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सीमावर्ती राज्यों में मुस्लिम घुसपैठ

सीमावर्ती राज्यों में मुस्लिम घुसपैठ

by रामेन्द्र सिन्हा
in देश-विदेश, विशेष, सामाजिक, सितंबर- २०२२
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देश के पाकिस्तान, नेपाल और चीन से सटे जिलों में एक खास मिशन के तहत विदेशी मुसलमानों को बसाकर वहां की जनसांख्यिकी को बिगाड़ा जा रहा है। शासन को इस पर सक्रियता दिखाने की आवश्यकता है ताकि देश के बिगड़ते हालातों को सुधारने की दिशा में सार्थक पहल की जा सके।

पाकिस्तान और चीन भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठिये मुसलमानों को गांवों में बसाकर अशांति पैदा करने की साजिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, असम, राजस्थान और उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में योजनाबद्ध जनसांख्यकीय परिवर्तन और मस्जिदों, मदरसों की संख्या में वृद्धि के आंकड़े चौंकाने वाले तथा चिंताजनक हैं। हरियाणा के मेवात जैसे इलाके तो मिनी पाकिस्तान कहे जा रहे हैं, और कारण बताया जाता है रोहिंग्या मुसलमान तथा हिंदुओं का जबरिया धर्म परिवर्तन। इन क्षेत्रों में मतदान पैटर्न तक बदल गया है।

विदेशियों की घुसपैठ में वृद्धि का राष्ट्रीय सुरक्षा से घनिष्ठ सम्बंध है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में। मुस्लिम जनसंख्या में अचानक हुई वृद्धि के पीछे अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात सुरक्षा एजेंसियों ने विदेशी हाथ की ओर इशारा करते हुए केंद्र को सतर्क कर दिया है। उप्र और असम पुलिस, दोनों ने कहा है कि ऐसा इन सीमावर्ती जिलों में घुसपैठ में वृद्धि के कारण हो सकता है। ऐसे समय में जब पूरे भारत में जनसंख्या में औसत वृद्धि 10 से 15 प्रतिशत के बीच रही है, इन सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में 32 प्रतिशत की वृद्धि चिंताजनक है। पिछले वर्ष वार्षिक पुलिस महानिदेशक सम्मेलन में भी ऐसे ही आंकड़े प्रस्तुत किये गए थे। इस सम्मेलन की अध्यक्षता प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी।

उप्र पुलिस के अनुसार, सात सीमावर्ती जिलों, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, महाराजगंज, बलरामपुर और बहराइच में पिछले दस वर्षों के दौरान मुस्लिम जनसंख्या में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले चार वर्षों में इन जिलों में मस्जिदों और मदरसों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मस्जिदों और मदरसों की संख्या पहले 1,349 थी, लेकिन अब यह 1,688 है। ग्राउंड रिपोर्ट में इन जिलों के एक हजार से अधिक गांवों के आंकड़े जुटाए गए हैं। इन सात जिलों के 116 गांवों में मुस्लिम जनसंख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी, जबकि सीमा के करीब 303 गांव ऐसे हैं जहां पिछले 10 वर्षों में मुस्लिम जनसंख्या 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है।

पुलिस अधिकारियों को संदेह है कि बाहर से मुसलमानों को इन सात सीमावर्ती जिलों में बसने के लिए लाया गया है। उप्र पुलिस पहचान दस्तावेजों की सत्यता की जांच करने में जुटी है। इन सीमावर्ती जिलों का दौरा करने वाले हिंदू साधुओं और महंतों ने पुष्टि की है कि नेपाल की सीमा से लगे जिलों में बसे मुसलमानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। लगभग हर सीमावर्ती गांव में मस्जिद और मदरसे हैं। उन्होंने केंद्र से अपील की है कि यह जांच की जाए कि ये मुसलमान रोहिंग्या हैं या बांग्लादेशी घुसपैठिए।

