हिमाचल प्रदेश के इस अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते हुए क्षेत्र में भारत तथा चीन को जोड़ने वाले दो प्रमुख दर्रे हैं जिनके नाम खिमोकुल दर्रा तथा सिमथोंग दर्रा है जो तिरुनगला घाटी के बाद पड़ते है। यह क्षेत्र अत्यंत दुर्गम है तथा इन क्षेत्रों को हर समय निगरानी में रखना अत्याधिक कठिन है और यह बात चीन भी भली-भांति समझता है। इसलिए यह क्षेत्र राजनीतिक तथा सैनिक हलचल से तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित होते हैं।
हिमाचल प्रदेश भारत के छोटे परंतु सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है। इस सीमावर्ती और पर्वतीय राज्य का महत्व न केवल पर्यावरण और भौगोलिक संवेदनशीलता के कारण है, बल्कि सीमावर्ती होने के कारण सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, सामरिक और विदेश नीतियों के निर्धारण में एक विशिष्ट भूमिका निभाता है। उत्तर में हिमालय पर्वत की धौलाधार श्रेणियां और दक्षिण-पूर्व की शिवालिक पर्वतमालाएं हिमाचल को अन्य पर्वतीय राज्यों की तुलना में सांस्कृतिक तौर पर भी अलग करती हैं, क्योंकि छोटा राज्य होने के बावजूद भी हिमाचल में सांस्कृतिक और सामाजिक भिन्नताएं तुलनात्मक रूप से अधिक है। यह भिन्नताएं यहां के वासियों के रहन-सहन के साथ-साथ यहां की राजनीति को भी प्रभावित करती रही है।
हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख की भांति ही अपनी सीमाएं चीन अधिकृत तिब्बत के साथ साझा करता है। चीन अधिकृत तिब्बत के साथ लगती हुई हिमाचल प्रदेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा की लंबाई लगभग 260 किलोमीटर है जो कि कई स्थानों से आवाजाही के लिए प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होती थी। यह सीमा काफी विस्तरित है लेकिन इस बारे में अधिक चर्चा नहीं होती। न तो अकादमिक जगत में इस पर कोई ऐसा शोध हुआ है जिसे कि नीति निर्धारण के लिए उपयोग में लाया जा सके और न ही मीडिया तथा सिविल सोसाइटी इस पर अधिक बात करते हैं। इसका मुख्य कारण है कि यह राज्य जम्मू कश्मीर की भांति न तो अशान्त है, न ही यहां कोई अलगाववादी आंदोलन चल रहा है तथा न ही कोई बड़े स्तर की तस्करी यहां पर देखने को मिलती है। यही कारण है कि लंबे समय तक इन अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की उपेक्षा भी की गई है।
हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों जिनमें लाहौल स्पीति तथा किन्नौर के जिले आते हैं, वह अपेक्षाकृत रूप से उपेक्षित रहे हैं। करण ये रहे कि, एक तो यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है, भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो यह काफी ऊंचे हैं तथा यहां जनसंख्या भी काफी कम है। लाहौल स्पीति तथा किन्नौर कि यदि तुलना की जाए तो किन्नौर तुलनात्मक रूप से लाहौल स्पीति से अधिक समृद्ध है और यहां जनसंख्या भी अधिक है क्योंकि यहां बागवानी तथा कृषि लाहौल स्पीति से बेहतर है। यदि लाहौल स्पीति का उदाहरण लिया जाए तो ऐसा क्षेत्र है जो काफ़ी सीमा तक शीत मरुस्थल के जैसे हैं। यहां से काफी विस्थापन हुआ है क्योंकि रोजगार के साधनों तथा अवसरों की अनुपलब्धता ने यहां के लोगों को विवश किया है कि वह हिमाचल के अन्य क्षेत्रों में जाएं अथवा हिमाचल से बाहर बड़े शहरों में रोजगार के अवसर ढूंढे। 2011 के सेंसस के अनुसार लाहौल और स्पीति क्षेत्र से विस्थापन के कारण यहां की जनसंख्या में नकारात्मक बढ़ोतरी देखने को मिली है जो कि 2001 के सेंसस के अनुपात में -5.1 प्रतिशत रही है। सीमावर्ती क्षेत्रों से इस तरह का पलायन चिंता का विषय है क्योंकि ऐसे ही खाली हुए गांवों में चीन अपनी विस्तारवादी नीति को साकार करता है।
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित यह क्षेत्र जनजाति क्षेत्र भी है जिस कारण बाहर के लोग यहां आकर स्थाई रूप से बस नहीं सकते हैं। जनजाति क्षेत्रों में कई प्रकार के सरकारी नियम कानून लागू होते हैं ताकि इन क्षेत्रों की नाजुक पर्यावरणीय स्थिति को कायम रखा जा सके तथा वहां के निवासियों के क्षेत्रीय अधिकारों को भी सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन इसकी एक प्रमुख हानि यह हुई है कि यहां बाहर से निवेश बहुत कम पाता है, जिससे रोजगार के अवसरों का सृजन नहीं होता और ना ही यहां मूलभूत सुविधाओं के विकास में निजी अथवा सरकारी निवेश हो पाता है। पर्यटन, जो हिमाचल प्रदेश कि अर्थव्यवस्था का प्रमुख् आधार है, इन क्षेत्रों में विकसित नहीं हुआ है। प्रत्येक प्रकार के विकास के लिए इन क्षेत्रों को सरकारी तंत्र के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है और सरकारी तंत्र राजनीतिक गणित के हिसाब से काम करता है, ये सर्वविदित है। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने के बावजूद भी यह क्षेत्र भारत के अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर स्थित सीमावर्ती क्षेत्रों की तरह अधिक संवेदनशील भी नहीं है।
