सीमा सुरक्षा की चुनौतियां

भारत की सीमाओं का काफी बड़ा हिस्सा चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लगता है जहां से घुसपैठ का खतरा बना रहता है, इसलिए सीमा सुरक्षा से जुड़ी सभी एजेंसियों का समन्वय आवश्यक कार्य है। इस दिशा में CIBMS का गठन सहायक सिद्ध होगा। 

किसी भी देश की सम्प्रभुता उसके भौगोलिक सीमाओं से निर्धारित होती है, जिसके अंतर्गत थल, जल तथा वायु सीमा क्षेत्र आते हैं। भारत एक सभ्यतागत देश है इसलिए इसकी सीमाओं का उल्लेख अलग-अलग कालखंड में नए-नए स्वरूप में परिभाषित किया गया है। भारत का वर्तमान मानचित्र 1947 में बंटवारे की वीभत्स ऐतिहासिक घटना तथा अंग्रेजों से स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात निर्धारित की हुई है। भौगोलिक रूप से भारत दक्षिण एशिया के सभी देशों के साथ-साथ चीन तथा म्यांमार से अपनी सीमायें साझा करता है। भारत की सम्पूर्ण सीमा रेखा लगभग 22629 किलोमीटर की है, जिसमें 15112.7 किमी. भूमि सीमा रेखा तथा 7516.6 किमी की तटीय सीमा रेखा है। भारत के 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में 119 सीमावर्ती जिलों के 456 ब्लॉक अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए हैं। कई भारतीय राज्यों में लम्बे तट हैं। भूमि सीमाओं का प्रबंधन तटीय और नदी की सीमाओं के प्रबंधन से बहुत अलग है।

किसी भी देश के लिए इतनी बड़ी सीमा को सुरक्षित रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, भारत में गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा प्रबंधित सीमा प्रबंधन विभाग को भारत की अधिकांश सीमाओं को सुरक्षित करने का काम सौंपा गया है, जिसमें उनके कुछ प्रमुख उद्देश्य घुसपैठ और नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने के साथ-साथ व्यापार को सुविधाजनक बनाने और सुरक्षित आवाजाही को सुनिश्चित करना है। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में पकिस्तान तथा चीन भारत की सीमा सुरक्षा पर सबसे बड़े खतरे हैं। ऐसे में भारत को अपनी सीमा को सुरक्षित और प्रबंधित करना सर्वोच्च प्राथमिकता में है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन से आने वाले प्रमुख खतरों और म्यांमार, नेपाल और भूटान से उल्लेखनीय खतरों के साथ, भारत के लिए सीमा सुरक्षा के खतरे यकीनन बढ़ रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद और सशस्त्र आतंकवादियों की आवाजाही तथा अवैध माल और नशीले पदार्थों की तस्करी को लगातार भारत में बढ़ावा रहा है, जबकि बांग्लादेश सीमा के साथ, अवैध आव्रजन और तस्करी मुख्य चिंता का विषय है। चीन की सीमा पर नियमित रूप से सशस्त्र घुसपैठ एक विकट समस्या बनती जा रही है।  चीन के साथ डोकलाम संकट तथा गलवान संघर्ष के कारण स्थिति तनावपूर्ण है।

सीमा प्रबंधन के लिए एक समग्र रणनीति और बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। करगिल संघर्ष के मद्देनजर, भारत सरकार ने देश में राष्ट्रीय प्रबंधन प्रणाली की समीक्षा के लिए चार टास्क फोर्स का गठन किया था। इनमें से एक सीमा प्रबंधन पर भी था। यह पहली बार था जब हमने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन के हिस्से के रूप में सीमाओं को समग्र रूप में देखा था। इस टास्क फोर्स की दी गई सिफारिशों को मंत्रियों के एक समूह द्वारा स्वीकार भी किया गया था। सीमा सुरक्षा बल के आधुनिकीकरण की शुरुआत 1980 के दशक में हाई-टेक सिस्टम जैसे हैंड हेल्ड थर्मल इमेजरी सिस्टम, लॉन्ग रेंज रिकोनिसेंस ऑब्जर्वेशन सिस्टम, और बैटल फील्ड सर्विलांस रडार प्राप्त किया, जिसने सही समय पर सूचना प्राप्त करने की क्षमता को बहुत बढ़ाया।

