पेरिस हमला कारण, प्रभाव तथा निदान

पेरिस में हुए आतंकवादी हमले को २४ घंटे भी नहीं बीते और तुर्किस्तान में इसिस का आत्मघाती हमला हुआ। दक्षिण तुर्की में आत्मघाती हमला करने वाले चारों आंतकवादियों को खत्म कर देने में स्थानीय पुलिस सफल रही। जी-२ परिषद के एक दिन पहले इसिस का यह आत्मघाती हमला हुआ। उसमें चार पुलिस वाले भी घायल हुए। उसके बाद पुलिस बल द्वारा आंतकवादियों के संदेहास्पद अड्डों पर छापे की कार्यवाही की गई।

पुलिस जांच तेजी से आगे बढ रही है। बेल्जियम में रहनेवाले तीन भाइयों पर इस हमले में शामिल होने का संदेह स्थानीय पुलिस को है। इसमें २६ वर्षीय सलाह अब्देस्लाम ज्यादा खतरनाक गिना जा रहा है। पेरिस के हमले के बाद पुलिस से बचकर निकल जानेवाला आठवां आतंकवादी यही है। हमले के दौरान मारे गए लोगों के लिए आयोजित शोकसभा में एक अलार्म के बजते ही फायरिंग की अफवाह के कारण अफरातकरी मच गई। श्रद्धांजलि के लिए रखे गए फूलों तथा मोमबत्तियों को रौंदते हुए लोग भागने लगे। पेरिस हमले के आठवें हमलावर को पकठने के लिए सुरक्षा संस्थाओं की ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नोटिस भी जारी किया गया।

इसिस का भस्मासुर बढने जा रहा है :- दुनिया को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता का ज्ञान देने वाले फ्रांस पर हुए आतंकवादी हमले से पूरी दुनिया स्तब्ध है। पूरा विश्व इस हमले का विरोध कर रहा है। दूसरे महायुद्ध के बाद पहली बार फ्रांस को इस प्रकार के क्रूर हमले का सामना करना प़ठा। ईराक, सीरिया तथा अन्य पश्चिम एशियाई देशों में जिस इसिस ने आतंक का कहर बरपाया है, वह इसिस इस क्रूर हमले की जिम्मेदारी स्वीकार कर रहा है। पेरिस में पूर्व नियोजित षठयंत्र के तहत ए छह हमले किए गए। जिस स्टेठियम में जर्मनी तथा फ्रांस के बीच क्रिकेट की मैत्रीपूर्ण प्रतियोगिता चल रही थी उसी स्टेठियम के अंदर-बाहर कठी सुरक्षा होने के बावजूद ए बम विस्फोट हुए, इससे इस आतंकवादी हमले की तीव्रता का अंदाज लगाया जा सकता है।

इनमें से चार आत्मघाती हमलावर थे। इनमें से कुछ हमलावर हजारों दर्शकों से भरे स्टेठियम में घुसने में सफल हो गए होते तो इससे कहीं अधिक जनहानी हुई होती। इसके १० महीने पहले पेरिस की ही व्यंग्य चित्रों के लिए प्रसिध्द शरली हेब्दो पत्रिका के कार्यालय पर हमला हुआ था। इसिस द्वारा किए गए इस हमले में १० पत्रकार मारे गए थे। इस हमले के बाद फ्रांस के गुप्तचर विभाग ने बताया था कि आनेवाले समय में और भी आतंकवादी हमले हो सकते हैं, जिसके लिए आवश्यक सावधानी रखने की सलाह भी दी थी। परन्तु यह हमला इतना नियोजित तथा भीषण होगा इसकी जानकारी गुप्तचर आपातकाल विभाग को भी नहीं रही होगी।

सम्पूर्ण फ्रांस में आपातकाल लागू – ग्रीस में शरणार्थियों के रूप में आए, दो आतंकवादी इस हमले में शामिल थे। जाहिर है शरणार्थियों के घुसने से इसिस का अपने आतंकवादियों को यूरोप में शरणार्थियों के रूप में घुसाना आसान हो गया है। ईराक सीरिया तथा अन्य पश्चिमी एशियायी देशों में आश्रय लिया है। अकेले जर्मनी में इन शरणार्थियों की संख्या ३ लाख से अधिक है। हमले में मारे गए दो हमलावरों से सीरियन निर्वासितों के पासपोर्ट जब्त हुए हैं। लोगों में आक्रोश है। सम्पूर्ण प्रांत में आपातकाल लगा दिया।

