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बिडेन का मिशन सफल होने का दावा क्रूर मजाक

बिडेन का मिशन सफल होने का दावा क्रूर मजाक

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, राजनीति
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क्रिस डोनाह्यू अमेरिका के सबसे आखरी जनरल थे जिन्होंने 30-31 अगस्त की करीब 3.30 बजे रात को अफगानिस्तान की धरती से अमेरिका जाने वाले विमान पर कदम रखा। अंधेरी रात में उनके शरीर पर प्रकाशमान सैनिक वर्दी वाली तस्वीरें पूरी दुनिया में वायरल हुई। इसके साथ अफगानिस्तान में अमेरिका का 19 साल, 10 महीना और 25 दिन यानी करीब 20 वर्ष का सैन्य अभियान खत्म हुआ। अमेरिकी सेंट्रल कमान के जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने  वाशिंगटन में अभियान सम्पन्न होने की घोषणा करते हुए कहा कि काबुल हवाईअड्डे से देर रात तीन बजकर 29 मिनट (ईस्टर्न टाइम ज़ोन) पर आखिरी विमानों ने उड़ान भरी।

अमेरिका के अंतिम विमान के उड़ान भरने के साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान के पूरी तरह स्वतंत्र होने की घोषणा कर दी। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा ”सभी अमेरिकी सैनिक काबुल हवाईअड्डे से रवाना हो गए हैं और अब हमारा देश पूरी तरह स्वतंत्र है।” काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर तैनात तालिबान के एक लड़ाके हेमाद शेरजाद ने कहा, ”आखिरी पांच विमान रवाना हो गए हैं और अब यह अभियान समाप्त हो गया है। अपनी खुशी बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है… हमारे 20 साल का बलिदान काम आया।”तालिबान के लड़ाकों ने अमेरिकी विमानों को देर रात रवाना होते देखा, हवा में गोलियां चलानी शुरु की और गोलियों की आतिशबाजी से जीत का जश्न मनाया।

उसके बाद से तालिबान की प्रतिक्रियाएं और जश्न मनाने के दृश्य बता रहे हैं कि उन्होंने अमेरिकी वापसी को किस दृष्टिकोण से लिया है । अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने वापसी के बाद राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा है कि हमारा अफ़ग़ान मिशन सफल रहा तथा वापसी का फैसला बिल्कुल सही है। हालांकि विश्व समुदाय को छोड़िए तो स्वयं अमेरिका में ही इस समय उनकी बातों से सहमत होने वालों की संख्या अत्यंत कम है । यह प्रश्न तो उठता ही है कि आखिर अमेरिका ने अफ़ग़ान मिशन में पाया क्या? उसके 2461 सैनिक मारे गए, अप्रैल तक 3846 अमेरिकी सैन्य ठेकेदारों की मौत का भी आंकड़ा है।

उसके नेतृत्व में 1144 नाटो और अन्य देशों के जवान तथा संबंद्ध सेवा सदस्य भी मारे गए हैं। अमेरिका ने बेतहाशा खर्च भी किया। इसके अलग-अलग आंकड़े हैं। लेकिन इसके समानांतर यह मत भूलिए की इन 20 सालों में करीब 47,245 अफगान नागरिक मारे गए हैं। इसके अलावा चार लाख के आसपास अबगानों को दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी, 50 लाख के आसपास पलायन को मजबूर हुए और घायल होने वालों की संख्या 10 लाख से ज्यादा होगी। जो बिडेन अगर अपने मिशन को सफल मानते हैं तो यह प्रश्न भी  उठाया जाएगा कि आखिर इतने बलिदान के बावजूद अफगानी को क्या मिला?

