वैश्विक क्षितिज पर भारतीय सूर्योदय

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई है। वैसे तो भारत शुरू से ही किसी गुट में जाने से बचा रहा लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान सभी महाशक्तियों की दृष्टि हमारी ओर ही रही। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव वर्ष एक संकल्प पत्र की भांति है, कि आने वाले वर्षों में भारत सर्व प्रमुख ‘सुपर पावर’ बन कर उभरे।

स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में हम ‘स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं, जो एक वर्ष चलेगा। उसका लक्ष्य है कि अगले 25 वर्षों में भारत महाशक्ति के रूप में उभर कर आए। प्रश्न है कि क्या भारत महाशक्ति नहीं है? क्या सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक और राजनीतिक प्रभाव के मामले में हम महाशक्ति नहीं हैं? आर्थिक स्थिति, शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य की स्थिति, इंफ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक विकास को देखते हुए आप कह सकते हैं कि भारत महाशक्ति नहीं है। परंतु शायद इस दशक के अंत तक हम पूरे भरोसे के साथ भारत को ‘सुपर पावर’ कहने की स्थिति में होंगे। भारत ने 21वीं सदी की शुरुआत एक नए सूर्योदय के साथ की है। सैन्य महाशक्ति वह पहले से है। आर्थिक महाशक्ति के रूप में धीरे-धीरे ही सही वह नई ऊंचाइयां छू रहा है और छूता जाएगा।

राष्ट्रीय शक्ति

भारत को उसकी सैन्य-शक्ति भी महाशक्ति बनाती है, पर हमारी आकांक्षाएं विस्तारवादी नहीं हैं। हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 में भारत के चार आदर्शों का वर्णन किया गया है, जो हमारी अंतरराष्ट्रीय भूमिका को रेखांकित करते हैं। भारत निम्न बातों का प्रयत्न करेगा- 1.अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में वृद्धि, 2.राष्ट्रों में न्यायपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बंध, 3.अंतरराष्ट्रीय कानून तथा संधियों का पालन, 4.पंचनिर्णय द्वारा अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे को प्रोत्साहित करना।

विदेश नीति केवल उदात्त आदर्शों से नहीं चलती। उसके दो तत्त्व बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। एक राष्ट्रीय हित और दूसरा शक्ति। शक्ति को परिभाषित करना सरल नहीं है, पर मोटे तौर पर यह आर्थिक शक्ति है। इसके बगैर हम किसी दूसरी ताकत की उम्मीद नहीं कर सकते। आज के युग में टेक्नोलॉजी भी एक बड़ा कारक है। इसके लिए औद्योगिक शिक्षा यानी ज्ञान के आधार की जरूरत होगी। ऐसा भी नहीं कि ताकत का आदर्शों से रिश्ता नहीं होता। ताकत माने अमानवीय शक्ति कतई नहीं है। उसके पीछे आदर्श होते हैं, पर कमजोर शक्ति के आदर्शों को कोई नहीं पूछता।

आर्थिक-नीति

विदेश नीति का प्रभाव केवल अंतरराष्ट्रीय मंच पर ही नहीं होता। देश की आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर भी उसका असर पड़ता है। विदेश-नीति के तीन कारक एक साथ चलते हैं और भविष्य में इनका विस्तार ही होगा। पहला है आर्थिक विकास, दूसरा सुरक्षा और तीसरा अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भागीदारी। वर्तमान भारतीय विदेश नीति के दो लक्ष्य हैं। एक, सामरिक और दूसरा आर्थिक। देश को जैसी आर्थिक गतिविधियों की जरूरत है वे उच्चस्तरीय तकनीक और विदेशी पूंजी निवेश पर निर्भर हैं। भारत को तेजी से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है जिसकी पटरियों पर आर्थिक गतिविधियों की गाड़ी चले। हालांकि दुनिया से शीतयुद्ध विदा हो चुका है, पर पिछले कुछ वर्षों में उसकी वापसी भी नई शक्ल में होती दिखाई पड़ रही है। उसे देखते हुए अमेरिका, यूरोपीय संघ, इसरायल, रूस, चीन, जापान और हिंद प्रशांत देशों के साथ हमारे रिश्ते पुनर्परिभाषित हो रहे हैं।