पिछले कुछ वर्षों में अलकायदा तथा तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ इसिस का भी नाम जु़ठ गया है, जिसने सिरिया व इराक के आधे भाग पर कब्जा जमाकर आतंकवादी गतिविधियों की हद पार कर गैर मुसलिमों के साथ साथ आतंकवादी गतिविधियों में सहभागी बनने से इनकार करनेवाले मुसलमानों की भी हत्या ये आतंकवादी कर रहे है। सीरिया में तैनात यूरोप व अमेरिका के नागरिकों तथा सैनिको का अपह कर उनका सर कलम करने का आतंकवादियों ने अभियान चला रखा है। अपनी दहशत को फैलाने के लिए इसिस ने इन चित्रों को सोशल मिठिया पर भी पोस्ट कर रखा है।

इसिस के नेता बगदादी कोे पश्चिम एशिया में एक नया देश बनाना है। उसके लिए उसने स्वयं को मुसलमानों का खलीफा घोषित कर आतंकवाद को जेहाद का नाम दिया है। सिरिया में इसिस को गिराने के लिए अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन के हमले चालू हैं। ऊपरी तौर पर तो उनकी इस मोहीम को रोकने के लिए इसिस आतंकवादी हमले कर रहा है परंतु इनके पीछे केवल इतना ही कारण नहीं है।

इस्लामिक उग्रवादियों के लिए फ्रांस शत्रु हैं –  उग्र इस्लामिक फ्रांस को अपना शत्रु मानते हैं। सीरिया, अल्जीरिया, टयूनिशिया, मोरक्को आदि देश फ्रांस के उपनिवेश थे। इन उपनिवेशों में से कई अरब फ्रांस में आ बसे। उनको बराबरी का दर्जा भी दिया गया। पर वे फ्रांस की मुख्यधारा में समाहित नहीं हो पाए। इसिस में भरती होने वालों में फ्रांस से गए हुए सदस्यों की संख्या ध्यान देने योग्य है। इसके अलावा फ्रांस की आधुनिक विचार धारा में संघठित धार्मिकता को कोई स्थान नहीं है। फिर वह कोई भी हो। यह बात भी उग्र मुसलिम विचारा धारा वालों को असहनीय है। फ्रांस के संविधान के अनुसार धर्म या वंश के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता, इसके बावजूद इस प्रकार के हमले हो रहे हैं। अभी अभी हुए आतंकवादी हमलावरों को कहां से शस्त्र प्राप्त हुए तथा ये कहां से फ्रांस में घुसे ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही हैं।

इसिस का भूत कैसे खड़ा हुआ – इसका विचार करते समय अलकायदा का स्मरण होना स्वाभाविक है। अमेरिका ने सोवियत गणराज्य के विरूध्द ख़ठी होने वाली किसी भी शक्ति को समर्थन देने की निती स्वीकार की है। उसी के परिणाम स्वरूप ओसामा बिन लादेन जैसे भस्मासुर पैदा हुए। सीरिया की असद सरकार के विरूध्द ख़ठे  विद्रोहियों को अमेरिका खाद पानी दे रहा है। और इसिस भी असद सरकार के विरुध्द शस्त्र लेकर ख़ठा है। उधर रशिया असद के समर्थन में खुलकर ल़ठ रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में पोप फ्रांसीस ने फ्रांस के ऊपर हुए हमले का विरोध करते हुए तीसरे महायुद्ध की और संकेत किया। यदि उसे टालना है तो अमेंरिका-फ्रांस-रशिया इन नए मित्रों को अपनी नीति पर पुर्नविचार करना होगा। इसिस का भस्मासुर अब इतना बढ़ गया है कि उसने अलकायदा व तालिबान को बहुत पीछे छोठ दिया है। इसके लिए उसने अमेंरिका सहित दुनिया भर के राष्ट्रों के मुसलिम युवकों को भठकाने का काम शुरू कर दिया है। उनको जिहाद के लिए तैयार किया जा रहा है। और उनके आव्हान को दुनियाभर के बंद दिमाग के लोग साथ दे रहे हैं।

