परमाणु शस्त्र सम्पन्न भारत

भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु चीन की आक्रामक नीतियों को देखते हुए जल्द ही परमाणु ट्रायड की पूरी व्यवस्था विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। भारतीय नौसेना के पास कम से कम चार एस.एस.बी.एन., छः एस.एस.एन. तथा एक परमाणु वायुयानवाहक युद्धपोत होने चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करना भारत के लिए असंभव नहीं है।

बींसवी शताब्दी मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण शताब्दी थी। इस शताब्दी में अस्सी प्रतिशत विज्ञान का विकास हुआ। अमेरिकन वैज्ञानिकों ने 16 जुलाई 1945 में न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में विश्व का पहला परमाणु विस्फोट (कोड नाम ट्रिनिटी) कर एक नये परमाणु युग का प्रारंभ किया। अमेरिकी सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम समय में जापान को पराजित करने हेतु 6 और 9 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी पर एक-एक परमाणु बम गिराया था। भयंकर तबाही के कारण जापान ने 2 सितम्बर 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके पश्चात विश्व की सभी बड़ी शक्तियों में परमाणु शक्ति विकास की होड़ लग गई। फलस्वरूप सोवियत संघ 1949, ब्रिटेन 1952, फ्रांस 1960 और चीन 1964 में परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बने। इस तरह से विश्व में पांच परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हो गए।

भारतीय नीति निर्धारकों ने भी सुरक्षा और विकास के लिए परमाणु विज्ञान और तकनीक के महत्व को समझते हुए  1954 में भाभा परमाणु विकास केंद्र की स्थापना की। भारत ने अपना प्रथम परमाणु परीक्षण विस्फोट शांतिपूर्ण विकास कार्यों के उद्देश्य से 18 मई 1974 में किया था। इस प्रकार भारत विश्व का छठा परमाणु तकनीक वाला देश बन गया। भारतीय परमाणु विद्युत ऊर्जा उत्पादन कार्यक्रम की शुरुआत हुई। विश्व रणनीतिक परिदृश्य और क्षेत्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं को देखते हुए भारतीय नीति निर्धारकों ने मई 1998 में पुनः पांच न्यूक्लियर विस्फोट (फिजन और फ्यूज़न) कर यह कहा कि भारत परमाणु शस्त्र के संदर्भ में नो फर्स्ट यूज की नीति का पालन करेगा। परमाणु क्षमता के सफल क्रियान्वयन से संबंधित सुविधाओं का भी विकास किया गया। भारत सरकार ने कभी भी परमाणु बमों की संख्या को नहीं बताया, लेकिन अन्य दूसरे स्रोत इसे 50 से 100 के बीच बताते है। यद्यपि भारत ने पिछले दो दशकों में वायु और थल से इन बमों को लक्ष्य तक सफलतापूर्वक लांच करने में काफी सफलता और क्षमता हासिल कर ली है। लेकिन अभी पानी के अंदर से पनडुब्बियों और अंतरिक्ष से इन बमों को लक्ष्य तक पहुंचाने की तकनीक व क्षमता का विकास कार्यक्रम चल रहा है। इसके पश्चात ही भारत के पास परमाणु ट्रायड की क्षमता हासिल हो सकेगी। अभी अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ही परमाणु ट्रायड शक्ति सम्पन्न देश है। इन शस्त्रों के सफल उपयोग के लिए जी.पी.एस. (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अमेरिका, रूस और चीन के पास तो अपने जी.पी.एस. सिस्टम है; लेकिन ब्रिटेन, फ्रांस और भारत अमेरिकन जी.पी.एस. सिस्टम का ही उपयोग करते है। जी.पी. एस. सिस्टम और परमाणु पनडुब्बी निर्माण की तकनीक अत्यंत जटिल और खर्चीली है।

किसी भी देश के परमाणु शस्त्र क्षमता के चार प्रमुख आधार होते हैं- परमाणु बम/शस्त्र, सुरक्षित रखने की व्यवस्था, प्रक्षेपण साधन और दिशा एवं लक्ष्य मार्ग निर्देशन क्षमता। भारत के पास इनमें से परमाणु शस्त्र और इनके प्रक्षेपण की पूरी क्षमता है। लेकिन अभी इनको पूरी तरह से सुरक्षित रखने एवं जी.पी.एस. सिस्टम की कमी है। परमाणु बमों के प्रक्षेपण के लिए भारत के पास अग्नि श्रृंखला के मध्यम तथा लम्बी दूरी के विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपास्त्र मौजूद है। भारत में अभी हाइपरसोनिक प्रक्षेपास्त्र का विकास नहीं हो सका है। इनके विकास के पश्चात भारत भी अंतरिक्ष से परमाणु प्रक्षेपण की क्षमता हासिल कर लेगा। इन विध्वंसक शस्त्रों को रखने का सबसे अधिक सुरक्षित प्लेटफार्म परमाणु पनडुब्बी होता है। क्योंकि परमाणु पनडुब्बी परमाणु ऊर्जा से चलित होने के कारण लम्बे समय तक काफी नीचे लगभग 600 से 700 मीटर की गहराई तक चलने में सक्षम होती है। लगातार चलते रहने के कारण इनको आसानी से निशाना बनाना कठिन होता है। केवल कुछ ही देशों के पास परमाणु पनडुब्बियों का पता लगाकर कर निशाना लगाने की क्षमता है। ब्रिटेन और फ्रांस ने तो अपने पूरे परमाणु शस्त्रों को अपने परमाणु पनडुब्बियों में लगा रखा है। भारत में भी एडवांस टेक्नोलॉजी वेसिल प्रोजेक्ट के तहत परमाणु पनडुब्बियों (एस.एस.बी.एन.-सबमर्सिबिल शिप बैलिस्टिक न्यूक्लियर) का निर्माण कार्य विशाखापट्टनम यार्ड पर चल रहा है। पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आई.एन.एस. अरिहंत को 2018 में नौसेना में शामिल किया जा चुका है। दूसरी परमाणु पनडुब्बी ’अरिधाट’ का निर्माण कार्य प्रगति पर है। विशाखापट्टनम से लगभग 50 किलोमीटर दूर रामाबिल्ली नामक स्थान पर निर्माणाधीन ’आईएनएस वर्षा’ बेस पर इन पनडुब्बियों को सुरक्षित रखने और रखरखाव से संबंधित आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। भारत ने अपने सामुद्रिक सुरक्षा और दिकचालन के लिए सात उपग्रहों (चार पोलर ऑरबिटिंग और तीन भूस्थैतिक उपग्रह) पर आधारित आई.आर.एन.एस.एस.- नाविक नैविगेशन सिस्टम का विकास किया है। लेकिन इस व्यवस्था का उपयोग केवल मात्र 1500 किलोमीटर तक ही सीमित है। भविष्य की दिकचालन आवश्यकताओं और रणनीतिक चुनौतियों को देखते हुए भारत को भी अपना जी.पी.एस. सिस्टम विकसित करना होगा। इन सब कार्यों को पूरा करने के पश्चात ही भारत ’परमाणु ट्रायड’ क्षमता सम्पन्न देश बन सकेगा। भारत के पास कितने परमाणु शस्त्र हैं तथा इन्हें कहां-कहां पर सुरक्षित रखा गया है इस बात की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है।

