राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख प्रणेताओं में से एक अशोक सिंघल ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति और राम मंदिर को समर्पित कर दिया था। उनके ही अथक प्रयासों और आंदोलनों के परिणामस्वरूप आज राममंदिर का निर्माण होता हुआ दिखाई दे रहा है। उनकी जयंती के उपलक्ष्य में उनके व्यक्तित्व तथा उनके द्वारा किए गए कार्यों पर एक दृष्टिपात:
5 अगस्त, 2020 को मन भाव विभोर था क्योंकि इस ऐतिहासिक दिन की प्रतीक्षा सम्पूर्ण हिंदू समाज पिछले पांच सौ वर्षों से कर रहा था। भारत के यशस्वी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राममंदिर निर्माण की आधारशिला रखी और वर्षों से खोए राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा हुई। कितनी ही दिव्य आत्माएं उस स्वप्न को पूरे हुए बिना चली गई। असंख्य साधु संतों, ब्रह्मचारियों, बलिदानियों ने राम जन्मभूमि के आंदोलन को आधार देने का कार्य किया परंतु उनमें से एक राम परम भक्त योद्धा अशोक सिंघल का नाम आते ही राम जन्मभूमि की अनुगूंज रोम-रोम को रोमांचित कर देती है। 80 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन को धार देने का श्रेय विश्व हिंदू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल को जाता है। भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर अयोध्या में रामजी के जन्म स्थान पर ही बने, यह उनका केवल स्वप्न नहीं था, यह उनका अदम्य विश्वास था, उनके जीवन की अटूट प्रतिबद्धता थी।
अशोक सिंघल के जीवन में बड़ा बदलाव उस समय आया जब उन्हें आपातकाल के बाद दिल्ली प्रांत प्रचारक के रूप में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। 1964 से विश्व हिंदू परिषद का काम चल ही रहा था। अशोक सिंघल के दिल्ली में प्रांत प्रचारक रहते हुए उन्हें 1981 में विश्व हिंदू परिषद् की जिम्मेदारी दी गई। उनके विश्व हिंदू परिषद में आते ही धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत परावर्तन तथा गौ-रक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दिया गया। विश्व हिंदू परिषद् का संगठन, सम्पर्क और राम जन्मभूमि की मुक्ति का आंदोलन विभिन्न चरणों में आना प्रारम्भ हो गए। राम जन्मभूमि का इतिहास, संघर्ष, समाज जागरण के विविध आयामों ने भारत की सरकारों को हिलाना प्रारम्भ कर दिया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की लहर ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी तो करा दी परंतु राम जन्मभूमि के आंदोलन ने भारत की विभाजनकारी राजनीतिक आकांक्षा को भारत की आस्था, स्वाभिमान और राम राज्य की संकल्पना को लोगों के दिलों तक पहुंचाना शुरू कर दिया। भारत में साम्प्रदायिकता तुष्टीकरण, धर्मनिरपेक्षता जैसे आपसी संघर्ष के मायाजाल से समाज बाहर निकलने के बजाय उसमें और गहरे में फंसता जा रहा था। परन्तु रामनीति ने देश के सब पक्षों को हिला कर रख दिया। दासता और परतंत्रता के चिह्न भारतीय समाज की नियति बन गई थी। इस नियति को तोड़कर राम जन्मभूमि आंदोलन के विविध चरणों ने हिंदू चेतना को जाग्रत किया।
1984 में ही विश्व हिंदू परिषद् की ऐतिहासिक बैठक विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आहूत हुई थी। इसी में राम जन्म भूमि मुक्ति संघर्ष समिति का गठन किया गया था। गौरक्षा पीठ के पीठाधीश्वर महंत वैद्यनाथ, वरिष्ठ स्वयंसेवक मोरोपंत पिंगले और अशोक सिंघल सहित हजारों साधू-संतों ने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का पूरा रोड मैप तैयार किया। पूरे देश में रामशिला पूजन का निर्णय 1989 में लिया गया। यही समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मशताब्दि मनाने का भी चल रहा था। हिंदू समाज में जनजागरण का वातावरण बना हुआ था। 18 अगस्त 1949 को बद्रीनाथ धाम से शिला पूजन का श्रीगणेश किया गया। शिला पूजन का स्वागत पूरे देश में हुआ और और इसी से विश्व हिंदू परिषद् की ताकत दिखने लगी।
