आज दुनिया भर में तकनीकी, गैर तकनीकी, बैंकिंग आदि क्षेत्र में करीब दो दर्जन से अधिक ऐसी मल्टीनेशनल कम्पनियां है, जिनके सीईओ भारतीय हैं या रहे हैं। तो क्या कारण है कि ये बड़ी-बड़ी कपनियां अपने प्रमुख और महत्वपूर्ण पदों पर भारतीयों पर ही भरोसा करती हैं? जाहिर है व्यक्तिगत कौशल, योग्यता और कड़ी मेहनत के अलावा इन भारतीयों में पाए जाते हैं भारतीय संस्कृति के कुछ ऐसे खास गुण और मूल्य जो इन्हें सबसे अलग और सबकी पहली पसंद भी बनाते हैं।
दशकों से भारत तकनीक क्षेत्र का केंद्र बिंदु है। साल दर साल धीरे-धीरे कैसे भारतीय, कॉर्पोरेट्स की सीढियां चढ़ उनके विकास में सहायक बने, किसी से छिपा नहीं। गूगल से लेकर माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम से अडोब तक ऐसे बहुत से टेक्नालॉजी जॉयन्ट्स हैं जिनके सीईओ भारतीय हैं। नोकिया, पेप्सी और मास्टरकार्ड जैसी कंपनियों ने भी इन्वेंशन, मार्केटिंग व प्रबंधन के क्षेत्र में भारतीयों को महत्ता दी। अब इन्हीं नामों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया वह है ट्विटर। चंद रोज़ पहले ही इसके सीईओ भारतीय मूल के पराग अग्रवाल बने। अजमेर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे 37 वर्षीय पराग आईआईटी, बॉम्बे के छात्र रहें। जिन्होंने 2001 में तुर्की में हुए इंटरनेशनल फिजिक्स ओलिंपियाड में गोल्ड मेडल भी जीता था। इन्होंने कैलिफ़ोर्निया के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी भी किया। पराग की ही तरह चेन्नई में जन्में गूगल की पैरेंट कम्पनी अल्फाबेट के सीईओ सुन्दर पिचाई ने भी आईआईटी खड़गपुर से स्नातक की डिग्री हासिल की और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ साइंस और यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनिआ से एमबीए किया। वहीं माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने मणिपाल यूनिवर्सिटी से बीटेक और अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ साइंस और शिकागो से एमबीए यानी मास्टर ऑफ बिजनेस ऐडमिनिस्ट्रेशन किया। एडोब के सीईओ शांतनु नारायण ने उस्मानिया यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। बाद में फिर उन्होंने कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। आईबीएम के सीईओ अरविन्द कृष्णा ने भी आईआईटी कानपुर से बीटेक किया, बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलेनॉइस से पीएचडी किया। माइक्रोन टेक्नोलॉजी के सीईओ और सैनडिस्क के कोफाउंडर संजय मेहरोत्रा ने बिट्स पिलानी और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से बैचलर और मास्टर्स किया। बाद में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से बिजनेस की पढ़ाई की। उनके नाम 70 से ज्यादा पेटेंट्स हैं। पालो आल्टो नेटवर्क्स के सीईओ निकेश अरोरा भी आईआईटी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक हैं और इन्होंने नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी, बोस्टन से एमबीए की डिग्री हासिल की।
आज दुनिया भर में तकनीकी, गैर तकनीकी, बैंकिंग आदि क्षेत्र में करीब दो दर्जन से अधिक ऐसी मल्टीनेशनल कम्पनियां है, जिनके सीईओ भारतीय हैं या रहे हैं। तो क्या कारण है कि ये बड़ी-बड़ी कपनियां अपने प्रमुख और महत्वपूर्ण पदों पर भारतीयों पर ही भरोसा करती हैं? जाहिर है व्यक्तिगत कौशल, योग्यता और कड़ी मेहनत के अलावा इन भारतीयों में पाए जाते हैं भारतीय संस्कृति के कुछ ऐसे खास गुण और मूल्य जो इन्हें सबसे अलग और सबकी पहली पसंद भी बनाते हैं। कितना सुखद है कि बहुत ही सामान्य पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले ये हुनरमंद मध्य वर्गीय परिवारों से हैं जो आज अपनी कड़ी मेहनत, लगन और ढृढ़ता से इस मुकाम तक पहुंचे।
इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत प्रगतिशील देश है जहां अधिकतर संसाधनों का अभाव रहता है। इस कारण बच्चों को छोटी आयु में ही हर माहौल में ढल जाने और उसे अपने अनुकूल बनाने की शिक्षा परिवार से ही मिल जाती है। साथ ही इन्हें अप्रत्याशित परिस्थितियों और अनिश्चितताओं से निकलने और उन्हें अपने अनुकूल ़ढ़ालने का ज्ञान भी हो जाता है। 135 करोड़ की विशाल जनसंख्या, उसमें भी आईआईटी जैसे प्रीमियर संस्थानों में प्रवेश के लिए महज चंद सीटें ही वो परिस्थितियां बनाती हैं, जिससे छोटी आयु में बेहद कठिन प्रतिस्पर्धाओं का सामना करने की काबिलियत आ जाती है। बस यहीं से ये नन्हें भारतीय वैश्विक स्तर के लिए ढ़ल जाते हैं।
भारत एक बहु सांस्कृतिक देश है। यहां पले-बढे व्यक्ति को बचपन से ही दूसरों की संस्कृति और विचारों का सम्मान करना, बिना किसी पक्षपात के उनके साथ मिलकर काम करना, किसी भी मुद्दे का हल बातचीत से निकालना सिखाया जाता है। यही मंत्र एक मल्टीनेशनल कंपनी में विभिन्न देशों के लोगों के साथ मिल जुल कर रहने और काम करने में सहायक होता है जो हमें जन्मजात मिलता है। भारत में रिश्तों और व्यव्हार की अहमियत बेहद खास होती है। सबके साथ मिलकर रहना, एक दूसरे का ध्यान रखना, कई छोटी-बड़ी बातों की अनदेखी करना किसी भी सीईओ की दया, सहनशीलता बढ़ाने और स्वीकार्यता के गुणों को बढाती है। हमारी बहु भाषिक संस्कृति के कारण यहां पला बढ़ा व्यक्ति कम-कम 2-3 भाषाएं और बोलियां बोल लेता है। यही गुण उन्हें कुशल वक्ता भी बनाता है।
शायद यही सब वो कारण हैं कि अमेरिका में एक अवधारणा बन गई है कि भारतीय मूल के लोग तकनीकी और प्रबंधन के क्षेत्र में बहुत अच्छे होते हैं। इसीलिए वहां की इंडियन-अमेरिकन कम्युनिटी और दूसरे अल्पसंख्यकों में भारतीयों की ही सबसे सफल और समृध्द कम्युनिटी है। इसका पता 2015 के एक सर्वे से भी चला जिसमें सिलिकॉन वैली के एक तिहाई इंजीनियर्स भारतीय हैं। इसी से पता चला कि विश्व की 10 प्रतिशत हाईटेक कंपनियों के सीईओ भारतीय हैं जो दूसरी बड़ी उपलब्धि है। ये सारी बातें कहीं न कहीं भारत के कद को वैश्विक स्तर में बढ़ाती है तभी तो गूगल, ट्वीटर, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के सीईओ भारतीय हैं। इससे भारत के प्रति विश्वास तो बढ़ता ही है जो हमारे लिए एक सॉफ्ट पावर की तरह काम करता है। यकीनन वैश्विक स्तर पर कहीं न कहीं इंडियन मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन और इंडियन स्टार्टअप की संभावनाए बढ़ेंगी। इतना ही नहीं ये उपलब्धियां भारत को खासा प्रोत्साहित करती हैं। इससे जहां एक तरफ बच्चों को कड़ी मेहनत और इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता है, वहीं दूसरी तरफ बिजनेस फ्रेंडली एनवॉयरमेण्ट भी बढ़ता है।
सही मायनों में हमारी जीत तब होगी जब विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या वाले भारत के विश्व की प्रमुख 500 कंपनियों (फॉर्च्यून 500) में केवल दर्जन भर नहीं बल्कि तकरीबन 100 से अधिक सीईओ होंगे और इसमें भारत की 7 नहीं बल्कि 70 कम्पनियां होंगी। हां, इससे प्रतिभाएं यहीं रह कर, इनकी सीईओ बनेंगी और हमारी प्रतिभाओं को पलायन कर अवसरों की खातिर सात समंदर पार की उड़ान नहीं भरना होगा।