आग शिद्दत की सारे जहां में ना फैले

साम्राज्यवाद, विस्तारवाद और खुद की रक्षा के लिए परमाणु शस्त्र संपन्न होने के पागलपन से कल तीसरा महायुद्ध ना हो। वह परमाणु युद्ध होगा जो संपूर्ण विश्व को विनाश की गहराइयों में लेकर जाएगा? रूस और यूक्रेन के युद्ध से निर्माण हुई स्थिति अब किस करवट बदलेगी? इस बात से आज हम सब अनजान है।

रूस राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर हमला करने से पहले ही दुनिया को कहा था ‘मैंने एक स्पेशल सेल ऑपरेशन करने का फैसला किया है। इसमें यूक्रेन का नीरसैनिकीकरण करके उसे नाजी प्रभाव से मुक्त करेंगे। रूस एक ताकतवर परमाणु शक्ति है। रूस के पास कई अत्याधुनिक हथियार हैं। जो कोई भी हमारे बीच आने की कोशिश करेगा उसे उसके परिणाम झेलने होंगे।’ पुतिन ने यूक्रेन युद्ध के बीच अपनी परमाणु फौज को चौकस रहने को कहकर सारी दुनिया को चौंका दिया। यहीं से युद्ध जल्द खत्म ना होने की लकीर खींची गई। परमाणु युद्ध की आशंका दुनिया के सामने एक वास्तविक खतरे के रूप में आ खड़ी हुई है। यूक्रेन पर हमला करके रूस ने अमेरिका और नाटो के बढ़ते कदमों में जंजीर बांध दी है। अमेरिकी खेमा अब तक इस गलतफहमी में था कि रूस एक दबी हुई शक्ति है। लेकिन प्रत्यक्ष युद्ध के समय अमेरिका का मजाक बन गया। अब मुद्दा यह नहीं रहा कि रूस क्या कह रहा है या क्या कर सकता है। अब मुद्दा यह है कि अमेरिका और नाटो किस हद तक रूस को जवाब दे सकते हैं।

यह आलेख लिखने तक समय रूस और यूक्रेन के बीच की जंग सारी दुनिया के लिए चिंता की वजह बनी हुई है। इन सबके बीच यूक्रेन के अधिकतर शहर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। एक सवाल दुनिया भर के करोड़ों लोगों के मन में उभर रहा है कि किसी छोटे राष्ट्र की सार्वभौमिकता मिटाने का अधिकार किसी सामरिक दृष्टि से ताकतवर राष्ट्र को किसने दिया? एक छोटा देश स्वतंत्र निर्णय लेता है, क्या इस कारण उसे तहस-नहस किया जाता है? आज रूस ने यूक्रेन पर लादा हुआ युद्ध अन्य छोटे-छोटे राष्ट्रों के अस्तित्व पर प्रश्न निर्माण करने वाला है। रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया नए परिवेश में आकार लेने लगेगी। इस बात की आहट अब महसूस होने लगी है। रूस जैसे सामरिक शक्ति से संपन्न देश ने यूक्रेन जैसे छोटे राष्ट्र पर आक्रमण किया। इससे अंतरराष्ट्रीय कानून को सीधे-सीधे तोड़ा गया है। रूस के द्वारा आज तक के सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों को तोड़ दिया गया है। इतना ही नहीं, इस युद्ध के कारण अब एक नई विश्व रचना आकार लेने लगी है। वैश्विक स्तर पर नया प्रवाह निर्माण होता नजर आ रहा है। इस संपूर्ण संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। साथ ही नाटो ने भी अपनी भूमिका को किनारे कर दिया है। प्रश्न यह है कि क्या रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद अमेरिका को अब सही में महासत्ता कहा जाए? यूक्रेन रशिया संघर्ष के पहले अमेरिका ने बहुत दहाडें मारी थीं, लेकिन प्रत्यक्ष युद्ध शुरू होने पर अमेरिका पीछे हट गया और यूक्रेन को सहायता देने से अपने हाथ झटका दिए। विश्व में छोटे देश आज असहाय महसूस कर रहे हैं। उनको अपनी सुरक्षा खतरे में दिखाई दे रही है। इसी बात का परिणामस्वरूप आने वाले समय में प्रत्येक राष्ट्र अपनी संरक्षण सिद्धता बढ़ाने का प्रयास करेगा। प्रत्येक राष्ट्र क्षेपणास्त्र, परमाणु अस्त्रों से सज्ज होने का प्रयास करेगा।

रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की ओर से लगाए गए तमाम प्रतिबंधों के बाद भी रूस युद्ध रोकने को तैयार नहीं है। इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की युद्ध रोकने के लिए प्रयास करते दिख रहे हैं। इसी कड़ी में यूक्रेन ने ऐलान किया है कि वह नाटो में शामिल नहीं होगा। इस ऐलान से भी रूस के तेवर नरम नहीं हो रहे हैं। दरअसल कई साल से अमेरिका यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने की कोशिश में लगा था। यूक्रेन भी सदस्य बनने के लिए तैयार था। इस बीच रूस को लगने लगा कि नाटो के जरिए उसे घेरने की तैयारी हो रही है। ऐसे में रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ गया और नतीजा युद्ध तक पहुंच गया। अब जबकि यूक्रेन यह आश्वासन दे रहा है कि वह नाटो में शामिल नहीं होगा, तो रूस इस युद्ध को क्यों नहीं रोक रहा है?

रूस यह कह रहा है कि यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो रूस की सुरक्षा को खतरा निर्माण हो सकता है। इस कारण युक्रेन को सबक सिखाने के लिए यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध किया जा रहा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन की यह दलील सही नहीं है। सही कारण तो कुछ और ही है। दुनिया पर अपना प्रभाव प्रस्थापित करने के लिए और अमेरिका के समान अपना भी प्रभाव क्षेत्र होना चाहिए, इस महत्वकांक्षा से प्रेरित होकर रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर यह हमला किया है। यही रूस-यूक्रेन युद्ध का मुख्य कारण है। बहरहाल युद्ध का मामला लंबा खिंचा गया है। अब रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंध बहुत कड़े हो गए हैं। अब रूस की अर्थव्यवस्था और पुतिन की छवि दोनों विकृत हुए बिना नहीं रहेगी। अमेरिका और नाटो की प्रतिष्ठा तो धूमिल हो ही गई है। क्या ऐसी स्थिति में चीन की चमक बढ़ेगी? क्या चीन विश्व में सबसे बड़ी सामरिक ताकत बनकर उभरेगा? समझा जाता है कि पुतिन ने यूक्रेन संबंधी अपनी योजनाओं पर शी जिनपिंग से 4 फरवरी को चीन यात्रा के दौरान विचार विमर्श कर लिया था। यह बाद आए बयानों से स्पष्ट भी हुआ। जिसमें रूस ने कहा कि वह ताइवान मसले पर चीन का समर्थन करेगा। ताइवान मसले पर चीन को रूस का समर्थन यूक्रेन मामले में पुतिन और शी जिनपिंग में बनी आपसी सहमति का ही एक हिस्सा है।

इस सारे माहौल में चीन के रक्षा बजट में अचानक आई अप्रत्याशित बढ़ोतरी ने सबका ध्यान खींचा है। चीनी वित्त मंत्रालय ने देश में रक्षा पर होने वाले खर्च में 7.1 फ़ीसदी का ऐलान किया है। यह बढ़ोतरी ऐसे समय आई है जब चीनी सेना के आधुनिकीकरण का कार्यक्रम पहले से ही जोर-शोर से जारी है। चीनी सरकार के मुताबिक अब मिलिट्री ट्रेनिंग के जरिए युद्ध के लिए तैयार रहने की स्थिति मजबूत करने पर ध्यान दिया जाएगा। भारत में रक्षा पर होने वाले खर्च के मुकाबले यह राशि तीन गुना ज्यादा है। मगर असल सवाल यह है कि रक्षा पर खर्च बढ़ाकर चीन संदेश क्या देना चाहता है ? क्या इसका मतलब यह है कि ताइवान और हांगकांग से जुड़े मसलों पर चीन की आक्रामकता बढ़ने वाली है? खासकर लद्दाख में एलएसी पर जहां पिछले करीब दो साल से दोनों तरफ बड़ी संख्या में सैनिक तैनात है। चौदह दौर की बातचीत के बाद भी भारत-चीन तनाव में कमी नहीं आई है। युद्ध के परिणाम के कारण आर्थिक दृष्टि से आने वाला समय बहुत कठिन है। रूस और चीन के संबंध और बढ़ते हैं तो भारत पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है। हम देख चुके हैं कि रूस हिंद प्रशांत महासागर के कारण वहां दखल नहीं दे रहा है फिर भी उसने चीन के माध्यम से भारत पर दबाव डालने की कोशिश की है। हालांकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी विदेश नीति किसी के दबाव में आकर नहीं तय करेगा। लेकिन रूस चीन के बढ़ते रिश्तों को लेकर भारत को सोचना ही होगा। अगर रूस अपनी सारी तकनीक चीन के साथ जोड़ता है तो भारत के लिए परेशानी खड़ी होगी। चीन के साथ युद्ध के टकराव की स्थिति में भारत को उसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध को लेकर भारत का रुख अभी तक न्युट्रल रहा है। इसलिए अगर वह रूस से व्यापार के लिए वैश्विक पाबंदियों को अनदेखा करता है तो इससे पश्चिम के सहयोगी देशों के बीच गलत संदेश जा सकता है। उन्हें ऐसा लग सकता है कि भारत रूस का पक्ष ले रहा है। इससे अमेरिका और यूरोपीय देश भारत के खिलाफ कड़े कदम उठा सकते हैं। पश्चिमी देश और रूस दोनों के साथ भारत के संबंध बेहतर है। लेकिन भारत के लिए यह समय सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है। चीन से मुकाबला करने के लिए भारत रूस पर निर्भर है। भारत रूस कि तरफ झुकेगा तो पश्चिमी देशों कि तरफ नाराजगी होगी। इसका असर भारत की विदेश नीति पर पड़ेगा। फ्रांस, अमेरिका, इजराइल जैसे देश भी भारत के महत्वपूर्ण डिफेंस पार्टनर बन कर उभरे हैं। लेकिन रूस का दबदबा कायम है। भारत और रूस के संबंधों में किसी भी तरह की खटास आती है तो तुरंत उसका असर प्रास्तावित रक्षा सौदे पर पड़ सकता है। यूक्रेन त्रासदी से भारत के सामने भी कई चुनौतियां खड़ी हुई हैं, लेकिन साथ ही अवसरों के दरवाजे भी भारत के लिए खुले हैं। रूस को वैश्विक सूचकांकों से बाहर कर दिया गया है। रूस पर प्रतिबंधों के चलते भारत को हथियारों के लिए नए विकल्प तलाशने होंगे। भारत खुद भी हथियार बनाने का काम तेज कर सकता है। इससे हथियारों के निर्यात के मौके भी बनेंगे।