1945 में जब परमाणु बम को अमेरिका ने जापान पर गिराया, तो पूरे विश्व ने इसकी विध्वंसक क्षमता को देखा। लेखकों और रक्षा विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि अब पूरी मानव सभ्यता का संपूर्ण विनाश निश्चित है। लेकिन विश्व में पहली बार ऐसा देखा गया कि महाशक्तियों ने पराजित होकर वापस हटना स्वीकार किया लेकिन परमाणु शस्त्रों का उपयोग जीत हासिल करने के लिए करना उचित नहीं समझा। अमेरिका वियतनाम और अफगानिस्तान से बिना किसी जीत के ही वापस लौट गया जब कि इन दोनों देशों को वह बहुत आसानी से परमाणु बमों से समूल नष्ट कर विजय हासिल कर सकता था। उसे किसी भी प्रकार के परमाणु काउंटर आक्रमण का भी खतरा नहीं था। लेकिन अमेरिकी शासन ने अपमानजनक वापसी स्वीकार की और परमाणु बमों का सहारा विजय हासिल करने के लिए नहीं किया। इसी तरह से सोवियत संघ ने भी अफगानिस्तान से पराजित अवस्था में वापस लौटना स्वीकार किया लेकिन परमाणु शस्त्रों का उपयोग नहीं किया। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात परमाणु शस्त्रों ने युद्धों को सीमित रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस दौरान परमाणु शक्ति का भरपूर उपयोग विकास के लिए किया गया। परमाणु शस्त्रों ने विश्व में शांति और स्थिरता बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन परमाणु शस्त्र सम्पन्न देश हैं। इन दोनों देशों के साथ भारत का सीमा एवं भू-क्षेत्र विवाद है। दोनों देशों ने भारत पर पूर्व में सैनिक आक्रमण भी किया है। वर्तमान में भारत पाकिस्तान के आतंकवाद और चीन के सीमा संबंधी आक्रामक रुख और दबाव का सामना कर रहा है, लेकिन परमाणु शस्त्रों की वजह से चीन भारत के विरुद्ध कोई बड़ी सैन्य कार्यवाही नहीं कर रहा है। यही बात भारत और पाकिस्तान के बीच भी है। जनवरी 2022 में विश्व के पांच परमाणु शक्ति सम्पन्न देश वर्चुअल मीटिंग कर इस बात पर सहमत हुए कि वे किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियार का उपयोग नहीं करेंगे। उनका तर्क था कि जब परमाणु युद्ध जीता ही नहीं जा सकता है, तो इन विध्वंसक शस्त्रों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

इस शताब्दी के दो दशकों के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व का रणनीतिक एवं आर्थिक रूप से सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है। इस क्षेत्र में चीन के बढते राजनीतिक, सैनिक-नौसैनिक और आर्थिक प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका और उसके प्रजातांत्रिक मित्र देश प्रयत्नशील हैं। चीन के आक्रामक रुख को देखते हुए अपनी सुरक्षा के लिए दक्षिण कोरिया, जापान और आस्ट्रेलिया भी परमाणु पनडुब्बियों को रखना चाहते है। भारत को भी अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु चीन की आक्रामक नीतियों को देखते हुए जल्द ही परमाणु ट्रायड की पूरी व्यवस्था विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। भारतीय नौसेना के पास कम से कम चार एस.एस.बी.एन., छः एस.एस.एन. तथा एक परमाणु वायुयानवाहक युद्धपोत होने चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करना भारत के लिए असंभव नहीं है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों की वजह से लगातार परमाणु पनडुब्बियों और वायुयानवाहक युद्धपोतों का आवागमन हो रहा है। हिंद महासागर जलक्षेत्र का भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास ऑपरेशनल परमाणु पनडुब्बी है तथा वह परमाणु ट्रायड क्षमता विकास की दिशा में गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ रहा है।

                                                                                                                    प्रो. हरी शरण 

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