योगी आदित्यनाथ का साहस और ट्विन टॉवर्स विध्वंस

मुख्यमंत्री कितना भी ईमानदार क्यों ना हो, आप इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ को भी रख लें, लेकिन जब सेक्रेटेरिएट से लेकर डिस्टिक हेड क्वार्टर तक सिस्टम को निकट से देखेंगे तो जैसे लगेगा हर वक्त कोई क्राइम थ्रिलर फिल्म चल रहा है। कभी ना सुलझने वाले सिस्टम की गुत्थियों को देखते देखते एक बार को ऐसा लगेगा, कि सांप्रदायिक झंझट वाला बाबरी ढांचे को गिरा कर श्रीराम मंदिर की पुनर्स्थापना करना आसान है, लेकिन किसी ट्विन टावर्स को गिराना आसान नहीं।
क्राइम थ्रिलर फिल्म सोनू सूद और नसरुद्दीन शाह की एक आई थी, 2012 में। वैसे तो कई फिल्में हैं जिसके थीम में रियल एस्टेट वर्ल्ड से उपजे क्राइम को फिल्माया गया है। लेकिन ऐसी कोई पहली फिल्म मैंने ‘मैक्सिमम’ देखी थी। हालांकि फिल्म डिसास्टरस फ्लॉप हो गई। केवल सवा दो करोड़ का बिजनेस कर पाई। रियल स्टेट वर्ल्ड और सिस्टम के मकड़जाल की एक अच्छी झलक इसमें है और मेरे हिसाब से बेस्ट फिल्म है।
इस सिस्टम के मकड़जाल में दो तरह के लोगों को भारी दिक्कत है। पहला उन नेताओं को जो चाह कर भी इमानदारी से इस सिस्टम को चला नहीं सकते और दूसरा उन सिविल सेवकों को जो असल में ह्रदय में सत्यनिष्ठा संजोकर सिस्टम में प्रवेश करते हैं। लेकिन जिन्हें सत्यनिष्ठा से कोई लेना-देना नहीं उनके लिए रियल एस्टेट वर्ल्ड स्वर्ग है। इसमें नौकरशाहों के लिए कोई कुर्सी शहंशाह की गद्दी के समान, तो नेताओं के लिए हवाला का सबसे बेहतरीन स्रोत।
ट्विन टॉवर्स बनाने के लिए कहा जाता है कि अखिलेश यादव को 400 करोड़ रुपये हवाला प्राप्त हुए थे। तनिक सोच कर देखिए राजवंश से लेकर राजगद्दी तक सबका कल्याण हो जाएगा इसमें। अदालत ने ट्विन टॉवर्स को गिराने का फरमान दिया था तो क्या हुआ? तमाम कोशिशें की जाती, सरकार उसमें सचिवालय चला लेती, स्कूल चला लेती, कुछ अधिकारियों को पकड़ कर जेल में डाल देती, जिस आम लोगों को फ्लैट मिलने थे उनको मुआवजा दिला देती, लेकिन टावर न गिराया जाता। बिल्डर्स को करप्ट सिस्टम पर पूरा भरोसा था कि टावर न गिराया जाता। लेकिन योगी महाराज की दिलेरी को मेरा सत्कार पहुंचे। उन्होंने तमाम कोशिशें नहीं की। लेकिन ट्विन टॉवर्स को गिरा दिया। ट्विन टॉवर्स को नहीं गिराया बल्कि क्राइम और करप्शन के सबसे बड़े वर्ल्ड रियल एस्टेट के दशकों से बनी हुई उस मंसूबे को गिरा दिया। जिसमें सरकार की ओर से ऐसे डिसीजंस, चाहे दल कोई भी हो एक असंभव सी बात होती है। असंभव सी। बिल्कुल नामुमकिन।
-विशाल झा

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