वामपंथी एकोसिस्टम द्वारा रचे गए झूठे मिथ-प्रपंच

बिलकिस बानो मामले पर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन हुए। दुर्भाग्य कि कोई खबर नहीं बन रही। लेकिन इसमें चेहरे और स्लोगन अनजान नहीं थे। स्लोगन प्लेट पर ब्राह्मणों को गाली से लेकर देश विरोधी तमाम आंदोलन में शामिल रहने वाली शबाना आजमी तथा अपने वामपंथी आंदोलन से कानपुर के उद्योग को धराशाई कर 89 में सांसद बनने वाली सुभाषिनी अली तक चेहरे शामिल थे।
बिलकिस बानो को न्याय दिलाने के नाम पर कहीं ज्यादा ऐसा लग रहा कि बिलकिस बानो का एक एजेंडे के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है। जाकिया जाफरी के मामले में जिस प्रकार अदालत ने पीड़ित पक्ष के तरफ से लड़कर पीड़ा का इस्तेमाल करने वालों को कड़ी फटकार लगाई, उसके बाद जाकर तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी हुई।
बिलकिस बानो अकेली महिला नहीं है जिसके साथ 2002 में अन्याय किया गया। अरुंधति राय आउटलुक मैगजीन में अपनी एक बाइट देती है कि जाफरी के घर में हिंदू राष्ट्रवादी घुस जाते हैं और उनकी बेटियों को स्ट्रीप कर जिंदा जला देते हैं। जाफरी का गर्दन काट देते हैं। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं। लेकिन राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने जब खुलासा किया कि गुजरात दंगा के वक्त जाफरी की बेटी उनके घर में थी ही नहीं, ठीक यही बयान जाफरी के बेटे ने भी दिया, तब जाकर मामले का फर्जीवाड़ा सामने आया।
कौसर बानो को कौन नहीं जानता? अरुंधति राय ने अपनी पुस्तक में लिखा जब हिंदुओं की एक भीड़ ने कौशर बानो पर हमला किया था, वह 8 महीने की गर्भवती थी। तलवार से उसका पेट चीर दिया गया भ्रूण को निकालकर हवा में उछाला गया। फिर भ्रूण को काटकर धधकती आग में फेंक दिया गया। जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट का खुलासा 2010 में हुआ तब डॉक्टर जेएस कनोडिया की रिपोर्ट से पता चला कि पोस्टमार्टम के दौरान भ्रूण गर्भ में ही मौजूद था। और कौशर बानो के शरीर पर भीतर अथवा बाहर चोट के कोई निशान नहीं थे। तलवार के आघात जैसी कोई बात ही नहीं। उसकी मृत्यु दम घुटने से हुई थी।
अरुंधति राय एक और घटना लिखती हैं कि उनके दोस्त की दोस्त जिसका नाम सईदा था। जो बड़ौदा में हिंदू मॉब की शिकार हो गई थी। पाया गया कि उसका पेट खुला हुआ था और उसके माथे पर ओम उकेरा गया था। पुलिस की तफ्तीश में ऐसी कोई सईदा पाई ही नहीं गई। सांसद बलबीर पुंज ने जब अरुंधति राय को सईदा के न्याय के लिए सहयोग की बात की, तो अरुंधति राय के वकील ने कहा कि पुलिस को अरुंधति पर समन करने का कोई अधिकार नहीं है। मतलब कि वामपंथियों के तमाम प्रपंच से ऐसे मिथ रचे गए, जो दसियों लोकप्रियता काटते रहे।
गुलबर्गा सोसाइटी मामले पर भी न जाने कितने प्रपंच रचे गए। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ कई अधिकारियों को भी फांसा गया। एसआईटी ने जब 2012 में आरोपित सभी 63 लोगों को क्लीन चिट दे दी और क्लोजर रिपोर्ट लगाई तो क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट गया। सुप्रीम कोर्ट ने गुलबर्गा सोसाइटी सहित नौ मामलों की जांच के लिए सीबीआई के पूर्व निदेशक की अध्यक्षता में एसआईटी गठन किया। 2010 में मोदी से एसआईटी ने लगभग 9 घंटे की पूछताछ की। कोई सुबूत हाथ ना लगने पर अंततः एसआईटी ने मोदी जी को क्लीन चिट दे दी।
बिलकिस बानो के मामले में भी जब पुलिस को कोई सुबूत हाथ नहीं लगा तो पुलिस ने मामले पर क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। लेकिन बिलकिस बानो मानवाधिकार आयोग जाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डलवाई और ट्रायल के लिए मुंबई स्थानांतरण की अपील डाली। तब महाराष्ट्र में कांग्रेस एनसीपी की सरकार थी। तब जाकर सीबीआई के चार्जशीट ने 18 लोगों को दोषी बनाया।
वामपंथियों के एकोसिस्टम ने इतने इतने प्रपंच रचे हैं कि यदि बिलकिस बानो वास्तव में पीड़ित भी होगी तो 11 दोषियों की रिहाई का पाप भी इन्हीं वामपंथियों के माथे पर चढ़ेगा। विषैली विचारधारा वाली ये इकोसिस्टम तभी जगती है जब किसी बानो को मिले न्याय में थोड़ी कमी बच जाती है। ये लोग अजमेर की सूफी दरगाह में सैकड़ों अबोध हिंदू छात्राओं के साथ जघन्य अपराध और दर्दनाक मौत की घटना पर जग गए होते तो इन्हें आज संघर्ष नहीं करना पड़ता। गिरिजा टिक्कू को आरा मशीन में चीर कर दर्दनाक मौत देने वालों के खिलाफ मामला अदालत में भी नहीं पहुंच पाया। क्योंकि इनके अपराधी कहीं फारुख चिश्ती हैं तो कहीं यासीन तो कहीं गिलानी। अपराधियों का धर्म जात देखने की परंपरा यदि बनाई ना गई होती तो आज बिलकिस बानो को न्याय मांगना नहीं पड़ता।
-विशाल झा

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