अग्नीपथ योजना का ऐसा विरोध समझ से परे

अग्नीपथ योजना की घोषणा के बाद शायद ही किसी ने कल्पना की होगी को उसका इतना उग्र विरोध हो सकता है। भारत जैसे देश में निर्णय चाहे जितना सही हो उसका विरोध होगा या प्रश्न उठाया जाएगा इसकी संभावना तो हर समय बनी रहती है किंतु इस ढंग की हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी आदि अप्रत्याशित है। किसी भी दृष्टिकोण से यह योजना विरोध के योग्य नहीं लगती। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका ऐलान किया तो लगा कि आने वाले दिनों में इस लघुकालीन युवा भर्ती योजना या शार्ट टर्म यूथ रिक्रूटमेंट स्कीम का व्यापक स्वागत होगा। आखिर  17.5 वर्ष से 21 वर्ष के बीच के दसवीं से बारहवीं पास युवाओं को क्या चाहिए? उन्हें अग्निवीर बनकर सेना में जाने का अवसर मिलेगा। 4 वर्ष वे काम करेंगे। उस बीच उनकी योग्यता क्षमता में बढ़ोतरी होगी। वहां से निकलने पर उन्हें 12वीं पास की डिग्री मिले इसकी भी व्यवस्था की जा रही है। 4 वर्ष उनको वेतन मिलेगा तथा निकलते समय 11 लाख 71 हजार रुपया  लेकर बाहर आएंगे। बाहर आने के बाद वो अनेक क्षेत्र में नौकरियों के लिए पहले से ज्यादा योग्य हो जाएंगे। तो इसमें गलत क्या है?

इसे लेकर अनेक प्रश्न और आशंकाएं उठाई गई है जो दो स्तरों पर है। एक सामान्य और एक सैन्य प्रोफेशनल। कहा गया है कि 4 वर्ष बाद उनका भविष्य क्या होगा इसकी स्पष्ट नीति नहीं है। विरोधी दल इसे सरकार की चुनावी रणनीति का शगूफा बता रहे हैं। कई सैन्य विशेषज्ञ ने इसे किंडर गार्डन आर्मी कहा है। कुछ लोगों ने तो उसे भाजपा के फासिस्टवादी यानी सैन्यकरण योजना का ही अंग बता दिया है। इनका मानना है कि इससे तो समाज का सैनिककरण हो जाएगा। सरकार से प्रश्न पूछा गया है कि क्या यह अनिवार्य सैन्य शिक्षा की योजना है? अगर ऐसा है तो एनसीसी को क्यों नहीं सक्रिय किया गया? वैसे ये सारे प्रश्न अलग-अलग लोगों या समूहों के दिमाग में उठ रहे होंगे। एक आशंका यह भी है कि अगर अग्निवीर हर वर्ष सेना में जाएंगे तो फिर स्थाई जवानों की संख्या घटती चली जाएगी। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि 4 साल बाद जब युवा अपनी सेवा पूरी कर निकलेंगे और इनको हथियार चलाने का प्रशिक्षण मिल चुका होगा तो ये अपराध की ओर जा सकते हैं। ऐसे और भी कई प्रश्न और शंकायें उठाई जा रही हैं।

  वैसे अग्निपथ योजना के तहत भर्ती की प्रक्रिया शीघ्र आरंभ होगी और केवल इस वर्ष 46 हजार अग्निवीर भर्ती होंगे। तो विरोध के बावजूद सरकार इस दिशा में आगे बढ़ चुकी है । सरकार ने कहीं नहीं कहा है कि  सेना में स्थाई भर्ती रोक दी जाएगी।   सेना के तीनों अंगों थल सेना, नौसेना और वायुसेना ने अग्नि वीरों को अपना 25 प्रतिशत पद देने की घोषणा की है। यानी अग्निवीर के लोग सेना में 25 प्रतिशत स्थाई रूप से शामिल होंगे। तो शेष 75% का क्या होगा? गृह मंत्रालय ने घोषणा कर दिया है कि इन्हें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों या सीएपीएफ और असम राइफल्स की भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी। उत्तर प्रदेश ,उत्तराखंड ,हरियाणा और मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य पुलिस में इन्हें प्राथमिकता से भर्ती करने का ऐलान किया है। इस तरह और भी घोषणाएं अलग-अलग राज्यों से हो सकती है। तो इनमें काफी संख्या में सेवा देकर बाहर निकले अग्निवीर जा सकते हैं। विरोध में कुछ ऐसे ऐसे प्रश्न उठाए जा रहे हैं जिनकी आप कल्पना नहीं कर सकते। मसलन, सांसदों विधायकों को पांच साल मिलते हैं तो हमें चार साल ही क्यों? इसमें पेंशन क्यों नहीं है। इसका जवाब क्या दिया जा सकता है?