रिपोर्ट के अनुसार, असम-बांग्लादेश सीमा के 10 किमी के दायरे में आने वाले जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि जनसंख्या में राष्ट्रीय औसत वृद्धि 12.5 प्रतिशत और राज्य का 13.5 प्रतिशत है। अर्थात, बांग्लादेश की सीमा से लगे असम के जिलों में मुस्लिम जनसंख्या राष्ट्रीय औसत से ढाई गुना से अधिक बढ़ गई है। चार जिले मुख्य रूप से प्रभावित हैं। वे हैं, धुबरी, करीमगंज, कछार और दक्षिण सलमारा। 2011 में इन जिलों में मुस्लिम जनसंख्या 3,95,659 थी और 2021 में यह बढ़कर 5,13,126 हो गई। असम पुलिस के अधिकारियों का मानना है कि बांग्लादेश से असम में मुसलमानों की घुसपैठ जारी है।

असम पुलिस ने एक चौंकाने वाली घटना का जिक्र किया है। एक गांव में केवल पांच मुस्लिम परिवार थे, लेकिन उस गांव में चार मस्जिदें थीं। जब ग्रामीणों से इस बारे में पूछा गया तो उनके पास कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं था कि इन मस्जिदों के निर्माण के लिए पैसा कहां से आया। पिछले एक महीने में 18 बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ा गया है। संगठित गिरोहों द्वारा इन घुसपैठियों के लिए झूठे दस्तावेज हासिल करने की खबरें हैं।

राजस्थान एक और राज्य है जहां जनसांख्यिकी में ऐसा ही परिवर्तन देखा गया है। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने गृह मंत्रालय को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा है कि जहां अन्य धर्मों के लोगों की जनसंख्या में 8 से 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई, वहीं सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या सीमावर्ती गांवों में 25 प्रतिशत तक बढ़ी। इसी तरह मदरसों की संख्या भी बढ़ी है। बीएसएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि पोखरण, मोहनगढ़ और जैसलमेर जैसे सीमावर्ती इलाकों में इस्लामिक मौलवी, जो स्पष्ट रूप से बाहरी प्रतीत होते हैं, मदरसों में मुस्लिम बच्चों को पढ़ाते पाए गए हैं।

उत्तराखंड में नेपाल से सटे जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में दस वर्ष पहले की संख्या की तुलना में वृद्धि लगभग ढाई गुना रही है। हाल ही में कुछ क्षेत्रों में रोहिंग्या मुसलमानों के बसने और उत्तराखंड के जंगलों में ‘मजार’ स्थापित करने की खबरें आई थीं। राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि इन मजारों को वन भूमि से हटाया जाना चाहिए और रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि निष्कर्ष मतदाता सूचियों, 2011 की जनगणना, स्थानीय पुलिस के पास उपलब्ध रिकॉर्ड और ग्राम पंचायतों द्वारा वर्तमान जनसंख्या डेटा से लिए गए आंकड़ों के आधार पर निकाले गए रिपोर्ट में जनसंख्या वृद्धि के कारणों का पता लगाने के लिए व्यापक सामाजिक विश्लेषण किए जाने की जरूरत पर बल दिया गया है, क्योंकि, सामाजिक-सांस्कृतिक समानता के कारण सुरक्षा कर्मियों के लिए वैध और अवैध प्रवासियों के बीच अंतर करना मुश्किल था।

घुसपैठियों का मकसद एक ही होता है, देश में विस्तार कर या तो अपना वर्चस्व स्थापित करना या फिर अपने मिशन में असफल होने पर उस देश को ही अस्थिर करना। अतीत में, असम और त्रिपुरा जैसे कुछ राज्य नियोजित जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के शिकार रहे हैं, जिसने इन राज्यों में उग्रवाद को जन्म दिया। जातीय संघर्ष की समस्या ने असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में गम्भीर रूप धारण कर लिया। आरोप है कि घुसपैठिए बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली को शामिल करते हुए एक कॉरिडोर बना रहे हैं। शरणार्थियों के नाम पर बड़ी संख्या में लोगों को बसाया जा रहा है और आशंका जताई जा रही है कि जनसांख्यिकीय पैटर्न को बिगाड़ने के लिए इस खेल के पीछे पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस और चीन का हाथ हो सकता है। उत्तराखंड और अन्य क्षेत्रों में कई धार्मिक संरचनाएं और शैक्षणिक संस्थान आ रहे हैं। जून 2000 में भी भारत-नेपाल सीमा पर तेजी से बन रहे धर्म विशेष के स्थलों से सावधान रहने की चेतावनी जारी की गई थी।

