क्या इससे हिन्दूओं की भावनाएं आहत नहीं होती ?

माँ काली सिगरेट पी रही है!

माँ काली के हाथ में जो ध्वज है वो एलजीबीटी का है। Lgbt यानि लेस्बियन, गे, बाई सेक्सुअल और ट्रांसजेंडर। इन शब्दों का अर्थ लिखना मुझे कष्टप्रद लगता है। सो, आप गूगल कर लो। अभी तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करो। अभिव्यक्त सुप्रीम कोर्ट की और अभिव्यक्ति इस फिल्म को बनाने वालों की।

हम हिंदुओं की सहिष्णुता का ही नतीजा है कि आज जो देखो वही मजाक बनाता है क्रिएटिविटी के नाम पर। अब काली माँ को सिगरेट पीते दिखाया जा रहा इस डॉक्यूमेंट्री में। अब जो फेमिनिस्ट हैं, Sickulars हैं, वामपंथी हैं, फर्जी के कवि-कवयित्री हैं, ब्लाह-ब्लाह हैं, उनको इसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी दिखेगी!

तसनीम रहमानी ने हमारे आराध्य महादेव का खुल्लमखुल्ला मजाक बनाया। कोई कुछ न बोला उस पर। तब सब शांत रहे। पर आग तो नूपुर ने लगायी। वाह, वाह रे सेकुलरिज्म की दुम!

हमारे सब्र की परीक्षा ली जा रही है। जिस दिन जलजला फूटेगा, सब कुछ उस जलजले में बह जाएगा, इसको याद रखियेगा। अभी भी समय है, चेत जाइये। सबसे बड़ी समस्या धिम्मी हिन्दू हैं, जो खुद को बहुत डेढ़ सयाने पढ़े-लिखे समझते हैं!

 

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