स्वतंत्र विदेश नीति

भारतीय विदेश नीति की सबसे बड़ी विशेषता है, उसकी स्वतंत्रता। हम महाशक्ति तभी कहला सकते हैं, जब किसी के पिछलग्गू न बनें। भारत ने न तो कोई गुट खड़ा किया न किसी गुट के साथ खड़ा होने की कोशिश की। यों सामरिक दृष्टि से हमने अमेरिका के साथ रिश्तों को सुधारा है, पर रूस के साथ रिश्तों को बिगाड़े बगैर। कोई आत्मशक्ति हमारे पास है, तभी यह सब कर पाए। अमेरिका ने भी एशिया की धुरी में भारत को इस इलाके की केंद्रीय शक्ति माना है। यूक्रेन युद्ध के कारण रूस इन दिनों अमेरिका और पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। दूसरी तरफ भारत की सेना के तीनों अंग रूसी शस्त्रास्त्र से लैस हैं। साथ ही हमें रूस से सस्ता पेट्रोल भी मिल रहा है। इसलिए यह रिश्ता आसानी से खत्म नहीं होगा। अगले कुछ साल में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हमारा व्यापार बढ़ेगा। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के अनुबंध पर भारत तेल और गैस की खोज कर रहा है। यह बात चीन को पसंद नहीं। जिस तरह चीन हिंद महासागर में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के बारे में सोच रहा है उसी तरह हमें भी अपने हितों की रक्षा करनी है।

सॉफ्ट पावर

2015 में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। यह भारत की सॉफ्ट पावर की शुरुआत थी। भारत के पास प्राचीन संस्कृति और समृद्ध ऐतिहासिक विरासत है। हम अपनी इस विरासत को दुनिया के सामने अच्छी तरह पेश करेंगे तो देश की छवि अपने आप निखरती जाएगी। इसी तरह भारत में बौद्ध संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण केंद्र हैं। यह संस्कृति जापान, चीन, कोरिया और पूर्वी एशिया के कई देशों को आकर्षित करती है। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन हमारी सॉफ्ट पावर को बढ़ाएगा। पिछले दो दशकों में भारत क्रिकेट के क्षेत्र में बड़ी ताकत बनकर उभरा है। क्रिकेट का रिश्ता विदेश नीति से नहीं है, पर सॉफ्ट पावर से है। यह भारतीय आर्थिक शक्ति का विस्तार भी है। देश के कॉरपोरेट जगत ने क्रिकेट को जो संरक्षण दिया है, उसका परिणाम क्रिकेट के वैश्विक बाजार में दिखाई पड़ रहा है। आईपीएल इसका उदाहरण है। अब समय आ रहा है कि स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में भारत वैश्विक नेतृत्व करेगा। हमारे अस्पतालों में दुनियाभर के मरीज आकर इलाज करा रहे हैं। भारत में 26 आईआईटी और 31 एनआईटी खड़े हैं, और नए बन रहे हैं। नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद विश्वस्तरीय शिक्षा संस्थानों की संख्या और बढ़ जाएगी। आने वाले समय में भारत वैश्विक शिक्षा का केंद्र भी बनेगा।

कैसा है भविष्य?

शक्ति का विस्तार एक दो दिन में नहीं, क्रमशः होता है। संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन बने। 1975 में फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका ने ग्रुप-6 बनाया, जो एक साल बाद कनाडा को जोड़कर जी-7 और बाद में रूस को शामिल करके जी-8 बना। फिर रूस को बाहर कर दिया गया, पर वैश्विक-व्यवस्था का संचालन इन देशों तक सीमित नहीं रहेगा। 1999 में जी-20 की स्थापना हुई, जिसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूके, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल थे।

सितम्बर 2006 में संरा महासभा के हाशिए पर ब्राजील, रूस, भारत और चीन के विदेशमंत्रियों की बैठक हुई। दुनिया की सबसे तेज अर्थ-व्यवस्थाओं ने अनौपचारिक विचार-विमर्श किया। जून 2009 में रूस के येकतेरिनबर्ग में औपचारिक शिखर सम्मेलन के साथ ब्रिक बना। फिर 2010 में इस समूह में दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हुआ और ब्रिक्स बना गया। भारत की उपस्थिति अब दुनिया के महत्वपूर्ण संगठनों में है। एक बड़ा मोर्चा है संरा सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता। हालांकि इसमें चीन ने अड़ंगा लगा रखा है, पर अंततः भारत को उसका वांछित सम्मान प्राप्त होगा।

अगस्त में भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रांत नौसेना में शामिल होगा। विमानवाहक पोत शक्ति विस्तार का प्रतीक होता है। यह सुपर-पावर क्षण है। ऐसे मौके आते रहेंगे। इस साल भारत को अंतरिक्ष में कुछ सफलताएं मिलेंगी। गगनयान का मानवरहित प्रक्षेपण होगा। इसके बाद 2023 की शुरुआत में समानव उड़ान होगी, जिसमें तीन अंतरिक्ष यात्री जाएंगे।

शुक्र अभियान भी इसी साल जाने की सम्भावना है। उसके बाद सौर अभियान, आदित्य। महामारी के कारण चंद्रयान-3 में देरी हुई और वह भी इस साल की तीसरी तिमाही में लांच हो सकता है। एक के बाद एक परीक्षण आप देखेंगे। डीआरडीओ की हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण भी इस साल हो सकता है। तेजस मार्क-2 का पहला प्रोटोटाइप भी इस साल तैयार हो सकता है।

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