युक्रेन-रूस युद्ध के बाद विश्व में एक नया आकार आने वाला है। एक ओर अमेरिका और नाटो देश तो दूसरी ओर रूस-चीन इस प्रकार से द्वीध्रुवीय दुनिया का निर्माण करना ही पुतिन और शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षा है। खुद को महासत्ता मानने वाले अमेरिका व रूस ने किसी भी देश में कौन से विचारों की सरकार होनी चाहिए यह तय करने का सर्वाधिकार खुद के पास लिया है। इसी नजरिए से यह दोनों देश दुनिया की ओर देख रहे हैं। विश्व शांति का ठेका लेकर सुरक्षा परिषद का निर्माण हुआ। लेकिन वह आज विश्व की शांति और मानवता की रक्षा करने में असमर्थ दिख रही है। यह बात यूक्रेन रूस युद्ध से स्पष्ट हुई है।

आज दुनिया भर के विद्वान, राजनीतिज्ञो के सामने मुख्य प्रश्न यह है कि समर्थ और असमर्थ राष्ट्रों के बीच का नाता आने वाले भविष्य में किस प्रकार होगा? यूक्रेन जैसे देश का युद्ध में पूरी तरह से तहस-नहस और नष्ट होना क्या यह योग्य बात है? सही बात बताएं तो अमेरिका एवं रूस इन दो महासत्ता कि वर्चस्व की लड़ाई में यूक्रेन बलि का बकरा बन गया है। आज जो स्थिति दिखाई दे रही है, उससे विश्व शांति निर्माण होने का मार्ग कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। आने वाले भविष्य में वह मिल सकता है ऐसी कोई गुंजाइश भी आज तो दिखाई नहीं दे रही है। इसी साम्राज्यवाद, विस्तारवाद और खुद की रक्षा के लिए परमाणु शस्त्र संपन्न होने के पागलपन से कल तीसरा महायुद्ध ना हो। वह परमाणु युद्ध होगा जो संपूर्ण विश्व को विनाश की गहराइयों में लेकर जाएगा? रूस और यूक्रेन के युद्ध से निर्माण हुई स्थिति अब किस करवट बदलेगी, इस बात से आज हम सब अनजान है। आने वाले भविष्य में विश्व को किस दौर से गुजरना होगा इस बात का भी अंदाजा वर्तमान में लगाना आसान नहीं है। इस माहौल को अनुभव करते हुए एक शेर याद आ रहा है ,

दुआ ये मांग रहा हूं कि आग शिद्दत की।

तुम्हारे घर जो लगी, सारे जहां में ना फैले।

 

 

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