27 दिसंबर 1975 को चासनाला खदान दुर्घटना हुई थी जो अभी तक के इतिहास की सबसे बड़ी खदान त्रासदी मानी जाती है। इस दुर्घटना के दौरान बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की मौत हुई थी जिससे पूरा देश दहल उठा था। धनबाद के समीप स्थित चासनाला कोयला खदान से कोयला निकालने का काम चल रहा था और करीब 400 से अधिक की संख्या में मजदूर कोयला निकालने का काम कर रहे थे। हर दिन की तरह 27 दिसंबर का दिन भी उनके लिए आम था। कोयला निकालने के लिए मजदूर खदान में उतर चुके थे और काम जारी था। चासनाला कोलियरी संख्या 1 और 2 से कोयला निकालने का काम जारी था लेकिन इन दोनों खदान के ऊपर एक बड़ा जलाशय था जिसमें 5 करोड़ गैलेन पानी इकट्ठा था लेकिन इस पानी का वजन अब खदान की छत के लिए रोक पाना मुश्किल था और जब मजदूर काम कर रहे थे तभी यह छत टूट गयी और करीब 5 करोड़ गैलेन से अधिक पानी कोयले की खदान में घुस गया।
कोयले की खदान में पानी घुसने से सभी इलेक्ट्रिक लाइट और लिफ्ट बंद हो गये जिससे सभी तरफ अंधेरा हो गया और मजदूर पूरी तरह से खदान में फंस गए। कोल इंडिया के अंतर्गत आने वाली यह खदान अब पूरी तरह से पानी से भर चुकी थी सरकार की तरफ से कुछ मोटर पंप पानी निकालने के लिए लगाए गए लेकिन वह पूरा पानी निकालने के लिए सक्षम नहीं थे। कोल इंडिया की तरफ से कुछ प्राइवेट कंपनियों से संपर्क किया गया और मोटर की सहायता ली गयी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। खदान में पानी भरने से करीब 375 से अधिक मजदूरों की मौत हो चुकी थी। उधर कंपनी की तरफ से नोटिस बोर्ड पर मृतक मजदूरी की लिस्ट लगा दी गयी। किसी एक दिन में इतने मजदूरी की मौत ने सभी को हिलाकर रख दिया। एक ही झटके में करीब 400 परिवार बेसहारा हो गए। परिवार की तरफ से आरोप लगाया गया था कि ठेकेदारों को यह मालूम था कि हादसा कभी भी हो सकता है बावजूद इसके उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। मजदूरों की सुरक्षा के लिए जरुरी उपकरण भी नहीं थे। इस घटना को विदेशी मीडिया ने भी अपने अखबारों में जगह दी थी और सरकार पर सवाल भी उठाया था।
जानकारी के मुताबिक पानी निकालने के लिए विदेशों से पंप मंगाने पड़े और फिर करीब 26 दिन बाद खदान से शव निकाले जा सके। पटना उच्च न्यायालय ने इस दुर्घटना पर एक कमेटी बनाई जिसने करीब 2 साल में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी जिसके बाद कोर्ट ने 37 साल बाद वर्ष 2012 में इस पर फैसला सुनाया। उस समय तक आरोपी बनाए गए दो अधिकारियों की मौत हो चुकी थी जबकि बचे लोगों को एक एक साल की कैद और 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
वर्ष 1975 में देश कांग्रेस का शासन था हालांकि यह समय आपातकाल का था और पूरे देश में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था इसलिए इस घटना को बहुत महत्व नहीं मिला। हालांकि इस घटना से सरकार की एक नकारात्मक छवि लोगों के सामने प्रस्तुत हुई और लोगों ने कोल इंडिया के कामकाज पर सवाल उठाया। कोल इंडिया सरकारी कंपनी है जो कोयले की खुदाई का काम करती है। कंपनी के पास हजारों की संख्या में मजदूर है ऐसे में उसे किसी भी दुर्घटना के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए अगर कोल इंडिया के पास ऐसी कोई तैयारी रही होती तो शायद यह हादसा इतना भयावह नहीं होता।