जैसे-जैसे देश की मस्जिदों की खुदाई हो रही है वैसे-वैसे उनके मंदिर होने के साक्ष्य मिल रहे हैं। काशी के ‘कंकर में शंकर है’ की कहावत चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। अयोध्या से शुरू हुआ हिंदुओं के प्रतीकों तथा श्रद्धा स्थानों के पुनर्जागरण का कार्य अब केवल किसी आध्यात्मिक संस्था तक सीमित नहीं रहा, वह जनमानस की आकांक्षा बन चुका है।
उच्चतम न्यायालय ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की अपील पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए ज्ञानवापी में स्थानीय न्यायालय के सर्वे के आदेश पर रोक लगाने से इनकार तो कर ही दिया है साथ ही यह भी कहा है कि सर्वे के दौरान वजू के स्थान पर जो शिवलिंग मिला है उसकी सुरक्षा से सम्बंधित स्थानीय न्यायालय के आदेश का पालन राज्य प्रशासन सुनिश्चित करे। नमाजियों की संख्या को लेकर स्थानीय अदालत के आदेश पर भी उच्चतम न्यायालय ने बस इतना ही कहा है कि मस्जिद में नमाज अता करने वालों को रोका न जाए।
जैसे ही सर्वे के अंतिम दिन ज्ञानवापी में उपस्थित हिन्दुओं के पक्षकारों ने यह देखा है कि वजू के नाम पर गंदगी फैलाने वाली जगह पर शिवलिंग का प्राकट्य हुआ है वैसे ही उनमें अपने आराध्य को सैकड़ो वर्षों बाद देखकर जहां खुशी हुई वहीं उन्हें असीम दुख भी हुआ कि उनके आराध्य भगवान शिवलिंग पर ही मुसलमान वजू के नाम हाथ पैर और मुंह धोकर कुल्ला भी करते थे। उपस्थित हिन्दुओं के लिए यह एक असहनीय क्षण था। सैकड़ों वर्षों से बंधक बनाकर रखे गए शिवलिंग क्या मस्जिद के कैद से मुक्त होंगे? क्या नंदी को उनके आराध्य की सेवा करने और निरंतर निहारते रहने का सुअवसर मिलेगा? क्या काशी के कण-कण में बसे शिव के इस स्वरूप का दर्शन करने का अधिकार विश्व में स्थित सनातनी हिन्दुओं को मिलेगा? क्या न्यायालय में ज्ञानवापी से भगवान शंकर के इस स्वरूप को आजादी दिलाई जाएगी? क्या काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंस कर उस जगह पर आततायी औरंगजेब द्वारा बनवाई गई मस्जिद को पुनः विश्व प्रसिद्ध मंदिर का स्थान मिलेगा। इन सभी प्रश्नों का उत्तर अभी काल के गर्भ में है। हमने सुना है और देखा है कि श्रीराम मंदिर मुक्ति आन्दोलन के लिए कितनी लम्बी लड़ाई लड़ी गई है। अब कहीं जाकर श्रीराम का मंदिर आज अयोध्या में मूर्तरूप लेने जा रहा है। इस घटना से एक आशा की किरण दिखाई देती है और विश्वास भी बढ़ता है।
पहले हिन्दुओं में अपने धार्मिक स्थलों को लेकर जिस आस्था का दर्शन होता था, क्या उसमें कमी आई है? ऐसा नहीं है। आज सोशल मीडिया के समय में हिन्दुओं में अपनी आस्था स्थलों की सुरक्षा के प्रति जिस तरह से जागरुकता का दर्शन हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि कुछ तथाकथित सेकुलर बनने वाले हिन्दुओं को छोड़कर अन्य में यह भावना बलवती होती जा रही है कि हमें अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक पहचान को बचाए रखना आवश्यक है। ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी की पूजा पहले पूरे वर्ष होती थी परन्तु 2004 में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार जिसके मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे ने, बंद कर दी और केवल साल में एक बार अक्षय तृतीया के दिन ही महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई।
ज्ञानवापी में सर्वे के दौरान वजू की जगह पर शिवलिंग मिलने के कारण मुसलमानों की संस्था आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने इसे असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया है। बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने वजू के स्थल को रोक लगाने को नाइंसाफी बताते हुए कहा कि यह काम साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करने के लिए किया गया षड्यंत्र है। उन्होंने सरकार को इसकी गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी।
