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हिंदुओं पर अनगिनत अत्याचारो पर खामोशी क्यों

हिंदुओं पर अनगिनत अत्याचारो पर खामोशी क्यों

by डॉ. प्रवेश कुमार
in अवांतर, ट्रेंडींग, विशेष, सामाजिक
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पिछले कई दिनो से देश की राजनीति में मुस्लिम अत्याचार की गाथा का गायन बड़े ज़ोर शोर से किया जा रहा है। लेकिन इस पूरे डिस्कॉर्स में हिंदू हितो की बात तो हो ही नही रही, हाँ मीडिया चैनलों में विश्व हिंदू परिषद के पक्षकार ज़रूर हिंदूओ पर हुए और हो रहे अत्याचारों  पर चर्चा ज़रूर कर रहे है। अभी कल  ही कोर्ट की न्यायपीठ द्वारा एक मामले में हिन्दू  समाज को लेकर कुछ टिप्पणीयाँ की गई, जिसने समाज में ऐसा कुछ वातावरण निर्मित  किया की असली उत्पीड़ित समाज तो केवल मुस्लिम ही है। ख़ैर कई बार न्यायधीशो द्वारा बहुत-सी बातें कही जाती है लेकिन आदेश और अब्ज़र्वेसन में काफ़ी अंतर होता है लेकिन कुछ लोगों द्वारा समाज में अनर्गल बातो का प्रचार किया जा रहा है। वैसे कोर्ट को ऐसी टिप्पणियो से बचना चाहिये ऐसा ही कुछ देश के राष्ट्रपति ने भी कल ही कहा है। एक नूपुर शर्मा के वक्तव्य को देश भर में होने वाली हिंसा और हत्या का कारण मान लेना किसी भी रूप में न्यायसंगत नही लगता है। भारत में न्याय की एक प्रक्रिया है, किसी को भी अपराधी मानने के लिये  ज़िला सत्र न्यायलय द्वारा विस्तृत जाँच, वक्तव्य की रिकोर्डिंग आदि तमाम पक्ष पर ध्यान देते हुए ही कोई प्रतिक्रिया हो सकती है। बहरहाल भारत में हिन्दूओ पर अत्याचार का पूरा इतिहास उपलब्ध है, सिर्फ़ देखने और पढ़ने की ज़रूरत है। अभी हाल के वर्षों में ही मुस्लिम कट्टरवादियों द्वारा लगभग पाँच दर्जन से ज़्यादा हिन्दूओ की हत्या की गई है। वर्ष 2018 में अंकित सक्सेना’ को मुस्लिम कट्टरवादी पिता ने इस लिए मार दिया क्यूँकि अंकित और उनकी मुस्लिम बेटी आपस में प्यार करते थे। 17 मार्च 2021 को सुमित कुमार ने ख़ुशी नाम की लड़की जो कि एक मुस्लिम मत को मनाने वाली है, से शादी कर ली तो मुस्लिम वर्ग ने इसे अपने रिलिजन के ख़िलाफ़ माना और 20 मार्च को उसके घर और मोहल्ले पर हमला कर दिया।10 जुलाई को शुभम नामक दलित युवक से मुस्लिम दबंग युवकों से गली में जुआ खेलने को लेकर कहा सुनी हुई इसमें मुस्लिम युवकों द्वारा उसको पीट -पीट के मार दिया गया। वही राहुल राजपूत केवल थोड़ी तेज आवाज़ में माता के भजन सुन रहा था बस इतने पर ही उसे मुस्लिम युवा आतंकियो द्वारा मार दिया गया।  21 अगस्त 2018 में दिल्ली में संजय कुमार ने अपने पड़ोसी रुकसाना से जब शादी की तो रुकसाना के परिवार वालों ने संजय कुमार पर मुस्लिम मत में धर्मंतरित करने का दबाव डाला, परंतु संजय ने ऐसा नहीं किया तो उसे मार दिया गया। इसी प्रकार जनवरी 2018 में उत्तर प्रदेश के मेरठ में इस्लाम धर्म ना अपनाने को लेकर मुस्लिम कट्टरवादियो द्वारा महिला का गैंगरेप किया गया। इसी वर्ष एक दलित परिवार की शादी में कुछ मुस्लिम युवकों ने हंगमा किया लड़कियों से छेड़छाड की। मई 2018 में तमिलनाडु के भूमि नायक्कन पट्टी गांव में मुसलमानों ने हिन्दू अनुसूचित जाति वर्ग के अंतिम संस्कार पर रोक लगा दी, क्योंकि वह उनकी गली से होकर निकलते थे। जनवरी 2018 में हाथरस में मस्जिद के आगे एक अनुसूचित जाति के  युवक अमित गौतम को पीट-पीट के मुस्लिम युवकों ने मार डाला। हीना तलरेजा, ‘प्रशांत पुजारी’ वी. रामलिंगम, ‘परेश मेस्ता, ‘देवनूर सत्यनारायण, ‘चंदन गुप्ता, ‘कमलेश तिवारी, ‘खेतराम भील’, ‘नीलेश तेलगड़े, ‘भारत यादव, ‘भावेश कोली’ और अब कन्हैया लाल ऐसे पाँच दर्जन से ज़्यादा  नाम है जिनकी मुस्लिम वर्ग द्वारा हत्या की गई है। इस्लाम का लगभग 1400 सालो का आतंक का  इतिहास है, इसे नकारा नहीं जा सकता है। सीरिया और अफ़्रीकन देशों में रेफूजी बन कर गए इस्लाम ने कुछ ही समय में वहा की लगभग सभी आबादी का मतांतरण  कर दिया। बुतपरस्ती की ख़िलाफ़त करते हुए कितने ही लोगों की हत्या का आरोप इन पर है, मुस्लिम समाज इन आरोपों से बच नही सकता है। भारत में तो हज़ारों की संख्या में मन्दिरो को मुस्लिम चोरों, लूटमार करके बने शासकों ने सिर्फ़ इसलिए तोड़ दिए क्यूँकि वे उनके जैसी उपासना पद्धति को नही मानते थे। स्वयं तैमूर कहता है की “हिंदुस्तान पर हमलों का मेरा मक़सद काफिरों के ख़िलाफ़ अभियान चलाना और मुहम्मद के आदेशनुसार उन्हें सच्चे दीन में धर्मांतरित करना है”। अब अगर इस्लाम का ध्येय ही ग़ैर मुस्लिम को काफिर कहकर उनका अंत करना तो वो करेंगे क्या?