विरोध करने वाले जो भी कहें लेकिन पहले भी शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में गए लोगों को अलग-अलग जगह प्राथमिकता दी गई है। उदाहरण के लिए चीन के साथ युद्ध के समय यानी वर्ष 1962 में शॉर्ट सर्विस कमीशन से सेना में गए लोगों में से अनेक को स्थाई किया गया। जिन्हें स्थाई नहीं किया गया उन्हें विकल्प दिया गया कि वो किस अंग में जाना चाहते हैं। उन्हें केंद्रीय सिविल सेवा में भी मौका मिला। देखा जाए तो रोजगार के लिए छटपटाते दसवीं से बारहवीं पास युवाओं के लिए अत्यंत ही अच्छी योजना है तथा सेना में सुधार की दृष्टि से अब तक का सबसे बड़ा कदम है। नई पीढ़ी को राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत करने तथा उनमें सकारात्मक दृष्टि से संघर्ष करने, बहादुर बनने की प्रेरणा का इससे बेहतर कदम कुछ नहीं हो सकता है। फिर चार वर्ष तक आपको शानदार रोजगार तथा बाहर आने के बाद 11 लाख 71 हजार का बैंकबैलेंस। जिससे आप कुछ काम कर सकते हैं या फिर आगे के रोजगार पाने की तैयारी भी। यह तो आम के आम और गुठली के दाम जैसी स्थिति हुई। यह घोषणा भी कर दी गई है कि 25 प्रतिशत पूरी तरह सेना में भर्ती के योग्य लोगों को स्थाई नियुक्ति मिलेगी लेकिन शेष बचे लोगों को भी ऐसे नहीं छोड़ा जाएगा कि वे बेकार हो जाएं। उन्हें सैन्य प्रशिक्षण के अलावा कुछ व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाएगा ताकि वह भविष्य में नौकरी पाने या स्वरोजगार आरंभ करने के योग्य हो सके। इसलिए यह नहीं कह सकते कि बिल्कुल आगे  के लिए कुछ सोचा ही नहीं गया है। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ेगा अनुभव के अनुसार उनके लिए कई रोजगार के स्रोत और निकल सकते हैं।

बावजूद प्रश्न तो हर योजना पर उठती है आगे भी उठेगा। देखा जाए तो यह भारत में सैन्य नियुक्ति की दृष्टि से सबसे बड़ा सुधार है। सेना के तीनों अंगों को पहले से काफी हद तक प्रशिक्षित लोग मिल जाएंगे। जहां तक अनिवार्य सैन्य शिक्षा का प्रश्न है तो भारत में बहुत बड़ा वर्ग इसका समर्थक है। अनेक देशों में यह योजना चल रही है। कम से कम ऐसे 15 देश अवश्य हैं जहां अनिवार्य सैन्य शिक्षा व्यवस्था है। चीन के बारे में भले न कहा जाए लेकिन वहां भी व्यवस्था दिखाई देती है। 1914 में पहले विश्व युद्ध के दौरान यूरोप के कई देशों ने अनिवार्य सैनिक सेवा प्रशिक्षण की शुरुआत की जिसमें युवाओं को ऐसे प्रशिक्षित किया जाता था ताकि वे तुरंत युद्ध के मोर्चे पर जा सके। इसलिए अगर इसके पीछे सोच धीरे-धीरे भारी संख्या में युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण देना है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। भारत जिस ढंग से रक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है उसमें भविष्य की दृष्टि से अत्यंत ही दूरगामी कदम है। चीन पाकिस्तान ही नहीं ऐसे कई देश जो भारत को कमजोर करने के लिए घात लगाए बैठे हैं। जब भी युद्ध करेगा या युद्ध जैसी अवस्था होगी हमारे पास पहले से प्रशिक्षित तुरंत सैन्य सेवा देने के लिए भारी संख्या में लोग मौजूद होंगे। यानी उसके लिए अफरा-तफरी नहीं बचेगी। भारत के नागरिक होने के नाते सरकार का दायित्व सबके लिए जीवनयापन का साधन उपलब्ध कराना है तो नागरिकों को भी देश के लिए अपने दायित्व का बोध होना आवश्यक है। अग्नीपथ योजना को इन दोनों दृष्टियों से देखा जाना चाहिए। हम अपने देश के भावी रक्षा जरूरतों को समझें और उसके अनुसार स्वयं को तैयार करें। यही दूरगामी हित में है और इसमें सामान्य परिवार के सामान्य पढ़ाई लिखाई वाले युवाओं को रोजगार, भविष्य के रोजगार की संभावनाएं तथा नए सिरे से जीवन शुरू करने के लिए कुछ नगदी तो मिलता ही है । साथ ही स्वरोजगार के लिए बिना गारंटी कर्ज की सुविधा होगी। उन्हें समाज में सम्मान तथा भविष्य में देश की सेवा करने की दृष्टि से उपयोगी बनाया जाएगा। इसलिए जो कुछ हो रहा है वह समझ से परे है ।

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