हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
संघ पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले कौन?

संघ पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले कौन?

by हिंदी विवेक
in देश-विदेश, राजनीति, विशेष, संघ
0
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस/संघ) एक बार फिर चर्चा में है। गत 31 अगस्त को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी ने कहा, “…मुझे नहीं लगता कि संघ इतनी भी बुरी है…।” यह सर्वविदित है कि प.बंगाल में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने वाली ममता की अब प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांशा है और इस संदर्भ में उनके इस वक्तव्य के कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा सकते है। जैसे ही ममता की टिप्पणी आई, वैसे ही स्वयंभू सेकुलरवादियों के साथ वामपंथियों और स्वघोषित मुस्लिम जनप्रतिनिधियों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और उनका दशकों से जारी दुराग्रह पुन: सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन गया।
वर्ष 1925 में विजयदशमी के दिन स्थापित संघ, अगले तीन वर्षों में अपने जीवन की एक शताब्दी पूर्ण कर लेगा। इस लंबे और महत्वपूर्ण कालखंड में आरएसएस ने अपनी कार्यशैली, अनुशासन, विचारधारा, उसके लाखों-करोड़ स्वयंसेवकों के चरित्र और आपदा के समय निस्वार्थ सेवा से भारतीय समाज में सहज स्वीकार्यता प्राप्त की है। देश का एक छोटा, परंतु मुखर वर्ग न केवल संघ की आलोचना करता है, अपितु यह राष्ट्रवादी संगठन उनकी घृणा का भी शिकार है। आखिर ऐसा करने वाले कौन है?
वास्तव में, जो लोग भारत को मां के रूप में न देखकर उसे अलग-अलग भूखंडों का समूह मानते है, वे संघ को अपना शत्रु मानकर उनके प्रति द्वेष रखते है। इस सूची में वामपंथी सबसे ऊपर है, जिन्होंने भारत को एक देश नहीं माना और ब्रितानियों-जिहादियों के साथ मिलकर पाकिस्तान को जन्म दिया। यही कारण है कि उनकी सहानुभूति आज भी मजहबी आतंकवादियों, अलगाववादियों और देशविरोधी शक्तियों (टुकड़े-टुकड़े गैंग और अर्बन नक्सल सहित) से प्रत्यक्ष है। यह विडंबना है कि जिन्होंने मजहब के नाम एक इस्लामी मुल्क को विश्व के मानचित्र पर उकेरा, उन्हीं मानसबंधुओं का कुनबा स्वतंत्र भारत में दशकों से अन्यों को ‘सेकुलर’ प्रमाणपत्र बांट रहा है।
वर्षों से जिस प्रकार भारत की मूल सनातन संस्कृति की रक्षा, एकता, संप्रभुता, समावेशी विचारों, बहुलतावाद और राष्ट्रवाद के कारण संघ के साथ भाजपा राजनीतिक-वैचारिक-सामाजिक ‘अस्पृश्यता’ का दंश झेल रहा है, वैसा परिदृश्य स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नहीं था। संघ के सह-प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर द्वारा लिखित “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- स्वर्णिम भारत के दिशासूत्र” पुस्तक के अनुसार, आरएसएस की स्थापना करने से पहले डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार न केवल कांग्रेस के सक्रिय पदाधिकारी थे, अपितु ‘असहयोग आंदोलन’ को गति देने के कारण 1921-22 में ब्रितानी हुकूमत द्वारा प्रदत्त एक वर्ष सश्रम कारावास की सजा भी काट चुके थे। नागपुर में कांग्रेस के प्रादेशिक अधिवेशन (1922), जिसमें पं.मोतीलाल नेहरू, सी.राजगोपालाचारी आदि भी उपस्थित थे, वहां डॉ.हेडगेवार को कांग्रेस का संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया।
