भारत की बेटी जिसने एवरेस्ट विजय की

प्रख्यात अंग्रेजी लेखक सर सलमान रुश्दी ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ में लिखते हैं कि, तारीख और समय बहुत मायने रखते हैं।  आज भी हम इन दोनों की बात करेंगे क्योंकि तारीखों के साथ ही साथ समय भी इतिहास का हिस्सा होता है। हां, तो हम बात करते हैं। दिन और समय नोट करना आवश्यक है क्योंकि यही इतिहास में नत्थी होते हैं। तो तारीख थी 23 मई, 1984। और समय दोपहर के एक बजकर सात मिनट। इतिहास बना, और वह भी स्वर्ग के द्वार कहे जाने वाले एवरेस्ट के शिखर पर एक लड़की द्वारा तिरंगा लहराकर।

भारत की बिटिया बछेंद्री पाल ने समाज के उस बड़े हिस्से को आईना दिखाया जो मानता है कि लड़कियां लड़कों जैसे मेहनत वाले काम नहीं कर सकती। अपने मां-बाप को आईना दिखाया जो बेटी के उच्च शिक्षा प्राप्त करने के खिलाफ थे। और आईना दिखाया देश के हर घर और गांव में बैठे उन रूढ़िवादियों को जिन्हें लगता है कि लड़कियां केवल घर के कामकाज और बच्चे पैदा करने के लिए हैं और उनके पढ़ने-लिखने तथा पर्वतारोहण जैसे काम करने से समाज की इज्जत मिटटी में मिल जाती है।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के छोटे से गांव नौकुरी में 24 मई 1954 को जन्मी बछेंद्री के गांव में लड़कियों के पढ़ने लिखने और पर्वतारोहण जैसे कठिन काम करने को अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता था। यहां तक कि उनकी एमए और बीएड की डिग्रियों को भी मजाक उड़ाया  जाता था क्योंकि इतनी डिग्रियों के बावजूद उन्हें जूनियर क्लर्क की नौकरी मिली थी, जिसे छोड़कर उन्होंने पर्वतारोहण को अपना कैरियर बनाया। लेकिन आज अपनी उपलब्धियों की बदौलत बछेंद्री गांव ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके तक की दुलारी बेटी बनी हुई हैं।

आज उनकी आंखों में उनके प्रति सम्मान है। बछेंद्री ने अपना बचपन मुश्किल में बिताया था। बचपन में घास काटी, लकड़ी काटी, जंगल गई। इसलिए उनकी हड्डियां मजबूत थी। इन सब कामों के लिए पहाड़ पर ऊपर-नीचे आते जाते उनकी पर्वतारोहण में दिलचस्पी हो गई थी। पर उस समय वहां पर महिलाओं की शिक्षा की चिंता किसी को नहीं थी। उनके  माता-पिता भी बछेंद्री के पढ़ने की चाहत से खुश नहीं थे। इसलिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन वह कामयाब होने के लिए प्रतिबद्ध बनी रहीं।

एवरेस्ट अभियान के दौरान 16 मई 1984 को वे बर्फीले तूफान की चपेट में आ गई थीं। उनका बचना नामुमकिन सा हो गया था, क्योंकि वे पूरी तरह से बर्फ के नीचे दब गईं थीं। लेकिन उनके साथियों ने हार नहीं मानी और उन्हें काफी मशक्कत के बाद बर्फ से बाहर निकाल लिया। बछेंद्री की सासें चल रही थी और यह देखकर टीम के सभी सदस्य खुशी से झूम उठे। वह बुद्ध पूर्णिमा की रात थी, जिस दिन उन्हें जीवनदान मिला था। 23 हजार फीट की ऊंचाई पर घटी इस घटना के बाद बछेंद्री को बेस कैंप लाया गया, जहां तबीयत सामान्य होने के बाद लीडर ने उनसे पूछा कि क्या तुम अब भी एवरेस्ट पर जाना चाहती हो, तो बछेंद्री का जवाब था ‘हां’। दो दिन बाद बछेंद्री पुन: अभियान दल में शामिल हो गई और 23 मई को 1984 को दिन के एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट पर कदम रखनेवाली पहली भारतीय महिला बन गई।

एवरेस्ट फतह करने के बाद बछेंद्री पाल जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिली तो उन्होंने शाबाशी देते हुए कहा था कि, बछेंद्री तुम रूकना नहीं, क्योंकि इस देश को और भी बछेंद्री पाल चाहिए। बछेंद्री ने पूर्व प्रधानमंत्री की बातों को सच साबित करते हुए एवरेस्टरों की फौज खड़ी कर दी है। टाटा स्टील के सहयोग से बछेंद्री अब तक दस लोगों को एवरेस्ट पर पहुंचा चुकी हैं।

वे नाम जिन्हें बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट फतह करवाया –

1.  प्रेमलता अग्रवाल 20 मई 2011

2.  बिनीता सोरेन 26 मई 2012

3.  मेघलाल महतो 26 मई 2012

4.  राजेंद्र सिंह पाल 26 मई 2012

5.  सुशेन महतो 19 मई 2013

6.  अरुणिमा सिन्हा 21 मई 2013

7.  हेमंत गुप्ता 27 मई 2017

8.  संदीप तोलिया 22 मई 2018

9.  पूनम राणा 22 मई 2018

10. स्वर्णलता दलाई 22 मई 2018

1999 में बछेंद्री पाल ने मोटर बाइक से दिल्ली से कारगिल तक एक रैली की शुरुआत की जिसका नाम विजय रैली टू कारगिल था।  इसका मकसद कारगिल युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि देना था।

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