दो अंतराष्ट्रीय भुगतान फेल करने के बाद तीसरा भुगतान , वह भी केवल ब्याज का , श्रीलंका को जुलाई में करना है । तीनों भुगतान केवल ब्याज मात्र हैं , मूल नहीं और उसको चुकाने के लिए श्रीलंका को पाँच बिलियन डॉलर और उधार चाहिए आई एम एफ से , जिस पर चीन अड़ंगा डाल रहा है क्योंकि श्रीलंका, चीन को भी भुगतान नहीं कर पा रहा है ।
इकोनामिक्स , कोई रॉकेट साईंस नहीं है । यदि हम आप दस रूपए कमाए और बीस ख़र्चा करें और पड़ोसी पंद्रह कमाए और चौदह खर्चा करे तो बाज़ार को लगेगा की वाह आप तो बीस रूपया खर्चा करते हैं अतः अधिक धनी और सुखी है पर क़र्ज़ का ग़ुब्बारा एक न एक दिन फूटता अवश्य है ।
याद करें , इकोसिस्टम और बुर्जुआ की नौटंकी । हैपीनेस इंडेक्स में श्रीलंका को महान बताने वाले धूर्त ! कहाँ हैं वे ? क्यों नहीं बेल आउट करते श्रीलंका को ? कहां है धूर्त Ravish Kumar ?
पाकिस्तान भी हांथ पैर मार रहा है जून का ब्याज चुकाने के लिए । 2014 तक बात बात में ऐटमी बम का भय दिखाने वाले का पायजामा क्यों ढीला हो चुका है ?
भारतवर्ष में भी सत्ता परिवर्तन यदि 2014 में यदि न हुआ होता तो कदाचित भारत भी श्रीलंका पाकिस्तान के समकक्ष ही खड़ा दिखता और इकोसिस्टम कोरोनावायरस महामारी और रूस युक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक संकट के नाम पर पल्ला झाड़ लेता । सफ़ेदा को क्या अन्तर पड़ता दो चार करोड़ और हिन्दु मर जाते तो ?
हम लोग केवल सोशल मीडिया के माध्यम से जगा सकते हैं की धूर्त वामपंथियों और बुर्जुआ के इकोसिस्टम से सावधान रहिए और सनातन धर्म के इकोसिस्टम के संगठित रहकर शक्तिशाली बनाते रहिए ।