प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच एक बार फिर से संबंध स्थापित हो गए हैं। पिछले 16 अप्रैल को कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के 10 जनपथ आवास पर प्रशांत किशोर की कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ हुई लगभग 4 घंटे की लंबी बैठक के बाद कई तरह की संभावनाएं बलवती हुई है। जितनी सूचनाएं बाहर आईं उनके अनुसार प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनाव की संभावनाओं के लिए एक विस्तृत खाका पेश किया था। उसमें कांग्रेस के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य को लेकर भी विश्लेषण था ।
प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार हैं तो निश्चित रूप से संपूर्ण बातचीत चुनावी संभावनाओं पर ही केंद्रित रही होगी। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को आंकड़ों और तथ्यों के साथ बताया कि क्यों उसने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। इसमें उन सारे राज्यों के अलग अलग विश्लेषण शामिल थे जिनमें कांग्रेस का प्रदर्शन बुरा रहा। चुनावों में लगातार पराजय की दुर्दशा झेल रही कांग्रेस एक साथ कई प्रकार के संकटों का सामना कर रही है। कई राज्यों में वह लुप्तप्राय हो रही है तो राष्ट्रीय स्तर पर भी उसके सामने अस्तित्व के संकट का खतरा है। इसमें नेतृत्व के लिए किसी तरह अपनी चुनावी संभावनाओं को बेहतर करने की कोशिश स्वभाविक है। कांग्रेस के प्रथम परिवार यानी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के विरुद्ध पार्टी के अंदर ही खुला विद्रोह है । जी 23 की संख्या बढ़ चुकी । प्रश्न है कि क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस का चुनावी भविष्य संवार पाएंगे?
ध्यान रखिए, कुछ महीने पहले तक प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होकर महत्वपूर्ण पद संभालने की बात लगभग तय मानी जा रही थी। फिर खबर आई कि प्रशांत किशोर की बात राहुल गांधी से नहीं बनी। प्रशांत ने उसके बाद कई ऐसे ट्वीट किए जो राहुल गांधी और पूरे परिवार के लिए सम्मानजनक तो नहीं थे। उन्होंने राहुल की राजनीतिक समझ पर भी प्रश्न उठाया। कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य पर भी बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया। बावजूद दोबारा उन्हें निमंत्रित किया गया है तो मानना होगा कि परिवार और उनके समर्थकों के समक्ष इस समय अपने उद्धार के लिए दूसरा कोई उपयुक्त विकल्प नजर नहीं आया।
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के संदर्भ में अपना रोड मैप बिंदुवार और तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि पार्टी को लोकसभा की 542 सीटों में से 370 से 400 सीटों पर ही फोकस करना चाहिए। राज्य विधानसभा चुनाव के बारे में उनका कहना था कि कुछ राज्यों में उसे अकेले लड़ना चाहिए। इनमें उन्होंने उन राज्यों का रखा जिसमें या तो शीर्ष पर है, थी या दूसरे स्थान पर रही है। उत्तर प्रदेश बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों में उनका मानना था कि कांग्रेस खत्म हो चुकी है इसलिए उसे नए सिरे से शुरू करनी चाहिए और स्वयं अपनी बदौलत। उन्होंने इस बैठक में भाजपा के संदर्भ में भी प्रेजेंटेशन दिया।
उन्होंने बताया कि भाजपा कहां-कहां कमजोर है। इसके लिए उन्होंने बिहार, पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा केरल का उदाहरण दिया जहां लगभग 200 सीटों में अपनी तमाम लोकप्रियता के बावजूद भाजपा 50 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई। यानी उनके अनुसार भाजपा की ताकत अभी भी 350 सीटों पर ही सिमटी हुई है। उनका कहना था कि भाजपा को चुनौती दी जा सकती है। 350 सीटों के बारे में भी उन्होंने कुछ ऐसी बातें बताई जिनसे कांग्रेस के अंदर उम्मीद पैदा हो सकती है।
