तोड़नी होगी फेक न्यूज़ के वायरस की कड़ी..

‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो के नए सीजन के प्रोमो में फेक-न्यूज़ को लेकर एक विज्ञापन दिखाया जा रहा है! इतने बड़े शो में इस मुद्दे जिक्र होना आसान बात नहीं है! पर, यदि फेक-न्यूज़ की बात यहां हो रही है, तो समझा जा सकता है कि मसला कितना गंभीर है! ख़बरों में झूठ की मिलावट करके उसे बेचना प्रतिद्वंदिता का एक फंडा हो सकता है, लेकिन ख़बरों की दुनिया में यह गलत परंपरा है! दरअसल, फेक-न्यूज़ ख़बरों के उस माध्यम की देन है, जहां ख़बरों की मारधाड़ ज्यादा है! लेकिन, इससे प्रिंट मीडिया अब तक बचा रहा, इसलिए कि उसके पास ख़बरों की सत्यता की पुष्टि के लिए पर्याप्त समय होता है। इसके साथ ही छपे शब्दों की विश्वसनीयता भी ज्यादा होती है! यही कारण है कि प्रिंट मीडिया में ख़बरों के साथ इस हद तक खिलवाड़ नहीं होता कि उस पर फेक-न्यूज़ का ठप्पा लगे! यदि ऐसा कुछ होता भी है, तो वो सहज, स्वाभाविक मानवीय गलती तक सीमित होता है, न कि पूरी खबर ही झूठ की बुनियाद पर खड़ी होती है!

केबीसी के सीजन-14 का एक प्रोमो इन दिनों तेजी से वायरल हो रहा है। इस प्रोमो में बताया गया है कि फेक न्यूज़ कैसे पूरे समाज को भ्रमित करता है। दुनिया ने जिस तेजी से तरक़्क़ी की है, फेक न्यूज़ का चलन भी उसी तेजी से बढ़ा है। ये सच है कि मीडिया देश दुनिया के सभी वर्गों को बाख़बर करता है। समाज इसके माध्यम से न केवल सूचनाएं प्राप्त करता है बल्कि इन सूचनाओं से अपनी समझ का स्तर भी बढ़ाता है। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि बाजारवाद के बढ़ते चलन ने इस क्षेत्र को भी कलंकित करने में कोई कोर कसर नहीं छोडी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में झूठ भी खूब परोसा जाने लगा है। एक समय था कि फिल्मों को लोग गम्भीरता से नही लेते थे। लेकिन आज न्यूज़ चैनलों की भी यही दुर्दशा हो रही है। खबरों की विश्वसनीयता नहीं बची है। यही वजह है कि अब सिनेमा से जुड़े लोग ज्ञान को बटोरने से पहले सच को टटोलने की सलाह केबीसी के प्रोमो के माध्यम से दे रहें। ऐसे में सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ज़माना कितना बदल गया है और हमारा समाज किस दिशा में बढ़ चला है। आज इंटरनेट का युग है, लेकिन इस युग में सूचनाएं जितनी तेज़ी से गतिमान हैं। उससे कहीं अधिक तेजी से फेक न्यूज़ फैलाई जा रही। जिसमें अब मेनस्ट्रीम के मीडिया हाउस भी शामिल होकर जाने-अनजाने में फेक न्यूज़ को बढ़ावा दे रहे। शायद यही वजह है कि जिस सिनेमा को गंभीर लोग नॉन सीरियस फील्ड मानते रहें हैं, उसी सिनेमा के लोग अब ज्ञान बटोरने और सच को टटोलने की सीख देने लगे हैं।

कार्ल मार्क्स ने एक समय धर्म को अफ़ीम की संज्ञा दी थी। वर्तमान दौर में ये कहें कि सोशल मीडिया नए युग का अफ़ीम है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सोचने वाली बात है कि जिस देश में सबसे बड़ी आबादी युवा वर्ग की हो। जिन्हें शिक्षा स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए। देश के विकास में अपनी भागीदारी निभानी चाहिए। आज उसी देश के युवा फेक न्यूज़ के वायरस से ग्रसित है। फेक न्यूज़ के जरिए देश में अशान्ति फैलाई जा रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आख़िर इस तकनीकी युग में वही खबरें क्यों तेजी से वायरल होती है जिनका सच से कोई सरोकार ही न हो? कहीं न कहीं यह सरकार की नाकामी का भी परिणाम है। सरकारी तंत्र के पास फेक न्यूज़ को रोकने के लिए एक समुचित तंत्र का न होना अपने आपमें बड़े सवाल खड़े करता है, लेकिन जिस दौर में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर ही असमंजस की स्थिति हो। फिर फेक न्यूज़ पर रोक कैसे संभव हो सकती है। सरकार फेक न्यूज़ पर लगाम लगाने के मार्फ़त कई बार अपने विरोधी स्वर को भी दबा सकती है। तो वहीं विपक्ष जानबूझकर कई बार ऐसा आरोप लगा सकता है जिससे सरकार की छवि धूमिल हो। ऐसे में आज की स्थिति दोधारी तलवार जैसी हो गई है। सरकार फेक न्यूज़ को लेकर कदम उठाएं तो दिक़्क़त और न उठाएं तो समाज भ्रमित हो रहा सो अलग। वैसे टीआरपी के इस खेल में खबरों का सच्चाई से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है। लेकिन आज भी प्रिंट मीडिया की खबरों में प्रमाणिकता है। यही वजह है कि लोग आज भी अखबारों को बड़े चाव से पढ़ते है।

