सरेंडर होते पड़ोसियों के बीच मजबूत भारत

कोरोना काल और इसी दरम्यान रूस और यूक्रेन जैसे दो देश जो वैश्विक सप्लाई चेन के मुख्य पड़ाव और तेल ऊर्जा गैस अनाज के मुख्य आपूर्तिकर्ता हैं के बीच युद्ध छिड़ गया है, अमेरिका में मंदी और ब्याजदर के बढ़ने की आशंका के बीच वैश्विक मंदी की दस्तक आ रही है और भारत के चारों तरफ बसे पडोसी देश एक के बाद एक संकट में आते जा रहें हैं.

अभी श्रीलंका संकट तो हम देख ही रहें थे कोरोना की इस लंबी महामारी और उसी दौरान काला सागर और यूरेशिया में आये युद्ध के संकट ने ग्लोबल इकॉनमी के मुद्रा रुपी रक्त संचार को मंद कर दिया है जिसके चपेट में एक के बाद एक भारत के पडोसी आ रहें हैं. श्री लंका के बाद अब नेपाल और पाकिस्तान में संकट गहरा रहा है और चीन भी इससे अछूता नहीं है. चीन में कोरोना के प्रति जीरो टॉलरेंस, रियल एस्टेट के थ्री रेड लाइन्स और कोयले की कमी से बिजली उत्पादन तत्पश्चात औद्योगिक उत्पादन में गिरावट से जूझ ही रहा था की उसके चार ग्रामीण बैंकों के पास तरलता संकट आ गया और जब बैंकों के बाहर भीड़ जमा होने लगी तो उसे टैंक लगाना पड़ा.

हमारे और चीन के बीच स्थित नेपाल में पर्यटन में गिरावट के कारण आई मंदी से नेपाल की इकोनॉमी भी संकट में है नेपाल की मुद्रा भी काफी गिर चुकी है और उसके भी बैंक तरलता संकट का सामना कर रहें हैं. नकदी जमा करने के लिए बैंक लुभावने ऑफर दिये जा रहें हैं ताकि बैंकों की तरलता बनी रहे. कोरोना के कारण पर्यटन और रूस-यूक्रेन युद्ध सें नेपाल की आपूर्ति जिस कारण से इकोनॉमी पर बड़ा असर पड़ा है और इसका विदेशी मुद्रा भंडार कम  हो रहा है।

श्रीलंका चीन नेपाल के बाद चौथा पडोसी पाकिस्तान की भी हालत खस्ता है और वह  महंगाई से बेहाल हो रहा है. श्रीलंका की तरह ही पाकिस्तान में भी महंगाई ही  कहर ढा रही है जो 21 फीसदी से अधिक जा पहुंची है। पाकिस्तान की नई सरकार भी महंगाई को रोक नहीं पा रही.  यहां जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान पर हैं, गरीब लोगों का तो जीना मुहाल हो रखा  है और पेट्रोल से लगायत बिजली संकट भी चरम पर है। श्रीलंका की तर्ज पर पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार गिर रहा है। इस देश के पास सिर्फ कुछ हफ्ते का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बैंक पाकिस्तान को कर्ज देने के लिए कई शर्ते लगा रहा है। पकिस्तान ने अपना राजस्व बढ़ाने के लिये अब पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी भी बंद कर दी है तथा गैर-जरूरी वस्तुओं के आयात पर रोक लगा दी है जिस कारण महंगाई काफी बढ़ गई है और पाकिस्तानी रुपया लगातार गिरता जा रहा है जो पिछले रिपोर्ट तक डॉलर के मुकाबले 225 रुपये तक गिर गया है।

बांग्लादेश की भी रिपोर्ट अच्छी नहीं आ रही, वैश्विक बाजार की स्थिति का नकारात्मक असर बांग्लादेश पर पड़ा है. हालात को नियंत्रित करने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है. बांग्लादेश के आर्थिक हालात लगातार बिगड़ रहे हैं और आशंका है कि कहीं इस देश की स्थिति भी श्रीलंका जैसी न हो जाए. अंतरराष्ट्रीय बाजार में जरूरी वस्तुओं, कच्चे माल और ईंधन, सामान ढुलाई आदि की कीमतों में भारी बढ़ोतरी से बांग्लादेश पर बुरा प्रभाव पड़ा है. श्रीलंका के दिवालिया होने के बाद बांग्लादेश की स्थिति भी तेजी से बिगड़ रही है.