संघ की निष्ठा और कार्यप्रणाली के गांधीजी भी प्रशंसक थे। 25 दिसंबर 1934 को आरएसएस संस्थापक डॉ.हेडगेवार के जीवनकाल (1889-1940) में गांधीजी, वर्धा (महाराष्ट्र) स्थित संघ के प्रशिक्षण शिविर पहुंचे थे, जहां वे स्वयंसेवकों की स्वच्छता और अस्पृश्यता-मुक्त कार्यपद्धति से प्रभावित हुए। इसके अगले दिन वर्धा स्थित ‘सेवाग्राम’ आश्रम में गांधीजी से डॉ.हेडगेवार ने भेंट की। रक्तरंजित विभाजन के बाद 16 सितंबर 1947 को भी दिल्ली स्थित शाखा का भी गांधीजी ने दौरा किया था। यही नहीं, 6 जनवरी 1948 को देश के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आरएसएस को देशभक्त और मातृभूमि से प्रेम करने वाला संगठन बताया था।
एक-दो अपवादों को छोड़कर भारतीय विमर्श में विरोधियों को शत्रु मानने या उनसे घृणा करने की मानसिकता स्वतंत्रता पश्चात भी गौण थी। यह सब— देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन भारतीय जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के बीच वैचारिक विरोध होने के बाद एक-दूसरे के प्रति सम्मान, वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ की निस्वार्थ राष्ट्रसेवा देखने और पूर्वाग्रह के बादल छंटने के बाद 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में पं.नेहरू द्वारा संघ को आमंत्रित करने, वर्ष 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के निमंत्रण पर संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर के सामरिक बैठक में पहुंचने, वर्ष 1973 में गोलवलकर के निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा शोक प्रकट करते हुए उन्हें राष्ट्र-जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विद्वान-प्रभावशाली व्यक्ति बताने और इंदिरा द्वारा ही वीर सावरकर को ‘भारत का सपूत’ बताकर उनके सम्मान में डाक-टिकट जारी करने आदि से स्पष्ट है।
भारतीय राजनीति में वैचारिक-राजनीतिक विरोधियों से दुर्भावना का बीजारोपण वर्ष 1969-71 में तब हुआ, जब कांग्रेस टूटने के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी अल्पमत सरकार को बचाने हेतु वामपंथियों का सहारा लेना पड़ा और उनके सनातन भारत-हिंदू विरोधी दर्शन को ‘आउटसोर्स्ड’ कर लिया। कालांतर में कांग्रेस उस रूग्ण चिंतन से ऐसी जकड़ी कि उसके नेताओं और वामपंथी विचार-समूह से अभिशप्त अन्य राजनीतिक दलों (क्षत्रप सहित) ने भी संघ-भाजपा और सावरकर आदि के खिलाफ विषवमन शुरू कर दिया, जो अबतक जारी है।
अभी ममता बनर्जी द्वारा संघ की प्रशंसा किए जाने पर आरएसएस के मुखर विरोधी सितंबर 2003 के जिस घटनाक्रम का उल्लेख कर रहे है, उसमें मैं भी स्वयं बतौर राज्यसभा सांसद उपस्थित था। तब दिल्ली में ‘कम्युनिस्ट टेररिज़्म’ नामक पुस्तक के विमोचन में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की तत्कालीन सहयोगी और वामपंथ विरोधी ममता बनर्जी को भी आमंत्रित किया गया था। एक अंग्रेजी समाचारपत्र के अनुसार, तब अन्य लोगों के साथ मेरे द्वारा ममता को दुर्गा, तो ममता द्वारा आरएसएस को देशभक्त कहकर संबोधित किया गया था। उस समय मैं उनकी सरल जीवनशैली और वामपंथियों की खूनी हिंसा के प्रति मुखरता से प्रभावित था। मैं ऐसे कई विरोधी-नेताओं से परिचित हूं, जो संघ के प्रशंसक रहे है। इसमें इंदिरा सरकार में मंत्री रहे दिवंगत वसंत साठे भी शामिल थे।
सच तो यह है कि जिस प्रकार ‘केवल मैं सच्चा, बाकी सब झूठे’ रूपी मजहबी चिंतन ने वैश्विक मानवता को गंभीर क्षति पहुंचाई है, जिससे अब भी दुनिया को चुनौती मिल रही है, ठीक उसी तरह राजनीतिक-वैचारिक विरोधियों से घृणा और उनसे हिंसा- लोकतंत्र, बहुलतावाद और पंथनिरपेक्षता रूपी जीवनमूल्यों को अस्वस्थ कर रहा है। यक्ष प्रश्न है कि जब सामाजिक अस्पृश्यता अक्षम्य पाप है, तब राजनीतिक छुआछूत स्वीकार्य क्यों है?
–  बलबीर पुंज

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

हिंदी विवेक

Next Post
मंदिर में घंटे… हमारे दिमाग के लिए “एन्टीडोट्स”

मंदिर में घंटे... हमारे दिमाग के लिए "एन्टीडोट्स"

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0