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इक मोड़ पे मस्जिद है, इक मोड़ पे मयखाना….

इक मोड़ पे मस्जिद है, इक मोड़ पे मयखाना….

by हिंदी विवेक
in अवांतर, ट्रेंडींग, सामाजिक
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जाए तो कहां जाए साकी तेरा दीवाना
इस मोड़ पे मस्जिद है उस मोड़ पे मयखाना

मैंने विविध भारती की आवाज थोड़ी बढ़ा दी। बादल गरज रहे थे। दिन में काली घटाओं ने अंधेरा कर दिया था। बिलंगनी पर कपड़े फड़फड़ा रहे थे। आटा छोड़ उन्हें समेटने दौड़ा। लौटा तब तक हरिहरन साहब आलाप ले रहे थे…इस मोड़ पे मस्जिद है उस मोड़ पे मयखाना…

आटा लगाते हुए सोचा। जैसे हालात हैं। दो ही विकल्प बचे हैं। इस मोड़ चले जाओ या उस मोड़। सुप्रीम कोर्ट की भाषा भी धमकी वाली है। गैस चालू कर तवा चढ़ा दिया था। नीचे की परत काली थी। याद आया लीना मनिमेकलाई ने काली बनाई है। मां सिगरेट पीते दिख रही है। लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। लेकिन क्या इसे लेकर बर्बरता कर दी जाए। नहीं। बचपन से देखता आया हूं। हिंदू देवी देवताओं के किसी ने अश्लील चित्र बना दिए। किसी ने चप्पल पर ही तस्वीर छाप दी। किसी ने पटाखा बना दिया। किसी ने कॉमेडी फिल्म बनाने के चक्कर में शिव को टॉयलेट में घुसा दिया।

किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं, लेकिन आहत मन अगर बदला लेने पर उतरे तो दुनिया बचेगी? शायद कोई नहीं बचेगा। फेसबुक पर लिखते समय अब लोग डरावनी नसीहतें देने लगे हैं। कहते हैं, भाई लिखो, लेकिन गला बचाकर।

इस देश में अगर संविधान और कानून का राज है तो लोगों की गलतियों की सजा कानून और संविधान को ही देने दें। मेरा भाई गर्म दिमाग का था। घर में उसने एक अपना कमरा बना लिया था। किसी को उसके कमरे में घुसने की इजाजत नहीं थी। मेरा इरेजर खो गया था। मैं उसके कमरे में घुस गया। तलाशी ली। वो था नहीं। इत्मीनान से ढूंढा। तलाशी लेने का अपना आनंद होता है। याद न रहा कितनी देर हो गई। वह आ धमका। मेरी गिरेबान पकड़ कर वहीं मेरी धुलाई कर दी। रोते हुए मां के पास गया तो मां ने मुझे ही डांटा। तू ही जिम्मेदार है। तू उसके कमरे में गया ही क्यों। घर में ये जो बखेड़ा हुआ है सब तेरी वजह से है। उसे जाकर बोल कि आइंदा उसके कमरे में नहीं घुसूंगा।

सुप्रीम कोर्ट भी मेरी मां से कम नहीं निकली। बहरहाल, खुला पत्र लिखने का कोई औचित्य नहीं। मां जानती थी कि घर में शांति रखने का वही तरीका था। तवे पर रोटी एक तरफ से पूरी जल गई थी। इतनी कि काली होकर धुआं उठने लगा था। एक बार फिर लीना मनिमेकलाई का काली का पोस्टर दिमाग में फिर गया। लगा मां काली सिगरेट पी रही हैं, धुआं उठ रहा है।

छत का पानी बहकर कमरे में आने लगा था। पता ही नहीं चला कि कब घनघोर बारिश होने लगी थी। मैंने हरिहरन साहब को कानों में से निकाला और रसोई की पट्टी पर रख दिया। छत पर जाकर देखा तो नाली में पोंछे का कपड़ा फंसा था। उसे हटाते ही छत पर दो इंच तक भरा पानी असम की बाढ़ की तरह नाली की ओर लपका। पानी देख चक्कर आने लगा। सोचा कि असम में लागों का क्या हाल होगा। 15 दिन से डूबा है। 14लाख लोग प्रभावित हैं। 175 की मौत हो चुकी है। काबुल खान और मीठी हुसैन की करतूत पर गुस्सा आया। दोनों ने बराक नदी का तटबंध तोड़ दिया था। इससे सिलचर शहर में दस फीट तक पानी भर गया। भावनाएं यहां आहत होनी चाहिएं।

छत पर असम का हल निकाल कर मैं कमरे में लौटा। तौलिए से सिर पोंछा। कपड़े बदले। मां की डांट याद आई। क्या मेरी ही गलती थी। मैं बुदबुदाया। प्रेशर कुकर की सीटी जोर से बजी। मुझे एहसाह हुआ कि कोई ट्रेन सीटी बजा रही है। लोग उस पर चढ़ जाना चाहते हैं। किसी सुरक्षित स्थान पर जाना चाहते हैं। एक भीड़ नारे लगाते हुए उनके पीछे है। अचानक लाइट चली गई। मैंने उठकर मोमबत्ती जलाई। लगा जैसे ताज हमले के शहीद नागरिकों की याद में मोमबत्ती लेकर मरीन ड्राइव पर चल रहा हूं। लौ जोर से फड़फड़ा रही थी। तब एक बाइक की नंबर प्लेट जेहन में कौंधती है। नंबर है 2611, ये नंबर तो किसी महिला नेता के बयान से पहले ही ले लिया गया था। इसका मतलब ?

इसका मतलब दाल बहुत ज्यादा घुट गई और शायद नीचे से जल गई। दूर से अजीब सी झंकार सुनाई देती है। याद आता है कि हरिहरन साहब इयरफोन में तड़फड़ा रहे हैं। मैं इयरफोन को मोबाइल से हटा देता हूं। हरिहरन अब मुर्कियां ले रहे हैं… इक मोड़ पे मस्जिद है, इक मोड़ पे मयखाना।

मैंने विविध भारती बंद कर दिया। देखा मां के दो मिस्ड कॉल थे। मां ने दोपहर को ही कहा था। खाना बनाने में आलस मत किया कर। बहुत कमजोर हो गया है।

मैं पलटकर जोर से चींखता हूं – मैं कमज़ोर नहीं हुआ हूं मी लॉर्ड। आपका संविधान कमज़ोर हो गया है। आपका कानून कमज़ोर हो गया है।

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