पूर्व चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ (सी.डी.एस.) जनरल विपिन रावत ने भी कहा था – “यदि जैविक युद्ध शुरू हो रहा है, तो हमें अपने आकार एवं कार्य को एक साथ रखकर यह सुनिश्चित करने के लिए स्वयं को मजबूत बनाने की आवश्यकता है कि हमारा देश इस वायरस या जैविक शस्त्र से प्रभावित न हो।” निःसन्देह सजग, सतर्क व सावधान रहकर अब भारत जैविक शस्त्रों से लड़ने हेतु पूरी तरह से तैयार व तैनात हो गया है।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने जहां मानव को विकास की गगनचुम्बी इमारत से परे अन्तरिक्ष पर पहुंचा दिया है। वहां हथियारों या शस्त्रों की प्रौद्योगिकी प्रगति ने विश्व को विनाश की कगार में लाकर भी खड़ा कर दिया है। नित निरन्तर बदलती हथियार तकनीकी के परिणामस्वरूप युद्ध का रूप व्यापक, विध्वंसक, विनाशकारी एवं प्रलयंकारी बन चुका है। जन संहारक शस्त्रों से सम्पूर्ण संसार आज आतंकित एवं भयभीत है, बल्कि एक भारी सदमे में भी डाल दिया है। चीन के वुहान से शुरू हुआ कोरोना वाइरस या कोविड-19 जैविक शस्त्र का प्रहार, जिसने पूरे विश्व में अपना एक बड़ा दहशत ही नहीं फैलाया, बल्कि भयंकर महामारी का रूप धारण करके मानवीय अस्तित्व के लिए एक बड़ी चुनौती भी खड़ी कर दी। भले ही एक लम्बी अवधि के बाद दुनिया ने कोरोना के इस जैविक हथियार के घातक प्रहार पर नियंत्रण कर लिया है, परन्तु इस जैविक शस्त्र की महामारी ने मानव जीवन को पूरी तरह पस्त-त्रस्त तथा अस्त-व्यस्त के साथ ही मानवीयता को कैद करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी है, जितना कि इससे पहले कभी नहीं हुआ। विश्व भर के 205 देशों तथा क्षेत्रों में जैविक शस्त्र के रूप में कोरोना वायरस ने अपने आगोश में ले लिया। इस जन संहारक जैविक शस्त्र ने दुनिया को बुरी तरह से डराया ही नहीं है, बल्कि अपने एक महाताण्डव का एक भीषण दृश्य खड़ा कर दिया।
एक लम्बी अवधि से समूचा विश्व इस महामारी से लड़ने हेतु व जैविक शस्त्र के काट हेतु कारगर व सटीक टीके का शिद्दत से इन्तजार कर रहा था। इसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने न केवल अपने रात-दिन एक करके जैविक शस्त्र विरोधी कारगर वैक्सीन विकसित की और अपनी अविरल प्रतिभा का परिचय दिया। इसके साथ ही इस महामारी के विरुद्ध महाभियान चलाया और हमारी आत्मनिर्भरता ने भारतीय साख बढ़ायी और अपना परचम दुनिया के देशों तक फहराया। जैविक हथियार सन्दूषकों या संक्रामक एजेन्टों का उपयोग करते हैं जो मूल रूप से जैविक होते हैं। इन्हें ‘रोगाणु युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में जैविक युद्ध मानव जीवन को अस्थिर करने अथवा उसको पूरी तरह से समाप्त करने के लिए गैर-मानव जीवन का शोषण कर रहा है। जैविक हथियारों के निरन्तर नए-नए रूप से एक बार दुनिया अब पूरी तरह दहल चुकी है।