गौरतलब हो कि फेक न्यूज़ एक तरह की पीत पत्रकारिता (यलो जर्नलिज़्म) है। जिसे किसी एक व्यक्ति या पार्टी के पक्ष में खबरे चलाने प्रचार करने या भ्रम फैलाने के लिए किया जाता है। यहां एक बात गौर करने वाली है कि फेक न्यूज़ मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि इसके माध्यम से कहीं न कहीं समाज में अराजकता फैलाने का कुचक्र रचा जाता है। मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अध्ययन की माने तो सोशल मीडिया से झूठी खबरें छह गुना तेज गति से वायरल होती है। इस अध्ययन में 2006 से 2016 के बीच माइक्राब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर ट्वीट की गई 1.26 लाख खबरों का आकलन किया गया। जिसमें झूठी खबर 70 फीसदी अधिक बार रीट्वीट की गई। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि झूठी खबरे किस तरह समाज में तेजी से वायरल कर दी जाती है। भारत में जिस तेजी से सोशल मीडिया का चलन बड़ा है, उससे भी तेज गति से फेक न्यूज़ का चलन बड़ा है। सोशल मीडिया आम आदमी की पहुंच में तो आ गया है। पर दूसरी तरफ़ यह समाज में अराजकता फैलाने का साधन बन गया है। ग़रीब शोषित वर्ग के लिए एक समय पर यह अपनी बात जनमानस तक पहुँचने का जरिया था। लेकिन वर्तमान समय में सोशल मीडिया के जरिए समाज में भय का माहौल बनाया जा रहा है। यही वजह है कि जब कभी देश में हिंसा का माहौल बनता है तो सबसे पहले सरकारों को इंटरनेट बन्द करना पड़ता है ताकि समाज में झूठी खबरें प्रसारित होने से रोकी जा सके। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या नेट बन्द कर देने भर से फेक न्यूज़ पर लगाम लगाई जा सकेगी। इस दिशा में सरकार को और समाज को सोचना होगा।

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन्स के आंकड़ो की माने तो भारत दुनिया में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद करने वाला देश है। अभी हाल ही में नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर दिए विवादित बयान के बाद कई राज्यों में उपद्रव हुए। झारखंड की राजधानी रांची में उपद्रव बढ़ा तो 33 घंटे के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया। फिर सवाल यही उठता है कि कैसे एक बयान को लेकर पूरे देश में अराजकता फैला दी जाती है। यहां तक कि एक समुदाय के चंद लोगो द्वारा समाज में डर का माहौल बनाने का प्रयास तक किया गया। अभी हाल ही में राजस्थान में घटी घटना का ही जिक्र करें तो कन्हैया कुमार की हत्या करने बाद उसका वीडियो बनाकर देश में माहौल खराब करने का काम किया गया। यह कोई पहली घटना नहीं है जब सोशल मीडिया के माध्यम से देश में आग लगने का प्रयास किया गया हो। वर्तमान की घटनाओं पर नजर डाले तो देखेंगे कि सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के साथ ही फेक न्यूज़ का दायरा भी बढ़ गया है। हर सच्ची झूठी खबर को तोड़ मरोड़ कर पेश करना तो मानो फ़ैशन बन गया है। जिसमें हर वर्ग के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे है। फेक न्यूज़ पर लगाम लगाने के लिए सरकार को कोई ठोस कदम उठाना होगा वरना वह दिन दूर नहीं जब विज्ञान वरदान की जगह अभिशाप बन जाएगा।। ख़ासकर सोशल मीडिया जिसे पिछड़े और शोषित वर्ग की आवाज कहा जाता है। वही समाज के विनाश का टूल बनकर रह जाएगा।

                                                                                                                                                                                 – सोनम लववंशी

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