दुनिया भर के प्रत्येक मंदिर और धार्मिक स्थलों के बाहर आप सभी ने बड़े-बड़े घंटे या घंटियां लटकी तो अवश्य देखी होंगी…
जिन्हें , मंदिर में प्रवेश करने से पहले हम भक्तगण श्रद्धा के साथ बजाते हैं.
लेकिन, क्या कभी आपने यह सोचा है कि… इन घंटियों को मंदिर के बाहर लगाए जाने के पीछे क्या कारण है….?????
और तो और….. जन सामान्य को तो ….. मंदिरों में मौजूद इन घंटियों के ना तो कोई आध्यात्मिक कारण मालूम हैं …
और, ना ही कोई वैज्ञानिक कारण.
हम में से अधिकाँश लोग सिर्फ इसे परंपरा के तौर पर ही बजाते हैं…
क्योंकि, हम से अधिकांश लोग ऐसा बचपन से ही देखते आये हैं…
इसीलिए, हम भी ऐसा ही करते हैं…!
लेकिन, हकीकत में …. ये सिर्फ परंपरा नहीं है….
बल्कि, मंदिरों में मौजूद घंटों का ….. ठोस आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारण मौजूद है.
असल में…
प्राचीन समय से ही देवालयों और मंदिरों के बाहर इन घंटियों को लगाया जाने की शुरुआत हो गई थी.
और, इसके पीछे यह मान्यता है कि…. जिन स्थानों पर घंटी की आवाज नियमित तौर पर आती रहती है….. वहां का वातावरण हमेशा सुखद और पवित्र बना रहता है…..
तथा, वहां नकारात्मक या बुरी शक्तियां पूरी तरह निष्क्रिय रहती हैं.
यही वजह है कि… सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है..
तो, एक लय अथवा विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं…. जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है.
ऐसी मान्यता है कि…. घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है.. जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है.
तथा, हमारे पुराणों के अनुसार तो… मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं.
और तो और… मान्यता तो यह भी है कि… जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) गूंजी थी…
वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है.
उल्लेखनीय है कि.. यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जागृत होता है.
इसीलिए , मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है…
एवं, कहीं-कहीं यह भी उल्लेखित है कि जब प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा.
लेकिन, अगर हम इसके वैज्ञानिक कारणों की विवेचना करें तो….
आप यह जानकार हैरान रह जाएंगे कि …. मंदिरों की घंटी कोई सामान्य धातु से नहीं बनायी जाती है …
बल्कि, किसी भी मंदिर की घंटी Cadmium, Lead, Copper, Zinc, Nickel, Chromium and Manganese इत्यादि के मिश्रित धातु से बनाई जाती है.
घंटी बनाते समय …. इन सभी धातुओं को इस अनुपात में मिलाया जाता है ताकि…. इससे निकलने वाली ध्वनि तीखी तो हो….
लेकिन कर्णप्रिय हो….
साथ ही, उस घंटी की कम्पन काम से काम सात सेकेण्ड तक बनी रहे..
इस तरह… जब घंटे को बजाया जाता है तो…. उसकी ध्वनि हमारे …. दिमाग में दोनों भागों ( दाहिना और बांया अर्थात चेतन और अवचेतन) मस्तिष्क पर असर डालती है.
और… हमें तनावमुक्त कर देती है…
साथ ही… इसके सात सेकेण्ड तक रहने वाली प्रतिध्वनि…. हमारे शरीर में मौजूद सातों चक्र को भी जागृत कर देती है…. जिससे हम तरोताजा महसूस करने लगते हैं.
इस तरह… मंदिर में मौजूद घंटे…. हमारे दिमाग को तनाव रहित कर… शरीर को तरोताजा बनाती है.
दूसरे शब्दों में… मंदिर में मौजूद घंटे… हमारे दिमाग के लिए “”एन्टीडोट्स”‘ का काम करती है.
सिर्फ इतना ही नहीं…. बल्कि, जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में एक कंपन पैदा होता है… जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है…
और, इस कंपन का फायदा यह होता है कि…. इसके प्रभावक्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं…
जिससे, आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है.
इसीलिए… मित्रो….
हमें इस बात का गर्व होना चाहिए कि…. हम उस सनातन धर्म का हिस्सा हैं..
जिसकी छोटी से छोटी परम्पराओं में भी…. वैज्ञानिकता छुपी हुई है.
और… मैं, इस बात को फिर से याद दिला दूँ कि….
चूँकि… हरेक व्यक्ति को ….. एक-एक कर … हर बात की वैज्ञानिकता समझाना संभव हो नहीं पाता….
इसीलिए… हमारे ऋषि-मुनियों ने ….. गूढ़ से गूढ़ बातों को भी.. हमारी परम्परों और रीति-रिवाजों का हिस्सा बना दिया….
ताकि, हम जन्म-जन्मांतर तक …. अपने पूर्वजों के द्वारा खोजे गए ज्ञान-विज्ञान से लाभान्वित होते रहें.
जैसे कि.. आज हम हो रहे हैं.
जय सनातन धर्म…!!
बहुत ही सुंदर आलेख