जीवाणु (बैक्टीरिया) अथवा कीटाणु हथियार का अभिप्राय एक ऐसे हथियारों से है, जिसके द्वारा अपने विपक्षी देशों पर विषाणुओं एवं जीवाणुओं को फैलाकर उसे भयंकर रोगों से ग्रसित करना होता है। आचार्य कौटिल्य ने इस प्रकार की युद्ध व्यवस्था का विस्तृत रूप से उल्लेख किया है। यह एक ऐसा युद्ध होता है, जिसमें विपक्षी को शारीरिक एवं मानसिक रूप से अत्यधिक हानि पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। बोटुलिज्म पैदा करने वाला जहर कुछ जीवाणु (क्लेस्ट्रीडियम बोटुलिज्म) बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति इन जीवाणु का शिकार हो जाता है तो उसे मिनट भर में ही लकवा (पैरालिसिस) मार जाता है तथा तन्त्रिकायें सुन्न हो जाती हैं। इसके साथ ही एथ्रैंसिस नामक जीवाणु के प्रभाव से अत्यन्त तेज बुखार, गले में सूजन, सांस लेने में तकलीफ, अत्यधिक उलझन तथा भीतरी अंगों को विशेष रूप से नुकसान होता है। इनके प्रभाव से शारीरिक शिथिलता तो आती ही है साथ ही व्यक्ति अत्यधिक हतोत्साहित भी हो जाता है।
जैविक या जीवाणु युद्ध प्राचीन काल से ही अपनाया जा रहा है, किन्तु अब वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के कारण इसके स्वरूप में अवश्य परिवर्तन आया है। प्राचीन काल में इसका रूप अत्यन्त विकृत था। शत्रु पक्ष के जल स्त्रोतों में सड़ी एवं भयंकर रोग ग्रस्त लाशों को फेंककर उसे रोग ग्रसित करना विशेष रूप से प्लेग, चेचक एवं हैजा जैसी महामारी को फैलाया जाता था, जिससे महामारी के कारण सेना एवं जनता दोनों में ही आतंक छा जाता था। इसका एक लाभ यह भी मिल जाता था कि शत्रु पक्ष को जल्दी से इस बात का अनुमान नहीं लग पाता था कि यह बीमारियां स्वतः उत्पन्न हो गई अथवा शत्रु ने जीवाणु फैलाकर इनको जन्म दिया है। इसके तत्काल तथा स्थायी प्रभाव दीर्घकालिक होते हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय अनेक राष्ट्रों के पास जैविक हथियार थे, परन्तु सौभाग्यवश अथवा भय वश इनका प्रयोग नहीं किया गया। एक अनुमान यह भी है कि अंगोला, कम्पूचिया औार अफगानिस्तान के युद्ध में जीवाणु हथियारों का प्रयोग किया गया था, किन्तु इनके ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं।
जीवाणु हथियारों के अन्तर्गत जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के अलावा घातक विषाणुओं (वायरस) का प्रयोग भी आता है। इन्हें गोलों में भरकर तोपों के माध्यम से बन्द डिब्बों या विस्फोटक बम के रूप में लड़ाकू विमानों द्वारा तथा वार हेड के रूप में प्रक्षेपास्त्रों द्वारा शत्रु के क्षेत्र में गिराया जा सकता है। इन जीवाणु हथियारों से उस समय वहां सम्बन्धित सभी व्यक्तियों को अपनी चपेट में तो लेता ही है, साथ ही एक लम्बी अवधि तक उसका घातक लगातार बना रहता है। इसके साथ ही शत्रु क्षेत्र में जीवाणुओं को पहुंचाने के लिए दैनिक उपयोग के वस्तुओं जैसे-पेन, पेन ड्राइव, शो-पीस, खिलौनों, लाइटर एवं आकर्षक वस्तुओं को प्रयोग में लाया जाता है, ताकि लोगों के सम्पर्क में सरलता के साथ लाया जा सके। जैविक शस्त्र पीने के पानी तथा भीड़ वाले स्थानों पर भी अधिक प्रयोग किया जाता