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चाय पर चर्चा

चाय पर चर्चा

by श्रृति सिन्हा
in मई-२०२२, विशेष, सामाजिक
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चाय एक पेय पदार्थ मात्र नहीं, त्यौहार है। हर आम भारतीय के दिन की शुरुआत चाय से ही होती है। साहित्य और सांस्कृतिक कर्मी तो चाय के बिना कोई विचार-विमर्श, आयोजन ही सम्पूर्णता के साथ नहीं कर सकते। चाय का सबसे बड़ा गुण है कि यह लोगों को तोड़ती नहीं बल्कि जोड़ती है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम के जरिए इसे एक अलग ऊंचाई दे दी है।

फरवरी, 2014 में नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम को ‘चाय पर चर्चा’ नाम दिया गया। इस कार्यक्रम के तहत् देशभर में एक हजार से ज्यादा चाय की दुकानों पर जुटने वाले अपने समर्थकों से सेटलाइट मोबाइल और इंटरनेट के जरिए उन्होंने बात की। इन सभी एक हजार चाय की दुकानों पर टी.वी. स्क्रीन भी लगाए गए थे। इसमें प्रधानमंत्री मोदी जी ने कालाधन आदि तमाम मुद्दों पर जनता से बातचीत की।

लेकिन मित्रों, ये ‘चाय पर चर्चा’ तो बहुत पुरातन से ही भारतीय जनमानस में रची और बसी है। बात सर्वप्रथम अपने-अपने घरों से करें। रोज सुबह-सुबह पूरा परिवार चाय-नाश्ते की मेज पर बैठ अपने प्रतिदिन के क्रियाकलापों पर सविस्तार बात करता है, जिसमें उसके पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि सभी तरह के विषयों पर सलाह -मशविरा व निर्णय आदि लिए जाते हैं। शाम की चाय पास-पड़ोस के गप्पों में बड़ी सुखमय बीतती है। इसी बहाने अपने अड़ोसी-पड़ोसी का हाल-चाल, सुख: दु:ख सभी कुछ हमलोग आपस में बतिया लेते हैं। दोस्तों, ये चाय बड़े ही काम की चीज है! कितने ही मन के दुराव-छिपाव हों लेकिन “आप शाम को हमारे घर चाय पर आइए”  के निमन्त्रण के साथ ही सब शिकवों को चाय में घोल लिया जाता है। और तो और घर के नौकर-चाकर भी चाय पर चर्चा के दौरान अपने मन की बात को हल्की कर लेते हैं।

सामाजिक दायरे में तो चाय एकमात्र वो साधन है जो अजनबियों को तुरन्त जोड़ लेती है। जैसे ट्रेन में कितने भी अजनबी होें एक-दूसरे को चाय का न्यौता जरूर दे डालते हैं, हम भारतीय। ये एक बातचीत बढ़ाने का सिलसिला ही तो है। आत्मीय भाव को सहज रूप से जगाने का चाय से बेहतरीन और कोई उपाय नहीं है। राह में चाय की दुकानों पर कितने ही प्रकार की वार्ताएं अजनबियों को पल भर में जोड़ देती हैं। सामाजिक चर्चाओं का तो अड्डा ही ये चाय की दुकानें होती हैं। नेता लोग बखूबी चाय से भारतीय जनमानस को ताड़ने के लिए इस पर चर्चाएं करवाते हैं। क्योंकि यहां हर तबके के लोग मिल जाते है।

राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने इसे जनता में लोकप्रिय कर दिया। वे पहले ऐसे चमत्कारिक व्यक्तित्व के धनी प्रणेता हैं, जो भारतीयों की नब्ज पकडने में माहिर हैं। हर शहर में कोई न कोई ऐसी एक चाय या कॉफी की दुकान होती है, जहां शहर के प्रबुद्ध, सामाजिक, सांस्कृतिक, रंगकर्मी, साहित्यिक, व्यापारी वर्ग आदि सभी आकर वहां विभिन्न प्रकार की चर्चाओं में भाग लेकर जन-सहभागिता करते हैं। इसका सशक्त उदाहरण: बनारस के अस्सी घाट पर स्थित ‘अस्सी की अड़ी’ है जहां पूरे काशी की साहित्यिक, राजनीतिक, धार्मिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक, पर्यावरणीय, अन्तरराष्ट्रीय सभी तरह की चर्चाएं होती हैं। जिसमें शहर के नामी -गिरामी व्यक्तित्व से लेकर आम नागरिक होता है। ऐसे ही वाराणसी का ‘लक्ष्मी चाय भण्डार’ भी बहुत प्रसिद्ध है। आगरा का हरि पर्वत पर ‘चाय-बन वाला’ जो 24 घंटे खुला है।

आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो अधिकांशत व्यापारिक, सरकारी, अर्धसरकारी वार्ताएं चाय पर ही शुरू व खत्म होती हैं।  दोस्तो! चाय पर चर्चा तो बहुत पुराना समायोजन का तरीका है बस मोदी जी ने अपने चमत्कृत व्यक्तित्व से इसे अलग ही ‘टशन’ दे दिया है। पत्रकार वार्ता भी ये संस्थाएं ‘चाय पर चर्चा’ के दौरान ही करती हैं।

ऐसे ही धार्मिक आयोजनों में शीत ऋतु में तो ‘चाय के भण्डारे’ लगते हैं और उसमें सभी वर्ग के लोग सोत्साह भाग लेते हैं। चाय से सभी की सुबह व शाम गुलजार होती है। अत: यह आयोजनों, प्रयोजनों का अनिवार्य अंग है। चाय के भी तो नाना प्रकार हैं दोस्तों। मसाला चाय, साधारण चाय, कड़क चाय, मलाईदार चाय, कहवा, चाय दम, ग्रीन टी, गुड़ की चाय, केसरी चाय, सौंफ की चाय, हर्बल चाय, आयुर्वेदिक चाय आदि-आदि।

साहित्य और सांस्कृतिक कर्मी तो चाय के बिना कोई विचार-विमर्श, आयोजन ही सम्पूर्णता के साथ नहीं कर सकते। चाय विचारों, व्यवहारों, आचारों, वार्तालापों, क्रियाकलापों का एक अद्भुत समन्वय कराने वाली प्रेरक तत्व है। जिसकी महत्ता सर्वव्यापी है। यह आलेख चाय के विविध आयामों से तो परिचित कराता ही है। लेखिका स्वयं भी चाय के शौकीनों में से एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। आगरा नगर के एक साहित्यकार अशोक ‘मश्रु’ जी ने तो ‘चाय चालीसा’ की भी रचना की है। चाय न केवल संबंधों में गरमागरम ऊर्जा का संचरण करती है अपितु मन मस्तिष्क के तारों को झंकृत कर नाना प्रकार के नवीन विचारों से साहित्य को अलंकृत कर जाती है।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से देखें तो ये चाय की पत्ती एक बेहतरीन खाद है। जितने भी प्रकृति प्रेमी हैं वो चाय की पत्ती से खाद का काम अवश्य लेते हैं। साथ ही साथ हर्बल यानी

आयुर्वेदिक चाय से भी पर्यावरण के साथ साथ मानव के स्वास्थ्य के अनुकूलन कार्य करते हैं। चाय की पत्ती में बेहतरीन उर्वरा-शक्ति होती है जो पौधों के लिए अमृत का कार्य करती है। चाय की पत्ती स्त्रियों के बालों की वृद्धि, पोषण, सुदंरता में चार चांद लगाती है। इसके पानी से बाल धोने पर ये काले, लम्बे, घने, चमकीले, मोटे होते हैं।

मित्रों! ‘चाय पर चर्चा’ के अनगिनत बड़े सार्थक पहलू हैं जिस पर केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में जहां चाय पी जाती है, इसे लेकर अनेक किस्से-कहानियां भी मौजूद है। किस्सागोई में तो चाय की शुरू से ही अहम् भूमिका रही है। देखिए! एक चाय वाले ने देश को अन्तरराष्ट्रीय फलक पर जो सम्मान दिलाया है, वो अकथनीय है। आज तक भारत को ‘विश्व-गुरू’ की मान्यता कोई न दिला सका जो आज मोदी भाई ने कर दी। तो चाय तो विश्व फलक तक छलकी जा रही है। चाय के सौंदर्यशास्त्र को बस समझने की जरूरत है। सुन्दरियां इसके पानी से अपनी झुर्रियों को कम करने का प्रयास करती हैं।

तो जनाब! अगली बार जब चाय पर आपकी चर्चा का केन्द्रीकरण हो, तो इसकी महत्ता को गैरमामूली समझने की बिल्कुल भूल न करिएगा। कितनों के भाग्योदय में चाय बहन ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया है। क्या पता… अगला नम्बर आपका ही हो। चाय पर चर्चा करते-करते अब मेरी चाय का वक्त हो चला है। तो आप सबसे मेरी तब तक के लिए राम! राम!! आप सब भी चाय की चुस्कियों के बीच अपने को रमाते रहिए और चाय पर चर्चा निरंतर जारी रखिए।

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