के कारण चेहरा, हाव-भाव उत्तर भारत के लोगों से नहीं मिलता है। इसी कारण जब यह शेष भारत में जाते हैं तो रंग-रूप चीनी-जापानी जैसा होने पर ये अलग प्रकार से व्यावहारिक होने लगते हैं। ऐसी अनेकोनेक घटनाएं हैं जिसके कारण ये शेष भारत से टूटा हुआ महसूस करते हैं। माताप्रसाद की पुस्तक ‘पूर्वोत्तर भारत के राज्य’ में ऐसी कई सारी घटनाओं का जिक्र किया गया है। जिससे पूर्वोत्तर के लोगों के मन में शेष भारत के प्रति अच्छी भावनाएं खत्म हो जाती हैं। जिसमें से कई विदेशी समझकर की गईं। फिल्म ‘चक दे इण्डिया’ में भी एक जगह पूर्वोत्तर के खिलाड़ियों पर हमला व अश्लील टिप्पणी विदेशी समझ कर की गई। जिसका उत्तर बड़ा ही सकारात्मक रूप से दिया गया फिल्म में। ‘ब्रह्मपुत्र के किनारे-किनारे’ के लेखक श्री सांवरमल सांगनेरिया के अनुसार भी उनके साथ यात्रा कर रहे एक यात्री ने जब असम को जादू-टोना और आतंकवादी गतिविधियों के आधार पर ही केवल जाना व पहचाना तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। लेखक ने कहा – ‘‘देश का पूर्वी अंचल बाकी प्रदेशों से अलग-थलग सा क्यों हैं?’’ इसके पीछे और भी कारण हैं जिससे पूर्वोत्तर शेष भारत से अछूता है।

भारत के प्रथम प्रधान मंत्री नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय नेता की छवि बनाने के लिए मणिपुर की उपजाऊ भूमि- कबौ घाटी, जिसका क्षेत्रफल १२०० वर्ग किमी था, को पड़ोसी देश बर्मा को दान में दे दिया। इसी घटना से मणिपुर में उग्रवाद का बीज बोना शुरू हुआ था। ऐसी ही गलती उन्होंने तिब्बत के साथ भी फिर से की। सरदार पटेल और राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी जिद में तिब्बत से भारतीय सेनाओं को हटा लिया और परोक्ष रूप से उस देश को तश्तरी में रखकर चीन को सौंप दिया। पं. नेहरू के कार्यकाल में ही चीनी तोपों ने गरजना शुरू किया और हज़ारों-हज़ार भारतीय सैनिक मारे गए। इसके साथ ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश का हज़ारों वर्ग मील का इलाका अपने कब्जे में कर लिया। यह सीमा विवाद आज तक सुलझ नहीं पाया है।

इसके अलावा १९९४ में हुए ४५वें एशियाई खेलों में मणिपुर के चार खिलाड़ियों को पैसे की कमी के कारण नहीं भेजा गया। इससे सिद्ध होता है कि भारत सरकार पूर्वोत्तर भारत के साथ सौतेला व्यवहार करती है। ऐसी ही स्थितियों में उनके मन में यह भावना जगती है कि पूर्वी अंचल को जब भारतवर्ष का एक हिस्सा ही नहीं माना जाता, तो वे भारतवर्ष का नाम क्यों जोड़ें। इन्हीं कारणों से वे भारत से अलग होने की मांग करते हैं। वे इण्डिया को अलग व अपने को अलग मानते हैं। जो गलती पुरानी पीढ़ी ने की, उसका खामियाजा आज की पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है।

पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से कटा हुआ महसूस कराने में अंग्रेजों का भी बहुत बड़ा हाथ था। अंग्रेजों ने पूर्वोत्तर में भारत से अलगाव की राजनीति फैलाई थी। पूर्वोत्तर के लोगों को शेष भारत से भिन्न सिद्ध करते हुए इस भिन्नता को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया। इस प्रकार पूर्वोत्तर भारत के लोगों के मन में कई तरह की फूट डाल दी गई। अपनी प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विशिष्टता को लेकर वहां के लोगों में शेष भारत से नितान्त अलग और कटा होने की भावना पैदा कर दी गई। जिसके कारण अब तक तरह-तरह से भेदभाव प्रकट होते देखा जा सकता है। परिणाम स्वरूप हमें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।