आतंकवाद के विरुद्ध सर्वसमावेशक व्यापक नीति बनाई जाए- आतंकवाद की जठें बहुत गहरी हैं। उसका मुकाबला केवल बंदूक से नहीं।  किया जा सकता। इस बात को विश्व समुदाय को समझ जाना चाहिये। आज पेरिस पर हमला हुआ इसलिए पेरिस पुलिस सतर्क है। कल लंदन या न्यूयार्क पर हमला होगा तब क्या होगा? सारी सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर आतंकवाद के सभी पहलुओं का विचार कर सभी देशों को साथ में आकर आतंकवाद के विरुद्ध ल़ठने की रणनीति बनानी चाहिए। आतंकवाद के सही चेहरे पहचानकर यह निश्चित करना होगा कि क्या करना है। हर बार अलग-अलग देश अपनी ल़ठाई ल़ठे, इसके बजाय सभी देश आतंकवाद को वैश्विक समस्या मानकर एकसाथ बैठकर सव्रसम्मत नीति बनाकर उसका समूल निराकरण करं। दुर्भाग्य से पश्चिमी राष्ट्र आतंकवाद के संदर्भ में दोहरा मापदंठ अपनाते हैं। पाकिस्तान के विरुद्ध भारत के द्वारा अनेक सटीक तथ्य या प्रमाण सामने रखने के बावजूद अमेरिका ने आंखें बंद कर रखीं हैं। अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को जो आर्थिक सहायता दी जाती है उसी धन से पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को धन, शस्त्र तथा बारूद की पूर्ति की जाती है। समय-समय पर भारत द्वारा अमेरिका को दूसरी जानकारी प्रमाण सहित दिए जाने के बाद भी अमेरिका इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। इस दोगलेपन को छो़ठकर पश्चिमी राष्ट्र पूरी इमानदारी से इस ल़ठाई को ल़ठेंगे, तभी आतंकवाद समाप्त हो सकेगा। अन्यथा भारत की तरह सभी देशों को आतंकवाद के दंश का सामना करना प़ठेगा।

इसिस का प्रभाव रोकने के लिए भारत में उपाय योजना- भारत तथा अन्य एशियाई देशों से इसिस में भर्ती होने के लिए निकले हुए युवकों को पुलिस ने अपने कब्जे में लिया था। भारत के अनेक युवक इसिस में शामिल हुए थे। उनमें से कुछ सीरिया में मारे गए। उनमें से कुछ को भारत वापस लाने में हम सफल भी हुए। अनेक शिया युवकों को इसिस के विरुद्धलठाई में शामिल होना था। पर उन्हें समय रहते ही रोक दिया गया। भारत सरकार की इसिस पर नजर है। इसमें हम बहुत हद तक सफल भी हैं।

मुम्बई कितनी सुरक्षित – अभी पेरिस पर हुआ हमला २००८ में २६/११ को हुए मुम्बई के हमले की तरह ही था। इन दोनों हमलों के पीछे का उद्देश्य जनता में दहशत निर्माण करना तथा यह प्रदर्शित कर देना था कि ‘तुम्हारी सरकार तुम्हारी सुरक्षा में सक्षम नहीं है।’ पेरिस पर हमला पूर्वयोजना के अनुसार तथा सूत्रबद्ध था। एक समय में अनेक स्थानों पर गोलीबारी तथा बमविस्फोट होना इसका प्रमाण है।

देढ से पौने दो करोड़ की जनसंख्या वाले मुम्बई की सुरक्षा इतनी सहज नहीं है। इतनी बड़ी जनसंख्या वाले तथा अस्त व्यस्त फैलाव वाले शहर में कीतनी भी पुलिस संख्या बढ़ाई जायें तो भी नजर रखना असम्भव है। उपनगरीय रेल्वे से रोज साठ लाख, बेस्ट बस से रोज ३० से ३५ लाख लोग यात्रा करते हैं। उनकी जांच सम्भव नहीं है। हर एक के सामान की जांच कैसे की जा सकती है। मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के बाद सुरक्षा के उपायों पर कई योजनाएं बनाई गईं। परंतु ये योजनाएं केवल कागज पर ही रह गईं। फ्रांस की घटना से हम कुछ सीख ले सकेंगे क्या? अन्य शहरों की बात दूर है, आतंकवाद में देश को प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले मुम्बई शहर में भी सुरक्षा व्यवस्था में पिछले सात वर्षों में कितना सुधार हुआ है?