बांग्लादेश की कुल आबादी 16 करोड़ है और यह दुनिया की 41वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और आज इसपर भी आर्थिक संकट गहरा रहा है. बांग्लादेश सरकार ने आईएमएफ से 4.5 अरब डॉलर कर्ज की मांग की है ताकि विदेशी मुद्रा भंडार स्थिर रखा जा सके. डॉलर के मुकाबले टका 20 फीसदी गिर गया है. 17.2 अरब डॉलर का अकाउंट डेफिसिट है. बांग्लादेश ने डीजल से चलने वाले पावर प्लांट कर दिए हैं. इसके पीछे सरकार का मकसद आयात बिल घटाया जा सके. दिन में औसतन 13 घण्टे बिजली रह रही है और 1500 मेगावाट का बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है. विदेशों में रहने वाले बांग्लादेशियों से आने वाले रेमिटेंस में भी 5 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है.

बांग्लादेश के लिए चिंता की बात है कि उसके आयात खर्च में काफी वृद्धि हुई है जबकि निर्यात से होने वाली आय कम हुई है. जुलाई से मार्च की अवधि में बांग्लादेश के आयात खर्च में 44 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है इससे  इससे व्यापार घाटा बढ़ा है और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ा है. यह व्यापार घाटा पिछले कई महीनों से धीरे-धीरे बढ़ रहा है जिस कारण बांग्लादेश ने आयात खर्च का भुगतान करने के लिए देश में जमा डॉलर की बिक्री जारी रखी है. यह ठीक उसी तरह हो रहा है जैसे श्रीलंका में हुआ था विदेशी कर्ज और आयात खर्च बढ़ना. इस कारण बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता जा रहा है. देश में जितनी विदेशी मुद्रा बची हुई है उससे सिर्फ 5.4  महीने ही काम चलाया जा सकता है. अगर वैश्विक बाजार में कीमतें और बढ़ती हैं तो बांग्लादेश का आयात खर्च और बढ़ेगा और विदेशी मुद्रा भंडार पांच महीने से पहले भी खत्म होने की उम्मीद है. फिलहाल बांग्लादेश के पास 39.6 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) बांग्लादेश पर लगातार दबाव बना रहा है कि वह विदेशी मुद्रा भंडार की सही गणना पेश करे. अगर बांग्लादेश आईएमएफ के इस निर्देश का कड़ाई से पालन करता है तो निर्यात क्रेडिट फंड, सरकारी परियोजनाओं, श्रीलंका को दी गई राशि और बांग्लादेश का सरकारी बैंक सोनाली बैंक में जमा राशि को छोड़कर गणना करनी होगी. ऐसे में अनुमान जताया जा रहा है कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 7 अरब डॉलर की कमी आ जाएगी.

सुकून की बात यह है की जहां भारत के पडोसी बुरी तरह से परेशान हैं वहां भारत की स्थिति उनसे बेहतर है. भारत का रुपया भी अन्य देशों की तुलना में कम दर से गिरा है डॉलर के मुकाबले. भारत के सनातन और माइक्रो इकॉनमी का जाल इस तरह बुना है की यह बड़े से से बड़े झटके को भी बर्दाश्त करने की क्षमता अभी भी बनाये हुआ है. 70 फीसदी इकॉनमी एग्रो होने के कारण और एग्रो में आत्मनिर्भर होने के कारण भारत के पास यह आत्मविश्वास है कि वह भूखा नहीं सोयेगा और यही आत्मविश्वास और इससे उपजा हौसला इसे लड़ाई में आगे रखे हुए है. भारत की कैपेसिटी बिल्डिंग के तहत जो भी योजनाएं चलाई गईं खासकर के आधारभूत ढांचे का, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत इन सब ने इस लड़ाई में मजबूती से भारत का साथ दिया है, यही कारण है की इस वैश्विक मंदी में भी भारत अभी भी मजबूती से लड़ रहा है जबकि आसपास के देश सरेंडर कर रहें हैं.

– पंकज जायसवाल गांधी

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