कर्नाटक से शुरु हुई हिजाब की लड़ाई पर धीरे धीरे खत्म होती नजर आ रही है। राज्य के कई स्कूलों को खोल दिया गया और छात्राओं से हिजाब को क्लास के बाहर ही निकालने को कहा गया, लेकिन इस पर अभिभावक और स्कूलों के बीच में झड़प भी देखने को मिली। अभिभावकों की तरफ से यह दलील दी गयी कि छात्राओं का बुर्का क्लास के अंदर जाने के बाद निकलवाया जाए जबकि स्कूल प्रशासन मेन गेट पर ही बुर्का निकालने की अपील कर रहा है। वहीं स्कूल प्रशासन की तरफ से सफाई दी गयी कि हाई कोर्ट के आदेश के तहत यह कदम उठाया गया है। हाई कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई में कहा था कि स्कूल को खोला जाएगा लेकिन शिक्षण संस्थानों में धार्मिक परिधान की अनुमति नहीं होगी।
हिजाब का विवाद उतना बड़ा नहीं है जितना इसे राजनीतिक रूप देकर बड़ा किया जा रहा है और शायद जब तक राजनीति से इसे दूर नहीं किया जाएगा तब तक यह पूरी तरह से खत्म भी नहीं होगा। हिजाब विवाद को अगर आपसी तालमेल से समझा जाए तो यह शायद जल्दी ठीक हो जाएगा लेकिन इसे जानबूझ कर बढ़ाया जा रहा है क्योंकि कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है और तमाम विपक्षी दल इसके द्वारा ही सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे है। कर्नाटक कांग्रेस ने इस पूरी घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और सरकार को घेरा है। इस विवाद को इस्लाम के ऊपर आघात बताया जा रहा है और अल्पसंख्यक समुदाय में यह गलत धारणा फैलाई जा रही है कि बुर्के को बैन किया जा रहा है जबकि यह बात सभी को समझनी होगी कि बुर्का पहनने पर कोई रोक नहीं लगाई जा रही है बल्कि सिर्फ शिक्षण संस्थानों से इसे दूर किया जा रहा है जिससे स्कूलों में समानता हो।
पाठशाला एक ऐसा स्थान होता है जहां जाति या समुदाय पर कोई चर्चा नहीं होती और शिक्षक सभी को समान भाव से शिक्षा प्रदान करते हैं। अधिकतर स्कूलों में इसलिए भी कॉमन ड्रेस की अनिवार्यता होती है कि बच्चों में कोई ऊँच या नीच का भेदभाव ना हो और शिक्षक भी सभी को समान भाव से देखें। अगर शिक्षण संस्थानों में धार्मिक आधार पर कपड़ों की छूट मिलने लगेगी तो आने वाला समय सभी के लिए कष्टकारी होगा और स्कूल की मान्यता एक धार्मिक स्थल के रूप में होने लगेगी। धर्म के आधार पर स्कूल खुलने लगेंगे और सिर्फ चुनिंदा लोगों को उसमें एडमिशन दिया जाएगा। देश के बच्चों के लिए शिक्षा जरूरी है ना कि हिजाब, जिन छात्राओं को शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए उनसे राजनीति करवाई जा रही है यह ना तो उस समाज के हित में है और ना ही देशहित में। इसलिए इस विवाद को जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहिए और पूरे देश के स्कूलों में एक समान ड्रेस कोड करना चाहिए।