है, ताकि शीघ्रता के साथ अधिक से अधिक लोगों को अपने आगोस में ले सके। जैविक शस्त्र सम्पूर्ण मानवता के लिए एक बड़ा संकट है क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से नजर नहीं आते हैं और न ही तत्काल इसका उपचार सम्भव हो पाता है। जैविक शस्त्र वस्तुतः घातक महामारी पैदा करने वाले जैविक माध्यम होते हैं। जिनका प्रयोग शस्त्र के रूप में किया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयू.एच.ओ.) जैविक शस्त्रों का वर्णन इस प्रकार से किया है- “वायरस, बैक्टीरिया, कवक या अन्य विषाक्त पदार्थों जैसे सूक्ष्म-जीवन जो मनुष्यों, जानवरों या पौधों में बीमारी या मृत्यु का कारण बनने के लिए जान बूझ कर उत्पन्न तथा जारी किए जाते हैं।’ जैविक शस्त्रों के रूप में अनेक प्रकार के रोगाणुओं को प्रयोग में लाया जाता है, इनका इतना सूक्ष्म रूप होता है कि दिव्य यंत्रों की सहायता से देखा नहीं जा सकता। इनको इस जमीन एवं पानी में फैलाया जाता है। छुआछूत का रोग पैदा करने वाले जीवाणु परोपजीवी होते हैं। इनका वर्गीकरण रूप एवं आकार के आधार पर इस प्रकार से कर सकते हैं-
(1) बैक्टीरिया, (2) वायरस, (3)प्रोटोजोओ, (4) फफूंदी (फंगस), (5) स्पाइरो कीट, (6) एन्टी प्रेमाइसिट्स, (7) रिकेट्सिया (8) प्लुरोन्यूमोनिया (9) क्लेस्ट्रीडियम बोटुलिस्म
इनमें से कुछ जीवाणु जहां भयंकर एवं अनुवांशिक रोगों को जन्म देते हैं, वहां कुछ डिप्थैरिया, इन्फलुएंजा खांसी एवं दमा जैसे रोग फैलाते हैं। कुछ जीवाणु बिना किसी स्पर्श के ही हवा के द्वारा एक दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते हैं। यह इतने छोटे आकार में होते हैं कि केवल माइक्रोस्कोप के द्वारा ही इसे देखा जा सकता है। इसी कारण इनके आकार को एक माइक्रोन से अनेक माइक्रोन में आंका गया है। कुछ जीवाणु इतने घातक होते हैं कि उनका विनाश अथवा समाप्ति शीघ्रता के द्वारा औषधियों से भी संभव नहीं हो पाती है।
वास्तव में भारत अब न केवल जैविक शस्त्रों से लड़ने हेतु पूरी तरह से तैयार हो गया है, बल्कि उसको परास्त करने में एक अदम्य साहस एवं आत्मनिर्भरता के स्वयं आत्मविश्वास भी रखता है। कोरोना महामारी की तीसरी लहर को भी तिलांजलि देकर न केवल अपने देश की रक्षा व सुरक्षा की, बल्कि दुनिया के अनेक देशों को अपनी अनन्य प्रतिभा का भी परिचय के साथ सक्रीय सहयोग, समर्थन व सहानुभूति भी दिखाई। कोविशील्ड और कोवैक्सीन के अलावा देश में सात अन्य जैविक हथियार विरोधी वैक्सीन तैयार और तैनाती की। पूर्व चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ (सी.डी.एस.) जनरल विपिन रावत ने भी कहा था – “यदि जैविक युद्ध शुरू हो रहा है, तो हमें अपने आकार एवं कार्य को एक साथ रखकर यह सुनिश्चित करने के लिए स्वयं को मजबूत बनाने की आवश्यकता है कि हमारा देश इस वायरस या जैविक शस्त्र से प्रभावित न हो।” निःसन्देह सजग, सतर्क व सावधान रहकर अब भारत जैविक शस्त्रों से लड़ने हेतु पूरी तरह से तैयार व तैनात हो गया है।
डॉ . माया मिश्रा