भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो (ISRO) यह भारत का अंतरिक्ष संस्थान है जहां से अंतरिक्ष के लिए काम किया जाता है और रॉकेट अंतरिक्ष में भेजे जाते है। इस संस्थान में करीब 17 हजार से अधिक कर्मचारी व वैज्ञानिक काम करते है लेकिन क्या आप ने कभी यह सोचा है कि इतने बड़े रिसर्च सेंटर की स्थापना किसने की है?
12 अगस्त 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में एक जैन परिवार में जन्मे विक्रम साराभाई वह वैज्ञानिक हैं जिन्होने भारत में अंतरिक्ष संस्थान की नींव रखी। इनकी कड़ी मेहनत और लगन की वजह से भारत में इसरो जैसे संस्थान की स्थापना हुई और आज भारत पूरी दुनिया को अपना लोहा मनवा रहा है। विक्रम साराभाई का जन्म एक धनी जैन परिवार में हुआ था इनके पिता अंबालाल साराभाई कई मिलों के मालिक थे जिससे इनकी स्कूली शिक्षा अच्छे विद्यालय से हुई और बाद में यह पढ़ने के लिए कैम्ब्रिज चले गये और अपनी पढ़ाई पूरी कर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत लौट आये।

वैज्ञानिक क्षेत्र में साराभाई का काम और नाम दोनों ही बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जे भाभा की प्लेन क्रैश (1966) में मौत के बाद साराभाई को परमाणु ऊर्जा विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद विक्रम सारा भाई ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अंतरिक्ष की दुनिया को आम लोगों के करीब लाकर खड़ा कर दिया। इनकी इस प्रतिभा की वजह से ही इन्हे तमाम पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया जिसमें कुछ मरणोपरांत भी दिए गये। 1962 शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, 1966 पद्मभूषण, 1972 पद्म विभूषण (मरणोपरांत)
अंतरिक्ष के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अब विक्रम साराभाई को यह समझ आने लगा था कि भारत को भी इसकी जरूरत है और देश के अंदर एक अंतरिक्ष स्टेशन तैयार किया जाना चाहिए लेकिन यह सब करना इतना आसान नहीं था इसके लिए सरकार को समझाना और एक बहुत बड़ा बजट इसके लिए लगाना था। साराभाई सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े और तमाम परेशानियों को पार करते हुए 15 अगस्त 1969 को देश के अंतरिक्ष स्टेशन इसरो की स्थापना कर दी।

12 अगस्त 2021 को विक्रम साराभाई की 102वीं जयंती मनाई जा रही है। उनके निधन के बाद भले ही समय तेजी से निकलता जा रहा हो लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा एक के बाद एक नये सफल परीक्षण विक्रम साराभाई को फिर से लोगों को दिलों में जिंदा कर देते है। विक्रम साराभाई की देन ही है जो आज भारत में सैटेलाइट लॉंचिंग में कई बड़े देशों को भी पीछे छोड़ चुका है।
देश और दुनिया के लिए योगदान देने वाले विक्रम साराभाई की बहुत कम समय में ही मृत्यु हो गयी। 30 दिसंबर 1971 को वह केरल के एक होटल में सो रहे थे इसी दौरान उनका निधन हो गया। हालांकि उनके निधन को लेकर आज भी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है कि आखिर उनकी मौत कैसे हुई थी? साराभाई के निधन के बाद उनके परिवार वालों ने बॉडी का पोस्टमार्टम नहीं होने दिया जिससे मौत की वजह साफ नहीं हो सकी। एक किताब में यह दावा किया गया था कि अमेरिका और रूस से जासूस साराभाई पर नजर रखते है और इसकी पुष्टि खुद विक्रम साराभाई ने की थी।
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