चाय पर चर्चा

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चाय एक पेय पदार्थ मात्र नहीं, त्यौहार है। हर आम भारतीय के दिन की शुरुआत चाय से ही होती है। साहित्य और सांस्कृतिक कर्मी तो चाय के बिना कोई विचार-विमर्श, आयोजन ही सम्पूर्णता के साथ नहीं कर सकते। चाय का सबसे बड़ा गुण है कि यह लोगों को तोड़ती नहीं बल्कि जोड़ती है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम के जरिए इसे एक अलग ऊंचाई दे दी है।

स्वावलम्बी

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पति के रोज -रोज के तानों से शाश्वती तंग आ चुकी है। वाकई वैवाहिक जीवन दोधारी तलवार की तरह है। कहां पिता के राज में अमन- चैन भरी जिंदगी और कहां यहा बात-बात पर ताने-उलाहनें, अपमान, तिरस्कार। क्या हर ‘हाऊस वाईफ’ के जीवन में ‘अर्थ’ को

अरुणाचल में ‘गांव बूढ़ा’ की भूमिका

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‘गांव बूढ़ा’ की स्थिति एक गैर राजनीतिक व्यक्ति की है। ‘गांव बूढ़ा’ से तात्पर्य केवल वृद्ध व्यक्ति से नहीं है। आजकल युवा ‘गांव बूढ़ा’ भी नियुक्त हुए हैं। ग्राम पंचायत बनने के बाद ‘गांव बूढ़ा’ गांव में विकास के लिए ग्राम पंचायत के सदस्यों की सहायता लेता है। पंचायत सदस्य गांव के विकास के लिए कार्यक्रम बनाने में ‘गांव बूढ़ा’ की मदद करते हैं। लेकिन ग्राम स्तर पर न्याय निष्पादन का कार्य अभी भी ‘गांव बूढ़ा’ एवं कौंसिल की जिम्मेदारी है।

पूर्वोत्तर और शेष भारत

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पौराणिक आख्यानों, भग्नावशेषों एवं प्रादुर्भूत शिवलिंगों को देखकर यह सिद्ध होता है कि पूर्वोत्तर भारत शेष भारत से कटा हुआ नहीं था। इन जनजातियों के साथ भारतीय संस्कृति के सूत्र हजारों वर्षों से गूंथे हैं। अतः पूर्वोत्तर भारत स

छह बहनें

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अगर गांव के बुजुर्ग लोग सिरूक के नीचे डूबने तक बाहर बैठते तो खेती-बारी करने के लिए जंगल काटने का समय आ गया है ऐसा कह कर वे खेती करने के लिए जंगल काटना शुरू करते थे। १० मई के करीब संध्या के समय चांद डूबता है तो मिजो लोग ‘‘धान का बीज’’ खेत में बोते थे। मिजो जाति के बुजुर्ग लोग सिरूक को समय मापन का साधन मानते थे।

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