2020 की गलवान घाटी की घटना ने हालांकि हिमाचल प्रदेश में भी खतरे की घंटी अवश्य बजाई थी जिसके चलते यहां भी भारत तिब्बत सीमा पुलिस ने अपनी चौकसी को बढ़ा दिया है। लाहौल स्पीति के सुमदोह सेक्टर में अप्रैल तथा मई 2020 में चीन के हेलीकॉप्टरों द्वारा घुसपैठ का समाचार सामने आया था, परंतु उन्हें खदेड़ने के बाद से हिमाचल की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर स्थिति शांतिपूर्ण और संतोषजनक बनी हुई है। राज्य को खुफिया तंत्र ने भी इन क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को बढ़ाया है ताकि किसी भी तरह की आपात स्थिति का पता समय रहते चल जाए। स्थानीय लोगों को भी इस कार्य में शामिल किया गया है क्योंकि इन दुर्गम क्षेत्रों की जानकारी स्थानीय किसानों, चरवाहों, इत्यादि को भलीभांति होती है। भारत तिब्बत सीमा पुलिस ने भी अपनी चौकियों को दूरवर्ती क्षेत्रों में स्थापित किया है जिनमें प्रमुख है लुकमा, मोररंग , मोरनी, डोगरी, ऋषि डोगरी, डोमती और निलताह ला के क्षेत्र आते हैं। हालांकि, भारत से अधिक चीन किन्नौर तथा लाहौल स्पीति के साथ लगते हुए अपने क्षेत्रों में ढांचागत विकास तेजी से कर रहा है परंतु इतिहास बताता है कि ये क्षेत्र 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान भी लगभग शांतिपूर्ण रहे थे। यह बात भी जानकारी में आती है कि चीन तथा भारत की सेनाएं इन क्षेत्रों में स्थित दर्रों से कई बार एक दूसरे के यहां घुसपैठ करती है (कई बार सीमाओ का निर्धारण प्राकृतिक चिन्हो के कारण अस्पष्ट हो जाता है) परंतु स्थिति सदैव नियंत्रण में रहती है। हिमाचल प्रदेश के इस अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते हुए क्षेत्र में भारत तथा चीन को जोड़ने वाले दो प्रमुख दर्रे हैं जिनके नाम खिमोकुल दर्रा तथा सिमथोंग दर्रा है जो तिरुनगला घाटी के बाद पड़ते है। यह क्षेत्र अत्यंत दुर्गम है तथा इन क्षेत्रों को हर समय निगरानी में रखना अत्याधिक कठिन है और यह बात चीन भी भली-भांति समझता है। इसलिए यह क्षेत्र राजनीतिक तथा सैनिक हलचल से तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित होते हैं।
अंत में यह कहा जा सकता है हिमाचल प्रदेश को अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने के कारण उस हानि को नहीं झेलना पड़ा है जो भारत के अन्य सीमावर्ती राज्यों को उठानी पड़ी है। यह प्रदेश सदैव सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि यहां से भारी संख्या में सैनिक देश की सेवा करते हैं परंतु युद्ध की स्थिति में अभी तक ऐसा उदाहरण नहीं आया है कि हिमाचल प्रदेश में युद्ध से कोई बड़ी हानि हुई हो जोकि पंजाब, जम्मू- कश्मीर तथा अरुणाचल प्रदेश में हमें देखने को मिली थी। शांत यथास्थिति, जो भूतकाल में भी थी, वह वर्तमान में भी बनी हुई है और भविष्य में भी ऐसी आशंकाएं कम है कि हिमाचल प्रदेश भारत और चीन के बीच सीमा के विवाद का क्षेत्र बन सकता है। हालांकि, चीन एक ऐसा पड़ोसी, और एक प्रकार से शत्रु देश है, जिसकी विस्तार वादी नीति किसी भी शांतिप्रिय देश को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए उग्र बनने पर विवश कर सकती है। इसीलिए भारत भी हिमाचल प्रदेश में अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को लेकर सजग है और यहां की सीमाओं के लिए भी उतनी ही मुस्तैदी रखता है जितनी लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं को लेकर सजगता बरती जा रही है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कोई भी राष्ट्र अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के महत्व को अनदेखा नहीं कर सकता है चाहे वह हिमाचल प्रदेश जैसे शांत क्षेत्र में स्थित क्यों ना हो। इसलिए भारत सरकार तथा प्रदेश सरकार, दोनों ने ही, इस क्षेत्र में विकास की गति को तीव्र किया है। आम जनमानस का विश्वास जीतने का प्रयास किया है तथा युद्ध की स्थिति में आंतरिक तौर पर कोई समस्या ना खड़ी हो इस बात को भी सुनिश्चित किया है।
राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश के लोगों का अभूतपूर्व योगदान रहा है यह गौरवपूर्ण परंपरा सदैव कायम रहे ऐसा प्रयास राज्य के लोगों तथा सरकार की ओर से लगातार होता रहा है। यह देवभूमि अपने वीर भूमि की परिपाटी को कभी ना छोड़े , ऐसा भाव हिमाचल प्रदेश को अन्य सीमावर्ती राज्यों की तुलना में एक अलग पहचान देता है और ऐसी विशिष्टता प्रदान करता है जो भारत के बहुत कम राज्यों को मिली हुई है।
कन्वर चन्द्रदीप सिंह