कांग्रेस-मीडिया-एनजीओ का इकोसिस्टम

“साल 2000-2001 के आस पास नवभारत टाइम्स में एक न्यूज स्टोरी छपी थी जो एमपी से उनके उनके पत्रकार अरुण या किसी अन्य नाम वाले दीक्षित की थी। उस में लिखा था कि, तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंग ने बजट में कटौती का हवाला देते हुए कई अखबारो को सरकारी विज्ञापन देना कम या लगभग बंद कर दिया लेकिन चुनिंदा प्रकाशनो, जिस में तीस्ता सेतलवाड के “कम्युनलिज्म कॉम्बैट” नामक अल्पज्ञात पत्रिका को भारी मात्रा में विज्ञापन देकर काफ़ी फायदा पहुंचाया गया।

दूसरी बात हम सअभी जानते हैं कि, ज़्यादातर राज्यो की कांग्रेस सरकारो द्वारा विभिन्न कार्यालयो और लाइब्रेरी, स्कूलो आदि में थोक के भाव यह पत्रिका सरकारी पैसो से मंगवाकर पढ़्वाई जाती थी। और उस में होता क्या था, ये हम सब जानते हैं। हर दंगे में हिंदू दोषी और मुस्लिम विक्टिम, हर दंगे के लिए हिंदू जिम्मेदार, संघ-भाजपा-विहिप आदि फासिस्ट जैसा एकतरफा एजेंडा ही चलता था।

खैर, इस तीस्ता प्रकरण के बहाने आप समझ सकते हैं, कि कांग्रेस-मीडिया-एनजीओ का इकोसिस्टम किस कदर देश को चूना लगाते हुए हमारे आपके पैसो से हमें ही गुमराह करता रहा और असली दंगाइयो, आतंकियो व गुनाहगारो की पैरवी करता रहा!”

                                                                                                                                                                                    जीतेन्द्र दवे  

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