प्रशिक्षित आतंकवादी सुरक्षा दलों के घेरे को तोड़कर मुम्बई में पहुंच गए। इस हमले के बाद राज्य सरकार तथा केंन्द्र सरकार के गुप्तचर विभाग एक दूसरे की ओर उंगली उठाने लगे। प्रधान समिति की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस को अधुनिक शस्त्र तथा सैनिक गाड़ियों से सुसज्जित किया गया। समुद्री रक्षक दलों तथा तटरक्षक दलों के सहयोग के लिये पुलिस की भी चौकीयों का गठन किया गया। सागर की सुरक्षा के लिए पुलिस को नौकायें भी दी गई। पर आज इनमें से आधी नौकायें बंद है। समुद्री पुलिस चौकियां खाली पड़ी हैं। बुलेटप्रूफ जैकेट की आपूर्ति भी की गई। हालांकी इसकी खरीदी के समय भी अफरातफरी का माहौल था। शहर में सीसी टी व्ही लगाने का काम सात साल बाद भी बहुत प्राथमिक अवस्था में है। आतंकवाद के खतरे से सबसे अधिक प्रभावित इजराइल ने जैसी सुरक्षा व्यवस्था बनाई है वैसे ही सुरक्षा व्यवस्था सभी शहरों में होनी चाहिए। इजराइल के येरुशलम सहीत अन्य शहरों पर आंतकवादी साया हमेंशा बना रहता है। उसके द्वारा शहर भर में लगाए गये कैमरे से अधिक रफ्तार से चलने वाली या गलत दिशा में जानेवाला कोई वाहन छूटता नही। कहीं पर भी हो रही भागम भाग की तत्काल सूचना स्वचलित तंत्र से दे दी जाती है। पुलिस दल का सक्षमीकरण समुद्री सुरक्षा और गुप्तचर विभाग के पुनर्गठन की जरुरत है। २००८ के हमले के बाद सभी सुरक्षा तंत्रों के बीच समन्वय के लिए स्वतंत्र सिस्टम बनाने का निश्चय हुआ। परंतु आज तक इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की तर्ज पर राज्यों में भी सुरक्षा समिति बनाने का निर्णय हुआ था। पर इस पर भी उदासीनता दिखाई दे रही है। प्रति वर्ष बड़े शहरों की सुरक्षा का ऑडिट होना जरूरी है। वहां की स्थिति, महत्वपूर्ण स्थान इस बीच दुनिया भर में घटित घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में सुरक्षा व्यवस्था में समय समय पर बदलाव की अवश्यकता है।

आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई यह केवल खुद के लिए – भारत के प्रधान मंत्री लंदन में आतंकवाद पर चिंता व्यक्त कर आतंकवादियों  को अलग अलग करने को कह रहे थे। तब पेरिस में आतंकवादी खुलकर निरपराध लोगों के बीच मारकाट मचा रहे थे। आतंकवाद की विभीषिका का कहर सबसे अधिक भारत ने ही भोगा है। परंन्तु खुद को ताकतवर -हिम्मती समझने वाले यूरोपीय राष्ट्र भी इस हमले में अपना बचाव नहीं कर पाये। अमेरिका के एबामा सहित दुनिया भर के देशों ने पेरिस पर हमले का विरोध किया। इसे मानवता के विरुद्ध हमला बताया। परंन्तु केवल शब्दों से आतंकवाद रुक पाएगा क्या? पाकिस्तान जैसे देश भी जब इन हमलों का विरोध करते हैं, तब हंसी आती है। पाकिस्तान आतंकवाद की विैश्वक कंपनी है। इस सत्य को स्वीकार करना पडेगा। पर जब तक खुद की कुर्सी के नीचे बम नहीं फूटता तब तक अमेरिका तथा यूरोपियन राष्ट्र को भारत की तड़प महसूस नहीं हो सकती। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल खुद ही लड़नी होती है। भारत ने भी इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए। आतंकवाद के विरुद्ध यह युद्ध हमें स्वयं अपनी ताकत पर लड़ना होगा।

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