इस अलगाव को दूर करने के लिए कइयों ने पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से जोड़ने का अथक प्रयास किया है। सर्वप्रथम अज्ञेय जी ने पहल की। १९४३-४६ में ब्रिटिश सेना में भरती हुए अज्ञेय जी की तैनाती पूर्वोत्तर सीमा प्रांत में हुई तो उन्होंने वहां भाईचारा कायम किया। उन उपेक्षित स्थानों को महत्व दिया। उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा पूर्वोेत्तर भारत की सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति को उभार कर प्रस्तुत किया।

वर्तमान मोदी सरकार की नीतियां भी पूर्वोत्तर राज्यों के हक में हैं। इस दौरान सद्भाव कायम करने की कोशिश में नाथूला बॉर्डर खुलवाना है।

पूर्वोत्तर भारत का शेष भारत से सम्बन्ध महाभारत व रामायण काल से रहा है। गुवाहाटी में स्थित मां कामाख्या देवी का मंदिर पूरे भारतवर्ष में विख्यात है।

त्रिपुरा का त्रिपुर सुन्दरी मंदिर भी शक्तिपीठ है। मणिपुर में हिपांगथांग लाइरेम्बी नाम से सती का शक्तिपीठ है। पूरे पूर्वोत्तर में ५ जगह सती का शरीर खण्डित होकर गिरा है और इन सभी जगह शक्तिपीठ स्थापित हो गए हैं।

अरुणाचल प्रदेश में लिकाबाली के पास आकाशगंगा में सती के सिर के गिरने की कथा है।

मेघालय में भी जयंतिया पहाड़ पर जयंती देवी का मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। अरूणाचल के भीष्मक नगर से १२ किमी दूर तामे्रश्वरी देवी का मंदिर है। यहां भी कामाख्या पीठ की तरह योनी पूजा की प्रधानता रहती है। इस आधार से पूर्वोत्तर प्राचीन काल से ही शेष भारत से जुड़ा है।

आज के गुवाहाटी को महाभारत काल में प्रागज्योतिषपुर कहते थे। बाद में इसका नाम कामरूप पड़ा।

अरुणाचल प्रदेश स्थित परशुराम कुण्ड पूरे देश में प्रसिद्ध है। साथ ही रुक्मिणी भीष्मक नगर की कन्या थीं। पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति राजा दक्ष का यज्ञ भी इसी अरूणाचल में हुआ था।

महाभारत काल में पाण्डवों ने अज्ञातवास के दौरान पूर्वोत्तर भारत की कन्याओं के साथ वैवाहिक संबंध भी किए थे। नगालैण्ड में नगा कन्या उलुपी से अर्जुन ने विवाह किया था। मणिपुर में चित्रागंदा से विवाह किया। भीम ने अत्याचारी राजा हिडिम्ब का वध कर उसकी नगा बहन हिडिम्बा से विवाह किया।

इटानगर से ८ किमी दूर गंगा झील का वर्णन भी महाभारत में मिलता है। त्रिपुरा का महाभारत काल में त्रिगद नाम था। अरूणाचल में देवी-देवता की मूर्तियों के काफी सारे अवशेष प्राप्त हुए हैं। पूर्वोत्तर भारत में प्राप्त भग्नावशेषों में ज्यादातर शिव व पार्वती के हैं, जिससे पता चलता है कि वे अपने पारम्पारिक आराध्य के साथ-साथ शिव-पार्वती की भी पूजा करते थे।

इन सारे पौराणिक आख्यानों, सारे भग्नावशेषों एवं प्रादुर्भूत हुए इन शिवलिंगों को देखकर यह सिद्ध होता है कि पूर्वोत्तर भारत शेष भारत से कटा हुआ नहीं है। इन जनजातियों के साथ भारतीय संस्कृति के सूत्र हजारों वर्षों से गूंथे हैं। अतः पूर्वोत्तर भारत सदियों से भारतवर्ष का ही अभिन्न अंग है।

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