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भारत बन रहा है तीर्थाटन का केंद्र

भारत बन रहा है तीर्थाटन का केंद्र

by डॉ. सुशील कुमार कोटनाला
in अध्यात्म, विशेष, सामाजिक, सितंबर- २०२२
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पिछले दशक तक विश्वभर के सैलानियों के लिए भारत में पर्यटन स्थल के तौर पर केवल मुगलकालीन ढांचों को बढ़ावा दिया जा रहा था। पर अब लोगों की मानसिकता बदल रही है। लोगों की अभिरुचि भारत की सनातन संस्कृति और अध्यात्म की ओर बढ़ रही है। इस प्रखर और सार्थक बदलाव के पीछे सबसे बड़ा हाथ श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन और उसकी सफलता का रहा।

‘द वंडर दैट वॉज इंडिया: अ सर्वे ऑफ कल्चर ऑफ इंडियन सब कांटिनेट बिफोर द कमिंग ऑफ द मुस्लिम’ के लेखक आर्थर लेवेलिन बाशम ने मुस्लिमों के आगमन से पूर्व के भारत को अद्भुत, अद्वितीय और अनुपम माना है। बाशम की इस प्रसिद्ध कृति का अनुवाद हिंदी में ‘अद्भुत भारत’ शीर्षक से किया गया है।

दुर्भाग्य से भारत का पर्यटन राजधानी नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि मुगलकालीन वास्तुकला से सज्जित (निर्मित शब्द इसलिए उचित नहीं है कि मुगलकाल में निर्माण/सृजन से अधिक विध्वंस हुआ है और अधिकांश सृजन सुदृढ़ मंदिरों के ध्वंसावशेषों पर निर्भर रहा है।) अट्टालिकाओं (इमारतों) के शहरों तक सीमित हो गया था।

ताजमहल, आगरा का किला, कुतुबमीनार, जामा मस्जिद, पुराना किला, हजरत निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह, बुलंद दरवाजा, शेख सलीम चिश्ती की दरगाह आदि के चारों तरफ ही भारत का पर्यटन घूमता रहा है।

भारत की संस्कृति, भारत का धर्म, भारत का दर्शन, भारत का अध्यात्म कभी भी आतताइयों, आक्रमणकारियों के विध्वंस से निर्मित इमारतों, प्रतीकों, स्मारकों से नहीं समझा जा सकता। विगत कुछ वर्षों से विदेशी तथा भारतीय पर्यटक तथाकथित पर्यटन से अधिक रुचि भारत के मूल को जानने तथा समझने के लिए तीर्थाटन कर रहे हैं।

दासता का वातावरण भारत के आकाश में यथावत था। मुगल तथा अंग्रेजों सहित अन्य आक्रमणकारियों ने भारत की प्रकृति और संस्कृति को भी अपना दास बनाना चाहा था, पर कुछ बात है भारत की चेतना में कि वह स्वत: ही दासता से मुक्त होने का स्वभाव रखती है। भारत की इस चेतना के खोजी पर्यटक नहीं तीर्थाटक हैं। ये तीर्थाटक अब अर्द्ध कुम्भ-महाकुम्भ से लेकर गंगा- यमुना-नर्मदा-कावेरी आदि पवित्र नदियों तथा हिमालय की पवित्र श्रृंखलाओं के दर्शन करने बड़ी संख्या में आ रहे हैं। भारत के 52 शक्तिपीठ, चार धाम, 12 ज्योतिर्लिंग, सातों पुरियों तथा अनेक सिद्ध गुफाओं, आश्रमों तथा मंदिरों के प्रति तीर्थाटकों को आकर्षित करने में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन का उल्लेखनीय योगदान है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उन्नयन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आंदोलन के रूप में रामजन्मभूमि आंदोलन भारतीय जन जागृति का अनूठा, अनुपम तथा अद्वितीय प्रभावी आंदोलन रहा है।

इस आंदोलन ने सुप्त भारतीय चेतना को जाग्रत करते हुए सम्पूर्ण विश्व का ध्यान भी भारत की ओर आकर्षित किया है। भारत की प्रतिष्ठा आध्यात्मिक शक्ति के रूप में है और यही कारण है कि रामजन्मभूमि आंदोलन के पश्चात योग-ध्यान-प्राणायाम, भक्ति आदि का ऐसा वातावरण सृजित हुआ कि आज करोड़ों पर्यटक भारत की आत्मा को जानने के लिए तीर्थाटक बनते हुए भारत के आध्यात्मिक स्थलों की यात्रा कर रहे हैं। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, जगन्नाथ, द्वारका, रामेश्वरम, आयोध्या, मथुरा, काशी आदि तीर्थस्थलों सहित दिव्य प्राकृतिक स्थानों (फूलों की घाटी, अमरनाथ गुफा, नंदादेवी, राजजात यात्रा, छोटा कैलाश, कैलाश, मानसरोवर, गोमुख, तपोवन आदि) की यात्राओं के प्रति रुझान बड़ा है। भारत का योग, आयुर्वेद, परम्परागत भोजन तथा भारतीय जीवन पद्धति और आध्यात्मिक साधना सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय होती जा रही है।

इतिहास की हृदयविदारक दुर्घटनाओं के स्मृति चिह्न भारत सहित विश्व की जनता के लिए दु:खद तथा निराशजनक हैं, इसलिए मानवीय गुणों की अभिवृद्धि करने वाले तपोवन, पवित्र नदी तट, हिमालय की उपत्यकाएं, अधित्यकाएं, श्रृंखलाएं तथा गुफाएं एवं सिद्ध मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनते जा रहे हैं।

भौतिकवाद से संतप्त मानव अब भौतिक चकाचौंध तथा जय-पराजय के ऐतिहासिक गह्वर से बाहर निकालकर विस्तृत/मुक्त आकाश के नीचे प्राकृतिक तथा आध्यात्मिक स्थानों को निरंतर महत्व देते जा रहे हैं।

कदाचित उस मुगलकालीन उथल-पुथल वाले भारत के पार उस अद्भुत भारत की खोज में भारतीय तथा विदेशी पर्यटक सम्मिलित होते जा रहे हैं।

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डॉ. सुशील कुमार कोटनाला

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