हिंदू संस्कृति विरोध के हथकंडे

हथकंडो की क्या बात करे भाई हिन्दू खुद ही जिस डाल पर बैठा है उसे काटने में लगा है बाकी लोग तो बस नीचे से प्रोत्साहन दे रहे है ताकि काम जल्दी हो जाये और जो हिन्दू उनसे काफी ऊपर है उनके ही जैसे पतित हो जाये और हिन्दुओं को लग रहा वो आधुनिक हो रहे है , नीचे एक चित्र से स्प्ष्ट करने का प्रयास करता हूँ।
ख़ैर अब आपने ये पूछा है कि इसमें ये लोग कौन से हथकंडे अपना रहे तो मैं कुछ अपने विवेकानुसार बताता हूँ।
मिशनरी स्कूलों में श्रृंगार की मनाही- आपके बच्चे अगर मिशनरी स्कूल में पढ़ते हो तो आपको पता होगा, यदि नही पता तो मैं बताता हूँ ……!
1। मेहंदी लगा के आने पर टोक
2। तिलक लगा के आने पर रोक
3। पायल पहनने पर रोक
4। किसी भी प्रकार के कलावे या ताबीज पर रोक
5। बच्चे शिक्षकों के पैर नही छु सकतें
6। मिशनरी स्कूलों का दोहरा व्यवहार – अब देखिये कैसे उपरोक्त मामलों में संस्कारों को रोक के अपने जैसा बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
7। फ्रेंडशिप डे स्कूल में मना सकते है और फ्रेंडशिप बैंड भी आपस मे ले दे सकते है (ये लड़को/लड़कियो के लिए प्री वैलेंटाइन जैसा ही त्योहार है ) लेकिन उसी महीने में रक्षा बंधन नही मना सकते।
8। क्रास पहन सकते है देवी देवताओं वाले लॉकेट नही
9। वैलेंटाइन डे भी मना सकते है(घुटनो पे बैठ के प्रपोज़ करने वाला एक हफ्ते का त्योहार) लेकिन उसी महीने में विद्या की देवी माँ सरस्वती के प्राकट्य दिवस वसंत पंचमी नही मना सकते।
10। स्कूल के समारोह या वार्षिक उत्सव मे कोई लोकगीत भी नही गा सकते बाकी अगर यीशु की बड़ाई करनी हो तो परमिशन मिल जाएगी
11। सलवार सूट नही पहन सकते और स्कर्ट आपको घुटने से ऊपर तक वाली पहननी है ताकि अंग प्रदर्शन में कोई कमी न रहें।
लेकिन जैसा हमने ऊपर कहा है वो ये सब कर रहे लेकिन तभी न जब हम अपने बच्चे उनके पास भेज रहे है इसीलिए असली दोषी हिन्दू ही है क्योंकि अगर हम ते कह देंगे कि जो संस्कारित शिक्षा देगा हिन्दुओ के हिसाब से वही पढ़ायेंगे तो सारे स्कूल हिन्दुओ के अनुसार ही चलेंगे।
अब आते है दूसरे मुद्दे पर…
◘ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एवं कुछ बड़ी राष्ट्रीय कम्पनियाँ औऱ अंतरराष्ट्रीय संस्थाये – ये भी समाज मे इस प्रकार के योगदान देने को काफी उत्सुक रहते है लेकिन बस हिन्दुओ का विरोध होना चाहिए जैसे उदाहरण के तौर पे याद दिला देता हूं
सर्फ एक्सेल का हिन्दू मुस्लिम की होली वाला एड
◘ त्योहारों पर न्यूज़ में नकली खोये पकड़े जाने लगते है और बीच मे आने वाले एड में चॉकलेट के प्रचार आते है जो कि सुनियोजित होता है ताकि स्थानीय व्यापारी गलत साबित हो और लोग मिठाई के स्थान पर इनकी चॉकलेट से मुँह मीठा करे और अपने व्यापार को नष्ट करें।
◘ नकली घी और दूध रोज पकड़ा जाता है केवल छोटे लोगो का और कभी बड़ी कम्पनियों के बारे में नही बताया जाता कि ये इतना दूध कहाँ से ले रहे कि पुरा देश पी ले रहा और त्योहारों में भी पूर्ति कर दे रहे उस समय दूध का उत्पादन कैसे बढ जाता है।
◘ डीओ परफ्यूम लगाने से लड़की मिलने में आसानी वाले एड
हाल ही मे हुआ जोमैटो प्रकरण
◘ कई बार ऑनलाइन बाज़ारो में हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीर वाली अपमानजनक वस्तुओ को बेचना
◘ फेयर लवली तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधनो से भारतीय लड़कियो का गोरा होना जबकि साँवलापन जेनेटिक हो और ये वो लोग कह रहे जो तथाकथित रूप से वैज्ञानिक पद्धति फॉलो करते है पता नही कौन सा विज्ञान जीन्स में बदलाव कर रहा है और यहाँ एक बात और कि गोरे रंग को बेहतर साबित करना जबकि ये वैज्ञानिक रुक से सावंले से कम अच्छा है।
◘ पोषक तत्वों के नाम पर हॉर्लिक्स और कॉम्प्लान का प्रचार जिनमे मूंगफली की खली बेच रहे
◘ फिल्मो में दिखाई जाने वाली इतिहास और हमारी संस्कृति की बेज्जती
दीपावली में प्रियंका को दमा हो जाना औऱ कुत्ते का डरना औऱ ये घटना विश्व स्तरीय खबर होना औऱ आश्चयजनक रूप से क्रिसमस तथा न्यू ईयर तक ही ठीक हो जाती है कभी देखा है दम इतनी जल्दी ठीक होते हुए..!