हम सभी जानते है कि इस्लाम एक अब्रह्मिक रिलिजन है इन रिलिजनो की पूरी नीव  ही या कहे की उनका आधार ही “एक किताब, एक भगवान और एक पूजा विधि” पर टिका होता है।  इनका ध्येय “रिलीजीयस राज्य” और फिर दुनिया में इस आधार पर शासन करने का प्रयास ही होता है। अमेरिकन इतिहासकार रिचर्ड एम. ईटन भी लिखते है “इस्लाम के द्वारा धर्मांतरण “तलवार के दम पर ही हुआ है” इसी बात को पीटर हार्डी, अफ़्रीकन इतिहासकार, भी मानते हैं कि “जब गर्दन पर तलवार होगी तो समाज क्या करेगा” । जेहादी अब्दुल रशीद हिन्दू संत एवं स्वतंत्रता सेनानी स्वामी श्रद्धानंद की हत्या सिर्फ़ इसलिए कर देता है क्योंकि वे शुद्धीकरण आन्दोलन के तहत मतांतरित मुस्लिमों को पुनः हिन्दू समाज में ला रहे थे। हज़ारों, लाखों हमारे हिन्दू भाइयों और उनके परिवारों को केरल में मोपलाओं द्वारा मारा गया, डाइरेक्ट ऐक्शन के नारे के तहत मुस्लिम वर्ग ने कितने हिन्दू समाज के परिवारों को उजाड़ा, भारत पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी और हिन्दूओ का नरसंहार क्या कोई भूल सकता है। स्वयं गाँधी को कहना पड़ा की मुस्लिम धींगा-धँगी करने वाले है।

भारतीय इतिहास में 90 के दशक में 300 हिंदुओ को कश्मीर में मारा गया। 1992 में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा हज़ारो निहत्थे हिंदू कारसेवकों पर गोली चलवाई गई। 1998 के दौर मे जम्मू-कश्मीर के कई ज़िलों एवं हिमांचल के चंबा ज़िले में सैकडो की संख्या में मुसलमानों ने हिंदुओं को मारा गया। क्या गुजरात के गोधरा को भूला जा सकता है? जहाँ 59 रामभक्तों को जला दिया गया था। वाराणसी सहित उप्र के कई ज़िले आज भी इन आतंकी गतिविधियों के शिकार हैं। और फिर भी यहा कहना की देश में हिंसा के वातावरण को निर्माण कारने में नूपुर शर्मा दोषी है। ये हिंदू तय करे की यथार्थ क्या है और मिथ्या क्या है।

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