24 जून 1990 को साधू-संतों ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण हेतु आह्वान किया गया। उत्तर-प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। मुलायम सिंह ने आयोध्या को छावनी में तबदील कर दिया था। मुलायम सिंह ने ऐसा वातावरण निर्माण कर दिया था कि अयोध्या में कारसेवक तो क्या परिंदा भी फटक नहीं सकता था। पूरा देश पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण से कारसेवक अपने-अपने साधनों, रास्तों से अयोध्या की ओर कूच हुए। कार सेवकों पर गोलियां बरसाई गईं। परन्तु कारसेवक किसी की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते गए। विश्व हिंदू परिषद् ने सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रतीकात्मक कार सेवा करते हुए कारसेवकों को वापिस अपने-अपने स्थानों को भेज दिया। यह जोश अद्भुत था। 1992 में गांव-गांव में राम चरण पादुकाओं का पूजन किया गया। एक बार फिर कार सेवा का आह्वान किया गया जिसमें 6 दिसम्बर, 1992 को इतिहास में वह दिन दर्ज हो गया कि बाबर की बनाई हुई मस्जिद का ढांचा ध्वस्त किया गया और अस्थाई मंदिर में रामलला को विराजित किया गया।
अस्थाई मंदिर में रामलला की पूजा अर्चना होने लगी। राम मंदिर न्यास और बाबरी मस्जिद वक्फ बोर्ड के मध्य कोर्ट में दायर केस के तहत इलाहाबाद हाईकार्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक एक लम्बी प्रक्रिया के तहत केस को लड़ा गया। अन्ततः भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राममंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसले को सुनाकर सत्य की जीत पर मोहर लगा दी। यह ऐतिहासिक फैसला हिंदू मुस्लिम सभी पक्षों ने हृदय से स्वीकार किया। साम्प्रदायिक और धर्म निरपेक्ष कहे जाने वाले छद्म बुद्धिजीवियों पर यह एक बड़ा आघात था।
7 नवम्बर, 2010 को विश्व हिंदू परिषद् के मार्गदर्शक अशोक सिंघल ने एक साक्षात्कार में पूछे गए दो प्रश्नों पहला, रामजन्म भूमि के महत्त्व को लेकर और दूसरा रामजन्म भूमि का जो आंदोलन चला उसके बारे में उनका क्या कहना है। इन दोनों प्रश्नों का उत्तर उन्होंने इस प्रकार दिया था- उन्होंने राम की महिमा को गुरु ग्रन्थ साहिब में उद्धृत पंक्ति से राममंदिर के महत्त्व को व्याख्यायित किया – एक राम दशरथ को बेटा, एक राम घट-घट में लेटा, एक राम का सकल पसारा, एक राम सबसे न्यारा।’ राम की छवि भारत के लोकमानस में व्याप्त है। कण-कण में राम व्याप्त हैं सम्पूर्ण ब्रह्मांड उससे अनुगुंजित है। भारत में भगवान का स्थान और अस्तित्व तब से है, जब से हमारी संस्कृति और संस्कार है। भगवान राम ‘मनु’ के परिवार से हैं और उन्होंने जो आदर्श स्थापित किए, भारत उन्हीं के आदर्शों पर चलने वाला राष्ट्र है।
दूसरे रामजन्म भूमि आंदोलन को उन्होंने भगवान की शक्ति का प्रगटीकरण कहा। जितने गुण संसार में हैं, वे सारे के सारे गुण एक व्यक्ति में समाए हुए हैं, और वे हैं भगवान राम। आज भी हमारा देश उन्हीं गुणों को लेकर जी रहा है। यह ठीक है कि आज विदेशी दुर्गुण तेजी से फैल रहे हैं परंतु लाखों साधु-संत समाज में अच्छे गुणों को फैलाने में लगे हुए हैं। विदेशी शक्तियां भारत के आदर्शों को मिटाने में सफल नहीं हो पा रही, और न ही सफल हो सकेंगी। बल्कि राम के गुणों का प्रताप ऐसा है कि ये सब लोग पराजित हो जाएंगे। श्री राम जन्मभूमि आंदोलन को मैं इसी रूप में देखता हूं।
राम जन्मभूमि आंदोलन भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का आधार बन गया है। इन सब के सूत्रधार अशोक सिंघल थे। अशोक सिंघल राममंदिर निर्माण का कार्य तो देख नहीं पाए। वे 17 नवम्बर, 2015 को ब्रह्मलीन हो गए परन्तु राष्ट्र जागरण में उनका योगदान उन्हें शताब्दियों तक चिरस्मरणीय बना गया है।
-डॉ . चेतराम गर्ग