1947, नवंबर 3 तारीख। तारीख याद रखिये। भारत को कागजों मे स्वाधीन हुए 3 महीना भी नही हुआ था । वेद-कर्मकांड स्कूल में प्राइज़ गिविंग सेरिमनी चल रहा था। उस समय में गवर्नर थे कैलाशनाथ काट्जू। वे आयेथे मुख्य अतिथि बनकर। प्रधान आचार्य पंण्डित राम चन्द्र रथ भी वहाँ उपस्थित थे और सभापतित्व कर रहे थे। भारतिकृष्ण तीर्थजी, जो कि कितने ही विषयों मे फर्स्ट क्लास फास्ट थे आप अनुमान भी नही कर सकते। भारतिकृष्ण जी गोवर्धन मठ के मुख्य(शंकराचार्य) थे और उस कार्यक्रम के सभापति थे।
सभापति गवर्नर को इंट्रोड्यूस करते हुए बोले की वेद में ऐसे 16 मंत्र है जिससे कोईभी गणित संबंधी समस्या का समाधान हो सकता है। इसको सुनते ही काटजू उठ खड़े हुए और बोले की वेद की प्रशंसा करना अच्छी बात है। क्यों कि वेद, हिन्दू धर्म का सर्वश्रेष्ठ शास्त्र है। वेद हमारा मूल है और जगन्नाथजी को भी वेदपुरुष कहा गया है। इसलिए वेद की प्रशस्ति गाने में कोई असुविधा नहीँ है। पर शंकराचार्य के पीठ में बैठे हुए भारतिकृष्ण जी के द्वारा यह कहना की वेद में सारी समस्या का समाधान हो सकता है- अतिश्योक्ति है। इसको सुनकर शंकराचार्य भारतिकृष्ण जी फिर से उठे और बोले “ठीक है। आप मुझे कोई गणित संबंधित प्रश्न दीजिये और मेरे वैदिक समाधान आप देखिये।
देखते देखते प्राइज़ गिविंग सेरिमनी, एक शास्त्रार्थ सभा में बदल गयी। ब्लैकबोर्ड लाया गया। उसके बाद शंकराचार्य भारतिकृष्ण जी काट्जू जी से बोले कृपया आप अपना प्रश्न लिखिये। काटजू गणित में एम.ए. थे। उन्होंने ब्लैकबोर्ड में एक प्रश्न हिंदी में लिखा। इसे देखकर भारतिकृष्ण जी ने उस प्रश्न को अंग्रेजी में लिखने केलिये बोला। काटजू ने तुरंत उस प्रश्न को अंग्रेजी में भाषांतर कर दिया। शंकराचार्य जी ने पूछा की यह ट्रांसलेसन ठीक हुआ है ? उन्होंने बोला “यह ठीक है” । इसका समाधान करना था शंकराचार्य जी को।
पर उन्होंने अपने एक 15 बर्ष के शिष्य को बुलाया। संस्कृत में शिष्य को बोले कि आकर समाधान कर दो। शंकराचार्य जी ने खुद नहीँ किया। वह शिष्य आया, और सीधे उसका उत्त्तर लिख डाला। जैसेही उसने लिखा, काटजू ने उसका प्रतिवाद किया “नहीँ, यह सही नही है। आप एक एक स्टेप करके बताइये। यह कोई जादू भी हो सकता है ! आप कोई मंत्र या तंत्र जानते होंगे। इसको सोपानित करिये” । शंकराचार्य जी ने अपने शिष्य को कहा, बेटा, इसको तुम एक एक स्टेप में कराके दिखाओ” ।
शिष्य ने फिरसे चाक पकड़ा और एक एक स्टेप करके वह उत्तर तक पहुंचा। उस समय काटजू का शिर झुका हुआ था और आँख से आँसू आ रहे थे। उन्होंने खड़े होकर सबके सामने बोला की में निःसर्त क्षमा माँगता हूं। में नहीँ जानता था की वेद में ऐसा भी ज्ञान है और आप नहीँ आपके पंदरह साल के शिष्य ने मेरे प्रश्न का समाधान करदिया ! इसके बाद काट्जू ने हाथ जोड़ कर पूछा कि वैदिक गणित सीखने केलिये कितने दिन लगेंगे ? शंकराचार्य जी ने कहा की छह महीने तक आप अगर मेरे पास आएंगे यो मैं आपको वैदिक गणित सीखा दूँगा। उसके बाद छह महीेने तक गोवर्धन मठ के सामने गवर्नर की गाड़ी खड़ी होने लगी।