लेकिन दो पहलू ऐसे हैं जिनको लेकर समस्याएं हैं। पहला, प्रशांत किशोर के कांग्रेस से संबंधों को लेकर है। अगर वे चुनावी प्रबंधन या रणनीतिकार के तौर पर कांग्रेस को सहयोग देते हैं तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं है । कांग्रेस में अगर वे महत्वपूर्ण पद पर आते हैं और मुख्य रणनीतिकार बनते हैं, नीति निर्माण में उनकी भूमिका होती है तो इसे पूरी पार्टी के लिए स्वीकार करना संभव नहीं है। कांग्रेस में उनके शामिल होने का विरोध करने वाले केवल जी-23 समूह के लोग ही नहीं दूसरे भी थे। वे लोग पुनः इसका विरोध करेंगे। ये लोग तर्क देते हैं कि प्रशांत किशोर अगर पार्टी में आएंगे तो इस मानसिकता से कि मेरे अलावा पार्टी को चुनाव में विजय दिलाने वाला कोई नहीं है तो जाहिर है उनका व्यवहार अनेक नेताओं के प्रति सम्मानजनक नहीं होगा।
वे जिसे चाहेंगे उसे पार्टी में पद मिलेगा , टिकट मिलेगा शेष लोग महत्वहीन हो जाएंगे। तृणमूल कांग्रेस 2021 के चुनाव में अवश्य भारी विजय प्राप्त करने में सफल हुई लेकिन चुनाव पूर्व पार्टी में भगदड़ मची तो उसमें एक मुख्य कारण प्रशांत किशोर ही थे। ऐसा लग रहा था जैसे वह पार्टी के चुनावी सलाहकार और प्रबंधक नहीं, मुख्य रणनीतिकार हो। कई नेताओं ने आरोप लगाया कि उन्हें इतना अपमानजनक लगा कि उन्हें पार्टी छोड़ना पड़ा। यही समस्या जनता दल यूनाइटेड में भी पैदा हुई। नीतीश कुमार ने उनको सर्वाधिक महत्व दिया, पार्टी में उपाध्यक्ष का पद भी उन्हें मिला। , पार्टी के नेताओं के साथ उनका सामंजस्य नहीं बैठा और उन्हें अलग होना पड़ा। यह समस्या कांग्रेस के सामने भी आ सकती है। कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस नहीं है जो कि एक राज्य तक सीमित हो तथा उसे चुनाव जिताने के लिए बहुत बड़ा वर्ग हिंसा की सीमा तक ही चला जाए। अगर प्रशांत किशोर के आगमन से पार्टी में टूट पड़ी तो लाभ से ज्यादा हानि हो सकती है।
दूसरे, क्या कांग्रेस स्वयं इस स्थिति में है कि प्रशांत किशोर की रणनीतिक से भाजपा और दूसरी प्रतिस्पर्धी पार्टियों को परास्त कर फिर से चुनावी सफलता प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो सके? जिन राज्यों में उसका वजूद नहीं है वहां रणनीति से चुनाव नहीं जीत सकती । नेतृत्व के रूप में कुछ चेहरे और सामान्य संगठन भी चाहिए। यही नहीं नरेंद्र मोदी के आविर्भाव के बाद भारत की राजनीति में पैराडाइम स्विफ्ट यानी परिमाणात्मक परिवर्तन हुआ है। कांग्रेस के लोग उसे अभी तक समझ नहीं पा रहे ।
इसलिए उनके की प्रतिक्रियाएं ऐसी होती है जिनसे वे मतदाताओं और आम जनता को नाराज कर देते हैं। प्रशांत किशोर के चुनावी प्रबंधन से सफलताएं उन्हीं पार्टियों की मिली है जिनके नेताओं की पहचान है और जिनकी पार्टी का अपने यहां जनाधार रहा है तथा माहौल भी किसी न किसी के कारण विपरीत नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए वह काम करने आए थे लेकिन बीच में उन्हें जाना पड़ा । वे उन पार्टियों और नेताओं का काम नहीं लेते हैं जिनके स्थिति ज्यादा कमजोर होती है। चूंकि 2012 से 14 तक उन्होंने नरेंद्र मोदी के चुनावी प्रबंधन को संभाला और संबंध अच्छे नहीं रहे,इसलिए उनके प्रति गुस्सा है।
वे उन्हें सत्ता से हटाने के लिए काम करना चाहते हैं। इसमें उन्हें लगता है कि कांग्रेस अभी भी कई क्षेत्रीय पार्टियों से ज्यादा शक्तिशाली है। कई राज्यों में उसके जनाधार बचे हुए हैं। इन सबको इकट्ठा करके और साथ में क्षेत्रीय पार्टियों को मिलाकर वे भाजपा को सत्ता से हटाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। कांग्रेस इस समय नेतृत्व के साथ-साथ विचारधारा एवं रणनीति के संकट से भी गुजर रही है। प्रशांत किशोर को विचारधारा और नेतृत्व से बहुत लेना-देना नहीं होगा। यही बात पार्टी के वरिष्ठ नेता उठाते हैं कि उनकी
कांग्रेस के प्रति निष्ठा हमेशा संदिग्ध रहेगी। अ सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ओर से प्रशांत किशोर से संपर्क किया गया है तो जाहिर है वे अपनी शर्तों पर ही काम करेंगे। ये शर्त अन्य सारे नेताओं के अनुकूल नहीं हो सकती। तो प्रतीक्षा करनी चाहिए कि प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी के अंदर क्या प्रतिक्रिया होती है। यह संभव है कि कुछ लोग उत्साहित हों कि उनके आने से शायद चुनाव जीत जाएं लेकिन एक बड़ा वर्ग इसे आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। अगर चुनावी सफलता नहीं मिली तो जाहिर है कि असंतोष के स्वर ज्यादा बुलंद होंगे।