◘ होली में दुनिया मे पानी की कमी हो जाना और इसका प्रचार होना हर्बल कलर के नाम पर ब्रांडेड कलर की बिक्री करवाना ताकि स्थानीय दुकानों के ग्राहक मॉल जाए क्योंकि खुले कलर मॉल में तो बिक नही सकते औऱ न ही ऑनलाइन और वो लोकल बनते है तो ब्रांडेड हर्बल अच्छा है।
◘ आयुर्वेद को घरेलू नुस्खे की तरह प्रचलित करना क्योंकि इसमें दवाएं बनाने का बड़ा कारोबार नही है और न ही नर्सिंग होम चलाने की आवश्यकता।
◘ मकर संक्रांति पे सारे पक्षी मर जाते है लेकिन बकरीद तो प्यार का त्योहार है क्योंकि मुर्गे और बकरे में जान नही होती।
◘ ऑनलाइन खरीददारी को बढ़ावा देना ये बता के की सस्ता बिक रहा और ये छिपा के की घटिया है। अब कुछ लोग कहेंगे हमारा भी तो माल बिक रहा है ऑनलाइन साइटो पर लेकिन ऐसा है नही हमारा माल जो बिक रहा है वो ब्रांडेड आईटमो की तुलना में बहुत कम है और इससे उन्हें ही खास फायदा है, क्योंकि उन्हें ज्यादा शोरूम नही खोलने पड़ते हर जगह औऱ आपके सामान जो बिना ब्रांड के होते है कोई पसन्द भी नही करता जल्दी औऱ इसी बहाने लोकल मार्किट को ब्रांडेड मार्केट आसानी से खा रही है और ये लोकल मार्केट के ही लोग होते है जो हमारे स्थानीय त्योहारों में चंदा देते है ऑनलाइन वाले लोग नही देंगे।
◘ ऊपर लिखी हर बात हमारी अर्थव्यवस्था सन्स्कृति मन औऱ शरीर पर चोट कर रही है जो मुख्यतः दो बातों पर है पहला संस्कार और दूसरा है अर्थ..!
अगर हम ये दोनों बचा ले तो सबकुछ ठीक रहेगा इसके लिए हमे स्वदेशी उत्पाद अपनाने होंगे यहाँ एक बात बता दूँ की स्वदेशी, देशी और विदेशी में भी बहुत अंतर होता है।।! स्वदेशी वो जो आपके इलाके में ही बनता हो(20km) में जैसे खोये की मिठाईया अनाज कुम्हार के बर्तन या कोई भी उत्पाद जो स्थानिय लोग बनाते हो फिर देशी जैसे सेब कपड़े या जो भी उत्पाद आपके पास देश के दूसरे हिस्सों से आता है और विदेशी तो जानते ही है।
तो हमे स्वदेशी को बढ़ावा देना है औऱ जो स्थानीय रूप से नही मिलता उसके लिए देशी उत्पाद क्योंकि पहले अपने लोगो का व्यापार मजबूत करना होगा। तभी आप इन शक्तियों का मुकाबला कर पाएंगे बहुत लिख दिया इसके लिए क्षमा चाहूँगी लेकिन आवेश में अक्सर ऐसा हो जाता है।

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