आखिर क्यों बढ़ रही खुदकुशी की दर!

आजकल अक्सर खुदकुशी की खबरें सुनने को मिलती है या फिर अपने आसपास के इलाकों पर नजर डालें तो यह देखने को भी मिलती हैं लेकिन इस खुदकुशी पर हम बड़े पैमाने पर नजर नहीं डालते हैं बल्कि मरने वाले के निजी कारणों पर बात कर उसे वहीं खत्म कर देते हैं। इस बात पर शायद बहुत ही कम लोगों का ध्यान होता है कि निजी कारणों की वजह से लोग खुदकुशी क्यों कर रहे हैं। आम तौर पर सभी के जीवन में कुछ ना कुछ मुसीबत अक्सर होती रहती है फिर उस मुसीबत से लड़ने की जगह हम खुदकुशी की तरफ क्यों बढ़ने लगते हैं। क्या खुदकुशी ही आखिरी रास्ता होता है? शायद ऐसा नहीं है खुदकुशी किसी भी मुसीबत या समस्या का समाधान नहीं होता है। 
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह और भी डरावने हैं। इन आंकड़ों में बहुत ही तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है और कोरोना काल में खुदकुशी का ग्राफ काफी ऊपर गया है जिसमें मजदूर, किसान, कारोबारी और घरेलू महिलाएं शामिल है। कोरोना काल से पहले भी आत्महत्या के मामले सामने आते थे लेकिन वह काफी कम थे जबकि कोरोना काल में यह संख्या बहुत ही तेजी से बढ़ी है। सबसे अधिक 24 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की, जिसमें अधिकतर लोग बेरोजगारी से पीड़ित थे। परिवार का मुखिया बेरोजगार हो तो घर के अंदर कलेश भी बढ़ने लगते हैं नतीजा परिवार में अशांति आती है और आगे चलकर महिलाओं पर प्रताड़ना बढ़ने लगती है और यही कारण होता है महिलाओं के खुदकुशी करने का, अक्सर यह देखा गया है कि जब परिवार में बेरोजगारी होती है तब पुरुष अपनी पत्नी या घर ही महिला पर गुस्सा निकालता है जो हर दिन पारिवारिक कलेश बनता जाता है और यह एक दिन किसी की खुदकुशी के बाद ही खत्म होता है। 
कारोबार करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता है यह हर दिन का काम होता है। कारोबार अगर अच्छा चला तो आप को यह अर्श तक पहुंचा देता है जबकि कभी कभी यह फर्श पर भी पहुंचा देता है और ऐसे हालात में नुकसान के बाद कुछ कारोबारी इसे सहन नहीं कर पाते हैं और आत्महत्या को आखिरी रास्ता बना लेते हैं। कोरोना काल में कारोबारियों की आत्महत्या के मामले भी बहुत देखने को मिल रहे हैं। छोटे कारोबारी पहले से ही कर्ज में डूबे थे ऐसे में उनके बंद कारखानों में उन पर और बोझ बढ़ा दिया। कारखाने बंद होने के बाद परिवार को पालना बहुत मुश्किल हो गया, हर महीने घर और कंपनी का लोन, बच्चों की फीस, घर का खर्च सब नहीं चल पाने के कारण कुछ छोटे कारोबारियों ने मौत को गले लगा लिया। 
अगर महिलाओं के केस की बात करें तो इसमें दो उदाहरण देखने को मिले, पहला पति की नौकरी जाने के बाद परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ने लगा। हर दिन का खर्च निकलना मुश्किल हो गया। घर का ज्यादातर काम महिलाओं पर होता है ऐसे में वह पूरी तरह टूट जाती है और खुदकुशी कर लेती है जबकि दूसरे केस में लॉकडाउन के बाद पति-पत्नि एक साथ घर में रहने लगे जिससे हर दिन छोटी छोटी बातों पर बहस होने लगी और झगड़े होने लगे। झगड़े के बाद ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ने लगा जिससे तंग आकर महिलाओं ने आत्महत्या को ही आखिरी रास्ता चुन लिया और खुदकुशी कर ली। ऐसे ही हालात कुछ किसानों के है जो बढ़ते कर्ज की वजह से परेशान हो कर खुदकुशी करते हैं क्योंकि फसल खराब होने और उचित भाव ना मिलने की वजह से बैंक का कर्ज नहीं चुका पाता है और आत्म हत्या कर लेता है। 
आत्महत्या के सभी मामलों को देखे तो पता चलता है कि आर्थिक तंगी सबसे पहली वजह है जबकि पारिवारिक तंगी दूसरी वजह है। वर्तमान में लोगों के पास संयम की भी बहुत कमी हो चुकी है। आज का व्यक्ति किसी भी प्रेशर को झेल नहीं पाता है और बहुत जल्दी हार मान लेता है। इसका एक बड़ा कारण एकल परिवार भी है जहां व्यक्ति अकेला होता है और किसी भी मसीबत में उसे कोई संयम देने वाला नहीं होता है नतीजा वह अगर समाज में कुछ भी बुरा होता है तो लोग सबसे पहले सरकार पर उंगली उठाते हैं और यह सरकार का दायित्व होता है कि वह इस मामले पर काम कर इसे रोकने की कोशिश करे। तेजी से बढ़ते खुदकुशी मामले पर सरकार को संज्ञान लेना चाहिए और जरुरी कदम उठाने चाहिए। किसी परिवार से खुदकुशी करने वाला कोई एक व्यक्ति हो सकता है लेकिन उस व्यक्ति के पीछे ना जाने कितने लोग होते हैं जो बेघर और अनाथ हो जाते हैं। 

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