मंदिरों में वीआईपी दर्शन का दंश

मुझे आज भी याद है कि जब मेरे बाबा जी जीवित थे तो वो हमें चार धाम यात्रा की घटनाएँ सुनाते थे । लेकिन हमने कभी उनके मुँह से अयोध्या या मथुरा नहीं सुना वो हमेशा कहते थे अयोध्या जी… मथुरा जी । पुराने जमाने के लोगों के अंदर वाक़ई में तीर्थ स्थलों के लिए बहुत सम्मान था लेकिन आज धनार्जन ही बड़ा ध्येय रह गया है और यही वजह है कि हमारे तीर्थस्थलों की दुर्दशा हो रही है ।
आज सुबह मैंने ये खबर देखी कि जन्माष्टमी के मौके पर मंगला आरती के दौरान वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में भगदड़ मच गई है और उसमें 2 श्रद्धालुओं की तो मौके पर ही मृत्यु हो गई है । मैंने तुरंत अपनी पत्नी को ये घटना बताई क्योंकि 2 महीने पहले मैं भी बाँके बिहारी मंदिर गया था और मैंने देखा था कि वहां पर घोर अव्यवस्था है भयंकर भीड़ है । तभी मैंने अपनी पत्नी से ये बात कही थी कि यहां पर कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है ।
मथुरा मैं दूसरी बार गया था और सुबह कृष्ण जन्मस्थान के दर्शन करने के बाद मैं सीधे द्वारकाधीश मंदिर के दर्शनों के लिये लपका लेकिन मंदिर बंद था क्योंकि मंदिर 11 बजे तक ही खुलता है लोगों ने बताया कि अब मंदिर शाम 5 बजे खुलेगा । इसके बाद हम बाँकेबिहारी मंदिर के लिए रवाना हो गए । बाँके बिहारी मंदिर की भी यही स्थिति थी वो भी सुबह 11 बजे के करीब बंद हो जाता है फिर शाम 5 बजे के करीब खुलता है ।
मेरी पत्नी ने मेरे बेटे को लेकर प्रार्थना की थी । वहां मंदिर के आँगन में बहुत जबरदस्त भीड़ थी । अगर एक सुई भी ऊपर से गिराई जाती तो वो फ़र्श पर नहीं किसी श्रद्धालु पर गिरती । लेकिन इतनी भीड़ को चीरती हुई पता नहीं कैसे मेरी पत्नी एकदम बाँके बिहारी जी की प्रतिमा के ठीक सामने पहुँच गई और वहां किसी पुजारी से वो बांके बिहारी जी के और पास जाने की बात कहने लगी । मैं उस प्रचंड भीड़ के तूफ़ान में अपने बच्चे को गोद में लिए हुए हिचकोले खा रहा था । किसी तरह मैं भी अपनी पत्नी के पास तक पहुंचा तो देखा कि मेरी पत्नी ने 100 रुपए का नोट उन पुजारी जी को दिया था और पुजारी जी ने कहा कि अब मैं उनको अच्छे दर्शन करवा दूँगा । जब मैंने ये दृश्य अपनी आँखों देखा तो मुझे बहुत क्रोध आया क्योंकि मैं भारत के मंदिरों के VIP दर्शनों के सख्त खिलाफ था लेकिन वहां मेरे पास विवाद करने का कोई विकल्प नहीं था आखिर अपनी पत्नी जी के सामने आत्मसमर्पण करते हुए मुझे भी वही करना पड़ा । अब पुजारी जी ने मुझसे भी 100 रुपए और लिए और फिर अंदर धक्का दे दिया जहां जानलेवा भगदड़ की स्थिति थी । खैर किसी तरह हम वहां से बाहर निकले ।
इसके बाद मैंने देखा कि वहां पर VIP दर्शनों के लिए रेट लगे हए हैं जैसे छप्पन भोग दर्शन 5000 रुपए, श्रृंगार दर्शन 10 हजार रुप, 25 हजार तक दर्शन का रेट लगा था मुझे बहुत क्रोध आया । खून का घूँट पीकर रह गया । आखिर कैसे इन पुजारियों ने मंदिर को व्यवसाय का अड्डा बना दिया है ।
फिर मुझे ये समझ में आया कि ये लोग शायद जानबूझकर मंदिर बंद रखते हैं और शाम को ही खोलते हैं ताकी भारी भीड़ हो जाए तो ही लोग VIP दर्शन के लिए धन देंगे ।इसके बाद हम बरसाना गए तो वहां राधा रानी के मंदिर में तो और भी बुरा हाल देखा । प्रसाद लेने के लिए जूतमपैजार लट्टमलट्ठ हुए जा रहे थे लोग । जिनको ईश्वर ने अच्छी लंबाई दी है अच्छी कद काठी दी है वो भी असहाय नजर आ रहे थे । ये सब दृश्य देखकर मन बहुत दुखी हुआ । फिर मन में एक और विचार आया मैंने यूट्यूब पर एक मौलवी का भाषण देखा था वो नमाज़ियों से कह रहा था कि पैग़म्बर ने हमें क्या दिया है ? पैग़म्बर ने हमको अनुशासन सिखाया है कि जब नमाज पढ़ने के लिए मुसलमान इकट्ठा होगा तो एक सीध में खड़ा होगा । एक क़तार लगेगी और हर कोई उस क़तार में अपने पैरों की लाइन को देखकर खुद ही अपने आपको सही कर लेगा । फिर अगर मुल्क का सुल्तान और वजीर भी देर से नमाज पढ़ने आएगा तो वो भी भीड़ के पीछे खड़ा होगा ना कि भीड़ के आगे घुस जाएगा । लेकिन हमारे हिंदू मंदिर अनुशानहीनता और अव्यवस्था का अड्डा बन चुके हैं । और हम सीखने को भी तैयार नहीं हैं ।
लेकिन बरसाना के बाद जब हम नंद गाँव गए तो हमारा मन प्रसन्न हो उठा क्योंकि नंद मंदिर के पुजारी जी अत्यंत तेजवान थे उन्होंने पूरी भीड़ को व्यवस्थित किया । वहां कोई VIP दर्शन नहीं था उन्होंने 50 लोगों का जत्था बनवाया और सबको मंदिर के गर्भगृह में बुलाकर बैठाया फिर कहा कि सब लोग अच्छे से ठाकुर जी का दर्शन करें । किसी से एक भी पैसा नहीं लिया गया । फिर दर्शन के बाद उन्होंने पूरे मंदिर का ऐतिहासिक महत्व समझाया । जब लोग चले गए तो मैंने पुजारी जी के चरण स्पर्श करके उनसे कहा कि पंडित जी मथुरा जी की स्थित सही कीजिये । जैसी व्यवस्था आपके यहां है वैसी हर जगह होनी चाहिए तब उन्होंने कहा कि भाई मैं सिर्फ अपने ही मंदिर का ज़िम्मेदार हूँ ।
ख़ैर खट्टे मीठे अनुभवों के बाद मैं घर वापस आ गया लेकिन मन में एक बात बैठ गई कि  अनुशासनहीनता हिंदू समाज का एक बहुत प्रमुख अवगुण है जिसको खत्म नहीं किया तो हिंदू भी खत्म हो जाएगा ।
– दिलीप पाण्डेय

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