इस आधुनिकीकरण प्रक्रिया के बावजूद, वर्तमान प्रणाली में अभी भी कई चुनौतियां हैं, जैसे नदी सीमा क्षेत्र में उच्च तकनीक वाले उपकरण की कमी के कारण बाढ़ आने की स्थिति में वहां सुरक्षा की स्थिति कमजोर हो जाती है। प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में सीमा सुरक्षा प्रणाली का सुचारू रूप से शामिल ना होना भी चिंताजनक है। मोटे तौर पर, वर्तमान प्रणाली एकीकृत नहीं है और विभिन्न अर्धसैनिक बलों के बीच व्यवस्थित संवाद स्थापित न होने के परिणामस्वरूप सभी स्तरों पर एक सामान्य संचालन व्यवस्था प्रदान करने में विफल रहा है। उदाहरण के लिए असम राइफल्स, जो रक्षा मंत्रालय के प्रबंधन के तहत म्यांमार सीमा की रक्षा कर रहे हैं, शायद ही कभी अन्य सीमावर्ती अर्धसैनिक बलों के साथ समन्वय करते हैं। सेना द्वारा (जो म्यांमार की सीमा को नियंत्रित करती है) द्वारा हाल ही में युद्धक्षेत्र प्रबंधन प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय लिया है जिसका उद्देश्य सेवाओं के बीच समन्वय में उल्लेखनीय सुधार करके और प्रतिक्रिया समय को कम करके सेना को अधिक गतिशील बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

भारत ने पिछले तीन दशकों में बाड़ और संबद्ध बुनियादी ढांचे के निर्माण में बहुत सारे संसाधन खर्च किए हैं। इसने सीमाओं की रक्षा और प्रबंधन के लिए सीमा सुरक्षा बलों की क्षमताओं का भी निर्माण किया है। घुसपैठ की जांच, तस्करी को कम करने, प्रतिबंधित पदार्थों पर अंकुश लगाने आदि पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा में संघवाद की नीति कई बार संघर्ष का कारण बन जाती है, हाल ही में गृह मंत्रालय द्वारा सीमा सुरक्षा की नीति को परिभाषित किया गया जिसका विरोध पश्चिम बंगाल तथा पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा किया गया। सीमा सुरक्षा प्रबंधन में केंद्र और राज्य एजेंसियों के बीच घनिष्ठ समन्वय आवश्यक है। पर अक्सर ऐसा नहीं होता है। चूंकि भूमि राज्य का विषय है। इसलिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भूमि एवं पर्यावरण मंजूरी की एवं कई अन्य अनुमोदनों की आवश्यकता होती है। लेकिन केंद्र-राज्य संबंधों की जटिलता सीमा प्रबंधन को और अधिक कठिन बना देती है। वे सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय एजेंसियों की मौजूदगी को अस्वीकृति के साथ देखते हैं। पठानकोट आतंकवादी हमले के बाद गृह मंत्रालय ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी चौतरफा सुरक्षा प्रदान करने वाली सीमाओं पर एक एकीकृत सुरक्षा प्रणाली स्थापित करने के लिए कार्यान्वयन व्यापक प्रबंधन प्रणाली को मंजूरी दी है। केंद्र ने जम्मू-कश्मीर पुलिस और अन्य अर्धसैनिक बलों के प्रशिक्षण को विस्तृत किया है। उन्हें आतंकवाद विरोधी कौशल, अपहरण विरोधी अभियानों की प्रशिक्षण देने के लिए जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के कमांडो को तैनात करने का निर्णय लिया गया है। सीमा सुरक्षा के लिए भारत सरकार को सामाजिक परिप्रेक्ष्य पर भी ध्यान देना चाहिए। कई सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाली आबादी अनेक मौकों पर सीमा पार से हो रही घुसपैठ तथा दूसरे देश के सैनिकों की गतिविधियों की सूचना हमारे देश के सैनिकों तक पहुंचाने का कार्य करती है। यह आबादी सीमावर्ती क्षेत्रों से अच्छी तरह परिचित होती है जिससे यह सुरक्षा बलों के लिए सहायक साबित हो सकती है।

भारत में स्थिर और सुरक्षित सीमाओं को प्राप्त करने तथा वर्तमान और भविष्य के खतरों से निपटने के लिए सीमा नियंत्रण और निगरानी के लिए मजबूत प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है। उखइचड एक ऐसा समाधान हो सकता है जो भारत की आंतरिक सुरक्षा, मुख्य रूप से घुसपैठ और नशीली दवाओं तथा हथियारों की तस्करी के खिलाफ एक सुरक्षा तंत्र बना सकता है।

डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव 

 

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