पूर्वोत्तर का कल्पवृक्ष

बांस तेजी से बढ़ने एवं फैलने वाली वनस्पति है। कम से कम व्यय में अनेक जीवन उपयोगी चीजों का, तथा गृह सज्जा की अनेक चीजों का निर्माण, बांस से किया जाता है। इसीलिए बांस को गरीब की ‘बढ़ई कला’ कहा जाता है। पर्यावरणीय संवर्धन एवं संरक्षण के लिए भी तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा बल दिए जाने के कारण बांस का उपयोग निर्माण कार्यों, दवाइयों में, और अन्न प्रक्रिया मे भी होने लगा है। इसकी बहुआयामी उपयोगिता को देखते हुए इसे हरित स्वर्ण (ग्रीन गोल्ड) का सम्मान प्राप्त होने लगा। यह सच है कि बांस के कारण नागा समाज में आर्थिक स्थिरता आई है।

नागालैण्ड की सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक एवं उन्नतशील समृध्दि के लिए बांस स्वाभिमान का विषय बन गया है। इन्हीं सब बातों को देखते हुए नागालैण्ड शासन ने राज्य के हितों को ध्यान में रखते हुए 15 मार्च 2006 को बांस के विषय में नीतिगत फैसले किए तथा नागालैण्ड ‘बांस डेवलपमेंट कमेटी’ की स्थापना की। नेशनल बाम्बू मिशन के नेतृत्व में काम करते हुए इस संस्था ने अनेक कठिनाइयों पर मात कर इस क्षेत्र में अपना नाम रोशन किया है।

संस्था ने उद्योगपतियों का सहयोग प्राप्त कर बाम्बू हस्तकला, फर्नीचर, जलाऊ लकड़ी, चटाइयों का उत्पादन, परदे आदि का निर्माण किया है। संस्था के माध्यम से राज्य भर में कलाकारों, कारीगिरों और किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसी प्रकार सरकारी तथा निजी संस्थाओं का सहयोग लेकर इन वस्तुओं के लिए संस्था द्वारा बाजार भी उपलब्ध कराया जाता है।

बांस का हालाकि बहुआयामी उपयोग है, पर निर्माण के कार्य में बांस की बढ़ती उपयोगिता के कारण, यह एक नया क्षेत्र प्राप्त हो गया है। निर्माण कार्य में नए बांस का उपयोग होता है। लम्बे, हरे बांस के उपयोग से निर्माण कार्य को टिकाऊ तथा मजबूत किया जा सकता है। इसकी खासियत यह है कि बांस सस्ते में प्राप्त होते हैं। इसके कारण इस क्षेत्र मेें काम करने वाली नई पीढ़ी को एक नई आर्थिक दिशा प्राप्त हुई है। आवासीय मकान, सभागृह, उपहारगृह आदि बनाने में बांस का उपयोग आधुनिक खोज का परिणाम है।

बांस से फर्नीचर बनाने के क्षेत्र में विस्तृत सम्भावनायें हैं। कारीगरों की कुशलता का उपयोग कर बनाए गए फर्नीचर की बिक्री के लिए एजेंसी ने विशेष व्यवस्था की है। इसी योजना का परिणाम है कि बांस से बनने वाली प्रत्येक वस्तु कलाकृति बन गई है। उत्कृष्ट स्तर के बांस से बने फर्नीचर कीमत की दृष्टि से सामान्य लोगों की पहुंच में भी उपलब्ध हैं।

फर्नीचर की तरह ही बांस से चटाई बनाने का काम भी धन कमाने का अच्छा क्षेत्र है। तुली एतिया के छह गांवों को एक संयुक्त व्यवसाय मिला हुआ है। प्रारम्भ में केवल 76 चटाइयों का निर्माण करने वाले इस क्षेत्र में अब हर महीने 4000 चटाइयों का निर्माण हो रहा है। इस सफलता के कारण मोन तथा पेरेन जिलो में भी चटाई का उत्पादन प्रारम्भ हो गया है।

बांस से अगरबत्ती की लकड़ी बनाना भी एक अच्छा व्यवसाय है। देशभर में सांस्कृतिक व धार्मिक कारणों से बड़ी मात्रा में अगरबत्ती का उपयोग होता है। इसे ध्यान में रखकर एजेंसी ने बांस से पतली लकडियों के निर्माण के लिए चार जोन बनाए हैं। भविष्य में इन पतली लक़डियों की मांग बढने की अच्च्ी सम्भावना है। क्योंकि पूर्वांचल में जिस बड़ी तादाद में बांस उपलब्ध है, उतना देश में कहीं भी नहीं है। नागालैण्ड की तरह अन्य राज्यों ने भी शोध, बुआई, प्रशिक्षण तथा बिक्री की व्यवस्था पर जोर दिया तो बांस का उत्पादन प्रचुर धन दिलाने वाला क्षेत्र सिध्द होगा। यह पूर्वांचल का कल्पवृक्ष सिध्द होगा।

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