उन्होंने दावा किया कि 1937 में ही यह क्षेत्र वक्फ बोर्ड को दे दिया गया है, जहां पर नमाज अता की जा रही है और यह क्षेत्र ज्ञानवापी के अन्तर्गत ही आता है। मुसलमानों के प्रतिनिधि कहलाने वाले संगठन और नेता सर्वे के आदेश को प्लेसेस वर्सिस 1991 एक्ट के विरुद्ध बताते हैं, उन सभी का तर्क है कि इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 के समय (अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि को छोड़कर) धार्मिक स्थलों की जो स्थिति थी उसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ और परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। मुस्लिम पक्षकार भले ही 1991 के एक्ट का उल्लेख करते हुए न्यायालय में अपनी दलील प्रस्तुत कर रहे हों परन्तु हिन्दू संगठनों में इस बात को लेकर अधिक उत्साह है जिन स्थलों को वे मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त किए जाने की बात कर रहे थे उसकी सच्चाई सर्वे किए जाने के कारण ही सामने आ सकी है। अयोध्या में भी इसी तरह सर्वे और खुदाई के कारण ही मंदिर होने का साक्ष्य मिला था। कानूनी लड़ाई में उन्हीं साक्ष्यों के कारण ही उच्चतम न्यायालय ने माना कि श्री रामजन्म भूमि के मालिक श्रीरामलला विराजमान ही हैं। हिन्दुओं के पक्षकार का यह भी तर्क है कि जब किसान के कानूनों को सरकार वापस ले सकती है तो संसद में 1991 में पारित धार्मिक स्थल कानून को भी सरकार वापस ले सकती है।
अयोध्या में एक लम्बी कानूनी लड़ाई में 2019 साल में उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के निर्णय के बाद अब श्रीराम मंदिर के निर्माण का काम अबाध गति से चल रहा है। इससे हिन्दुओं के बीच अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को लेकर जागृति की जो लहर चल रही है उसी का परिणाम है कि ज्ञानवापी में स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा करने के अधिकार को लेकर वाराणसी के एक न्यायालय में पांच महिलाओं ने अपील की। जिसे स्वीकार कर माननीय न्यायाधीश ने मस्जिद के अंदर सर्वेक्षण करने का आदेश दिया। यह सर्वेक्षण तीन दिनों में पूरा करने का आदेश भी न्यायालय ने दिया। सर्वेक्षण के काम के लिए एक कमीशन का गठन किया परन्तु मुसलमानों की एक संस्था जो ज्ञानवापी की व्यवस्था करती थी, उसने कमीशन को सर्वे ही नहीं करने दिया। बल्कि ज्यादा संख्या में नमाजियों को एकत्र कर कमीशन के काम में बाधा डाली। इसके बाद न्यायाधीश ने एक सदस्यीय कमीशन में दो अन्य कमीशनरों की नियुक्ति कर सर्वे को तीन दिनों में पूरा कर रिपोर्ट को न्यायालय में सौंपने का आदेश दिया।
इस आदेश के विरुद्ध अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने स्थानीय न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील कर सर्वे को रोकने के लिए आदेश जारी करने की अपील की। परन्तु उच्चतम न्यायालय ने अपील को स्वीकार तो कर लिया परन्तु तुरंत ही सर्वे के रोक सम्बंधी आदेश देने से मना कर दिया। इधर सर्वे के दौरान मस्जिद में नमाज के पहले नमाजियों द्वारा हाथ पैर और मुंह धोने के लिए एकत्र किए जल का उपयोग किया जाता था। जब उस जगह का सर्वे किया गया तो हिन्दुओं के पक्षकारों को लगा कि वहां पानी के नीचे कुछ ऐसी चीज है। उन्होंने कमीशन से आग्रह किया कि जमें हुए पानी को हटाकर पता लगाया जाए कि आखिर वह वस्तु क्या है। महत्त्वपूर्ण तो यह है कि मस्जिद के अंदर के एक-एक इंच की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराई गई है। सर्वे कमीशन ने जब वजू करने वाले स्थान से पानी हटवाया तो वहां शिवलिंग दिखाई पड़ा। कहा जाता है कि इस शिवलिंग की गोलाई साढ़े बारह फुट से भी अधिक है। शिवलिंग का जो वीडियो और फोटो सोशल मीडिया में देखा गया है, उसके ऊपरी हिस्से को तोड़ने की कोशिश की गई लगती है। इसी बात को लेकर मुसलमानों के पक्षकार और कुछ तथाकथित सेकुलर शिवलिंग को फुहारे का नाम देकर मामले को उलझाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन न्यायालय ने प्रथमदृष्ट्या यह माना है कि यह शिवलिंग ही है और उसकी पूरी तरह से सुरक्षा के लिए जिलाधिकारी तथा पुलिस प्रशासन को व्यवस्था करने का आदेश दिया है। स्थानीय न्यायालय ने यह भी कहा है कि केवल 20 नमाजी ही नमाज अता करने के लिए जा सकते हैं। उनकी वजू के लिए शिवलिंग की जगह से अलग कहीं अन्यत्र व्यवस्था की जानी चाहिए। सबसे पहले हिन्दू पक्षकारों के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि वजू स्थल से साढ़े बारह फुट की गोलाई वाला शिवलिंग मिला है। उसके बाद हिन्दू पक्ष के एक अन्य अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने भी कहा कि 12 फुट 08 इंच की गोलाई का शिवलिंग मिला है।
स्थानीय अदालत ने लॉ कमीशनरों को 17 मई तक अपनी सर्वे रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था, परन्तु सोशल मीडिया में शिवलिंग के प्रकट होने की घटना के वायरल होने से विशेष कमिश्नर अजय मिश्रा को अदालत ने हटा दिया। अन्य दो विशेष कमिश्नर विशाल सिंह और रवि कुमार दिवाकर को 19 मई तक अपनी सर्वे रिपोर्ट अदालत में सौंपने के लिए कहा है।