आज की हालत विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं। इन 20 सालों में जिन अफ़गानों ने अलग-अलग तरीके से तालिबान के विरुद्ध अमेरिका का सहयोग किया, मदद की वे सब तालिबान के निशाने पर हैं। हमने एक दुभाषिए को अमेरिका द्वारा छोड़े गए सी हॉक हेलीकॉप्टर से लटका कर आकाश में फांसी देने का दृश्य देखा है। दुभाषिए , जो अमेरिका के लिए अफगान भाषा का अंग्रेजी में अनुवाद करते थे, जासूसी करते थे, सैनिकों को रास्ता दिखाते थे, वे इनके आंख और कान थे। बिडेन ने वायदा किया था कि हम आपको तालिबान के हवाले नहीं छोड़ेंगे लेकिन जितनी संख्या इनकी थी उनमें आधे को भी अमेरिका ने वीजा नहीं दिया । उनको तालिबान के हवाले छोड़ कर निकल गए। 

अमेरिका ने बायोमैट्रिक डाटा और पूरा उपकरण आदि वहीं छोड़ दिया जिनके आधार पर तालिबान उन सारे लोगों को ढूंढ रहे हैं जिन्होंने अमेरिका की सहायता की। इसमें हर तरह के पेशे वाले ,नौकरी करने वाले लोग शामिल हैं। तालिबान हालांकी अभी बायोमैट्रिक्स उपकरणों का सही इस्तेमाल नहीं जानते लेकिन पाकिस्तानी अधिकारी उनकी इसमें मदद कर रहे हैं। महिलाओं और बच्चों को अमेरिका ने किस हाल पर छोड़ा ? मानवाधिकारों के झंडा वरदार होने का अमेरिका का दावा कहां गया ? 20 वर्ष पहले तालिबान की सत्ता खत्म करने वाला अमेरिका आज उनको विश्व में आंशिक रूप से मान्यता दिला कर और इतनी मात्रा में सैन्य उपकरणों को छोड़ कर गया है जितनी दुनिया के 80- 85  प्रतिशत देशों के पास नहीं है।

हालांकि अमेरिकी सेना ने दावा किया कि  देश छोड़ने से पहले काबुल हवाई अड्डे पर बड़ी संख्या में मौजूद विमानों, सशस्त्र वाहनों और यहां तक कि हाईटेक रॉकेट डिफेंस सिस्टम तक को डिसेबल कर दिया है। अमेरिका के सेंट्रल कमांड के मुखिया जनरल केनेथ मैकेंजी ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि हामिद करजई हवाई अड्डे पर मौजूद 73 विमानों को सेना ने डिमिलिट्राइज्ड कर दिया है। वे विमान अब कभी नहीं उड़ सकेंगे…उन्हें कभी कोई संचालित नहीं कर सकेगा। हवाईअड्डे पर 70 एमआरएपी बख्तरबंद वाहनों, 27 ‘हमवीज’ वाहन भी डिसेबल कर दिए गए हैं, जिन्हें अब कभी कोई इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।

रॉकेट, आर्टिलरी और मोर्टार रोधी सी-रैम सिस्टम, जिसका इस्तेमाल हवाई अड्डे को रॉकेट हमले से बचाव के लिए किया गया,  डिमिलिट्राइज किया ताकि इसका कोई इस्तेमाल न कर सके। उन्होंने यह नहीं बताया कि अफगानिस्तान में छोड़ा कितना है। सच यह है कि जितने विमान, हेलीकॉप्टर ,बख्तरबंद वाहन, टैंक, टैंक रोधी वाहन ,उपकरण, एंटी मिसाइल उपकरण ,आधुनिक छोटे हथियार ,उच्च स्तरीय निर्मित सैन्यअड्डे छोड़े हैं तालिबान तो छोड़िए अफगानिस्तान ही नहीं दुनिया के ज्यादा देश उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। हथियारों से तालिबान पंजशीर मे टूट पड़े हैं। इन्होंने अमेरिकी सैनिकों के अति रक्षित सुविधाजनक बंदियों के साथ अपना बद्री कमांडर भी तैयार कर लिया है।

 इसमें बिडेन ब्का मिशन सफल होने का दावा न केवल अफगानिस्तान और अमेरिका बल्कि संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए जले पर नमक रगड़ने के समान है। हम मानते हैं कि यह ऐसा अभियान नहीं था जिसमें पराजय या विजय की कोई सीमा रेखा हो सकती थी। लेकिन किसी देश का इकबाल,  साख और इज्जत सर्वोपरि होता है। अमेरिका ने 7 अक्टूबर 2001 को अफगानिस्तान मिशन केवल 11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क टावर ,पेंटागन पर हुए हमलों का प्रतिशोध लेने के लिए ही नहीं किया था। उसने कहा था कि यह आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध है और इसका खात्मा तभी होगा जब आतंकवाद का नाश हो जाएगा।

