सत्ता परिवर्तन से नहीं बदलेगा पाकिस्तान-भारत को रहना होगा सतर्क

भारत के प्रति चिर स्थायी शत्रुता पाल रखे पाकिस्तान की वर्तमान राजनीतिक उथल-पुुथल भारत के लिए कत्तई शुभ नहीं है। नव निर्वाचित प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ का चीन प्रेम किसी से छिपा नहीं है। इमरान खान भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में डर है कि, अपनी नाकामियां छुपाने के लिए पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकी घटनाओं में तेजी ला सकता है।

पाकिस्तान में सरकार का चेहरा बदल चुका है। बीते 9 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव पास कर विपक्ष ने इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटा दिया। मुल्क की कमान अब शाहबाज शरीफ के हाथों में है। किसी रोमांचक सीरियल की तर्ज़ पर पाकिस्तान में चले हाई वोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामे के बाद इमरान खान सत्ता से बेदखल हो गए। इस भारी सियासी उलटफेर का असर न सिर्फ पाकिस्तान पर पड़ेगा, बल्कि पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर पूर्व में चीन और पूर्व में भारत भी इससे प्रभावित होगा। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जाते-जाते विदेशी साजिश के नाम पर एक ऐसी चिंगारी छोड़ी है, जिसकी तीव्रता पाकिस्तान के राजनीतिक माहौल में महसूस की जा सकती है। उनका इशारा अमेरिका की तरफ है। हालांकि पाकिस्तान की छवि हमेशा अमेरिका के पिछलग्गू देश की रही है, लेकिन अमेरिका के लिए पाकिस्तान तभी महत्वपूर्ण होता है जब भारत के साथ उसकी तनातनी चल रही हो। इस समय अमेरिका रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के हालातों पर नजर रखे हुए है जहां उसकी मठाधीशी दांव पर है। वैसे इमरान खान अकेले ऐसे पाकिस्तानी राजनेता नहीं हैं, जिन्होंने देश की राजनीति में ‘अमेरिकी हस्तक्षेप’ का दावा कर लोगों को भड़काया है। लंबे समय से पाकिस्तानी राजनेताओं के लिए ‘अमेरिकी हस्तक्षेप’ एक राजनीतिक उपकरण के रूप में काम करता रहा है। 1970 के दशक में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अमेरिका पर उन्हें हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाया था। 2007 में ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ के अपने मिशन के शीर्ष पर रहे परवेज मुशर्रफ ने भी पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों में सुरक्षा संकट के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया था। समय-समय पर बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ भी अमेरिका को लेकर नाराजगी जताते रहे हैं। पाकिस्तान के धार्मिक संगठनों ने भी संयुक्त राज्य अमेरिका को मुस्लिम दुनिया के लिए एक खतरे के रूप में चित्रित किया है। पाकिस्तान और अमेरिका के बीच के इस रिश्ते को अब मजबूत सार्वजनिक विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। हालांकि इसके बावजूद यह गठबंधन मजबूती के साथ मौजूद है।

बात अगर वर्तमान घटनाक्रम की हो तो सत्ता परिवर्तन के बाद पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने इशारा किया है कि वह चीन और अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध चाहते हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि वह पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी भारत के साथ भी संबंध सुधारना चाहते हैं। भारत के मामले में तो खैर पाकिस्तान का यह केवल दिखावा मात्र है। भारत के लिए चिंता की असल बात यह है कि इमरान खान सरकार की अपेक्षा चीन के स्वाभाविक मित्र और पंजाब प्रांत में कई चीनी योजनाओं के सूत्रधार शहबाज शरीफ के कार्यकाल में चीन-पाकिस्तान के रिश्ते और बेहतर हो सकते हैं। चीन-पाकिस्तान की यह पुरानी दोस्ती भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। भारत के खिलाफ आतंकवाद को इस्तेमाल करना, भारत को अपना पारम्परिक शत्रु मानना, हर राजनीतिक उठापटक के लिए भारत को जिम्मेदार बताना, कश्मीर विवाद को हर मंच पर उठाना, पाकिस्तान का इस्लामीकरण करते हुए इस्लामी देशों के एकीकरण का सूत्रधार बनने की लगातार कोशिश करते रहना जैसी भूमिका से पाकिस्तान कभी पीछे नहीं हटेगा। इन मुद्दों का इस्तेमाल पाकिस्तान की नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। चीन हर हाल में उसे समर्थन देगा। पाकिस्तान के आर्थिक हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। ऐसे में अमेरिका के स्थान पर चीन को महत्व देना पाकिस्तान की मजबूरी भी है। चीन का नई ताकत बन कर उभरना भी भारत के लिए चिंताजनक है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में चीन भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान का भरपूर इस्तेमाल करे।