बीएसएफ के महानिदेशक पंकज कुमार सिंह के अनुसार, 2011 की जनगणना ने जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को दर्शाया है। जनसांख्यिकीय संतुलन बंगाल और असम में बदल गया है जिससे परस्पर संघर्ष की स्थिति बन गई है। पड़ोसी सीमावर्ती जिलों में मतदान पैटर्न बदल गया है। सुरक्षा एजेंसियों और राज्यों की पुलिस ने इन बदलावों को राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना है। ऐसे में कुछ राज्यों ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का दायरा 50 किमी से बढ़ाकर 100 किमी करने की सिफारिश की है। पुलिस बलों ने सुझाव दिया कि परिवर्तनों का मुकाबला करने के लिए, मौजूदा इंटेलिजेंस ग्रिड को बढ़ाने की आवश्यकता है और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिक पुलिस स्टेशन स्थापित किए जाने चाहिए।

आवश्यकता इस बात की भी है कि केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ सभी राजनीतिक दल भारतीय जनसंख्या की अक्षुण्णता को बनाए रखने के सम्भावित तरीकों के बारे में विचार करें। संसद को घुसपैठियों पर एक मजबूत कानून बनाने के बारे में सोचना चाहिए, जिसमें प्रावधान हो कि चिन्हित होते ही ऐसे घुसपैठिए तत्काल निर्वासित किए जाएंगे, और यदि किसी घुसपैठिए ने भारतीय नागरिकता प्राप्त कर ली है, तो उसकी नागरिकता रद्द कर दी जाएगी। साथ ही उन अधिकारियों के लिए सजा का प्रावधान जो मददगार चिन्हित हुए हों, चाहे वे सुरक्षा बलों से सम्बंधित हों या सिविल सेवा से। वर्ना, ऐसे जनसांख्यकीय परिवर्तन और धर्म स्थलों की संख्या में वृद्धि देश के लिए नासूर सिद्ध होंगे।

मेवात को क्यों कहते हैं मिनी पाकिस्तान

हाल ही में नूंह, मेवात में अरावली पहाड़ियों पर हो रहे अवैध खनन को रोकने वाले डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई की मुस्लिम दबंगों द्वारा डम्पर चढ़ाकर हत्या करने की घटना के बाद मेवात एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल, नूंह, मेवात में करीब 431 गांव हैं, जिनमें से 103 गांव पूरी तरह हिंदू विहीन हैं। 82 गांवों में सिर्फ गिनती के हिंदू परिवार हैं और मेवात में उनकी आबादी तेजी से घटी है। पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या का स्वरूप बदल गया है। वहां बड़ी संख्या में हिंदुओं को उनके घरों से भगा दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मेवात में करीब दो हजार रोहिंग्या मुसलमान बस चुके हैं।

2017 में, मॉडल स्कूल द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप सामने आने के बाद मेवात सुर्खियों में आया था। आरोप था कि हिंदू छात्रों को इस्लाम अपनाने और नमाज अदा करने के लिए उकसाया गया था। इस्लाम अपनाने से इंकार करने पर शिक्षक द्वारा पिटाई की गई। हिंदू लड़कियों का अपहरण, दुष्कर्म, लव जिहाद और जबरिया धर्म परिवर्तन की घटनाएं तो आए दिन की बात थीं। लेकिन, हिंदू जनजागृति समिति की पहल पर 2013 में गठित पूर्व न्यायमूर्ति पवन कुमार की अध्यक्षता वाली 4 सदस्यीय समिति की जांच रिपोर्ट जब सामने आई तो देश चौंक गया था। एक दशक से अधिक पुरानी रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह पाकिस्तान में हिंदुओं को सताया जाता है और उनके मूल अधिकार छीन लिए जाते हैं, उसी तरह मेवात में दलित और हिंदू मुस्लिम बहुसंख्यक के अधीन होते हैं और उन पर अत्याचार होते हैं। मेवात धीरे-धीरे हिंदुओं, विशेषकर दलितों के लिए कब्रिस्तान में बदल रहा है। इसीलिए, इसे मिनी पाकिस्तान भी कहा जाता है।

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