आज अफगानिस्तान में आतंकवादी उदारवाद का चेहरा लेकर सामने लौट गए हैं और वह भी हथियार डालकर नहीं युद्ध लड़ कर। जो बिडेन भूल रहे हैं कि 2014 से  लेकर वापसी की समय सीमा तय किए जाने तक केवल 99 अमेरिकी सैनिक मारे गए जबकि अफगानिस्तान के करीब 10 हजार सैनिकों ने अपना बलिदान दिया। वे अमेरिकी सैन्य आपूर्ति तथा रणनीतिक मार्गदर्शन में ही तालिबान के विरुद्ध लड़ रहे थे । बिडेन ने तालिबान से बीना हथियार डलवाए अचानक वापसी की घोषणा कर आफगान सेना को बेसहारा छोड़ दिया । अफगान की सेना में कुछ तालिबान के समर्थक कुछ नशा खोर आदि रहे ही होंगे। किंतु वही सेना पहले वीरतापूर्वक लड़ रही थी, क्योंकि उसके अंदर भावना यह थी कि तालिबान के माध्यम से हम पाकिस्तान का उपनिवेश नहीं बनेंगे। उस सेना को निराश्रित करने के लिए मुख्य जिम्मेवार किसे माना जाएगा? अफगानिस्तान के निर्वाचित सरकार भी कमजोर निकली।

राष्ट्रपति गनी डट सकते थे जैसे उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह डटे हैं। लेकिन जो बिडेन के आंख मूंदने के बाद उनकी विवशता भी समझ आती है। दुनिया भर से आतंकवादी तालिबान का साथ देने के लिए अफगानिस्तान आग आते गए और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं रहा। सच कहा जाए तो अमेरिका ने अफगानिस्तान, विश्व समुदाय और स्वयं अमेरिका को ऐसा जोखिम भरा धोखा दिया है जिसके भयावह दुष्परिणाम लंबे समय तक हम सबको भुगतने होंगे। आखिर अमेरिकी सेना के ही बलिदान की क्या कीमत मिली? अफगानिस्तान से लौटे एक अमेरिकी जवान का वह वीडियो वायरल है जिसमें कह रहा है कि हमने सब गड़बड़ कर दिया, जो कुछ 20 वर्षों में पाया था उसे नष्ट कर दिया।

वास्तव में जो बिडेन और उनके सलाहकार चाहे जो दावा करें अमेरिका का इकबाल तो न्यूनतम बिंदु पर आया ही है इज्जत भी गिरी है और साख की तो कहने की जरूरत नहीं। बिडेन कह रहे हैं कि आतंकवाद के विरुद्ध अभियान जारी रहेगा। इसके साथ यह भी कह रहे हैं कि कहीं सैन्य अड्डा नहीं बनाएंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि अमेरिकी सैनिक धरातल पर पहले की तरह आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में संघर्ष के लिए ठिकाने पर नहीं जाएंगे। यानी कुछ होगा तो हवाई हमला ही। इससे आतंकवाद के विरुद्ध कैसे सफलतापूर्वक युद्ध लड़ा जा सकता है इसके बारे में तो जो बिडेन और उनके रणनीतिकार ही बताएंगे। अफगान की शर्मनाक और अमानवीय वापसी के बाद कौन आतंकवादी ,समूह या संगठन अमेरिका से भय खाएगा? कौन पीड़ित देश सोचेगा कि अमेरिका की मदद से वे संघर्ष करेंगे तो भविष्य में भी उनकी सत्ता और जीवन रक्षा हो सकेगी? अमेरिका को कहीं भी आतंकवाद विरोधी मिशन में कौन लोग दुभाषिए, जासूस या अन्य काम करने का साहस जुटा पाएंगे? ये सारे ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर किसी के पास नहीं।

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Tags: afghanistanamericabidenmissiontalibanterrorismterrorists

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