एक बात शीशे की तरह साफ है कि पाकिस्तान की सियासी नीतियां या तो वहां की फौज तय करती है या फिर कट्टरपंथी संगठन। पाकिस्तान के भीतर की कट्टरपंथी सोच वहां के जनमानस पर पूरी तरह हावी है। पाक सेना सरकार और परमाणु हथियारों को नियंत्रित करती आई है। भारत के साथ समस्या यह भी है कि अब तक पाकिस्तान को लेकर वह कोई समग्र नीति नहीं बना पाया है। पाक सेना हर सरकार के पीछे छद्म सरकार बन कर भारत में आतंक को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती रही है। कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा उग्रवाद का इस्तेमाल किसी से छिपा नहीं है। इस वक्त भारत-चीन संबंधों में कई मुद्दों को लेकर खटास है। चीन का भारतीय भूमि पर कब्जे का प्रयास और पाकिस्तान के पक्ष में उसका झुकाव इसका सबसे बड़ा कारण है। इमरान के कार्यकाल के अंतिम दौर के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान भारत के पुराने मित्र रूस के साथ नजदीकियां बढ़ाता नजर आया था। काबुल में हुई तालिबान हुकूमत की वापसी भी भारत के लिए खतरे की घंटी है। मालदीव और श्रीलंका के आस-पास की समुद्री सुरक्षा को लेकर भी भारत के समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं। सबसे बड़ी बात कि पाक सेना और आईएसआईएस का गठबंधन हमेशा से भारत को अपना दुश्मन मानता रहा है। दोनों देशों के रिश्तों में मूल रूप से आज़ादी के वक़्त से ही समस्या थी जो आज भी बरक़रार है। हम लाख इनकार करें, इन चुनौतियों के बीच चीन-पाकिस्तान की नजदीकी चिंता का कारण तो है ही।

बात अगर पड़ोसी के साथ रिश्तों की है, तो नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से हमें किसी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं पालनी चाहिए। हमें इस बात को कत्तई नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहते हुए इन्हीं शहबाज शरीफ पर आतंकी हाफिज सईद के आतंकी संगठन जमात-उल-दावा को करोड़ों रुपए देने के आरोप लग चुके हैं। ऐसे दाग़दार व्यक्ति से आखिर क्या उम्मीद की जा सकती है! एक मनोवैज्ञानिक कारण पर भी नजर डाल लेते हैं। शहबाज शरीफ के पाकिस्तान के नए पीएम बनते ही सोशल मीडिया पर उनके भाषण वाले कई पुराने वीडियो वायरल हुए। इन वीडियो में वो भाषण के दौरान माइक को तोड़ते नजर आते हैं। शहबाज के बारे में यह मशहूर है कि, भाषण के दौरान कई बार इतना उत्तेजित हो जाते हैं कि मंच पर माइक तक तोड़ देते हैं। अब एक ऐसा व्यक्ति जो माइक तो संभाल नहीं सकता, देश को संभालने निकला है। भारत के लिए चिंता की बात यह भी है कि वह ऐसे गुस्सैल पड़ोसी को भला कैसे बर्दाश्त करे। उधर सत्ता से बेदखल हुए इमरान ने भी हार नहीं मानी है। सरकार गिरने के बाद इमरान खान ने धमकी दी है कि अगर वो फिर से सत्ता आते हैं तो राजनीतिक साजिशों के लिए अपने विरोधियों को नहीं बख्शेंगे। यानी आने वाले दिनों में पाकिस्तान में काफी उथल-पुथल रहेगी। हिंसा की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता। अपनी अवाम का ध्यान भटकाने के लिए पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियां भारत में भी बढ़ सकती हैं। खुद पाकिस्तान अपने यहां भी ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर भारत पर ठीकरा फोड़ने की कोशिश कर सकता है। सच यही है कि धार्मिक कट्टरता को लंबे समय से पाकिस्तानी राजनेताओं ने बच निकलने वाला राजनीतिक हथियार बना रखा है। ऐसे में भारत के पास पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की ज़रूरत है। इन परिस्थितियों में हमारी विदेश नीति की असल परीक्षा होगी। यह बात ज़ेहन नशीन रहे कि, पाकिस्तान में सिर्फ सत्ता बदली है, उसकी फितरत नहीं।

                                                                                                                                                                                            सैयद सलमान 

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