प० पू० श्री गुरुजी संघ के सरसंघचालक थे। सब लोग उन्हें संघ का सर्वेसर्वा मानते और कहते थे। पर उनके मन में ऐसा कोई अहंकार नहीं था। एक बार दिल्ली में अपने प्रवास के समय इस संबंध में उन्होंने यह कथा सुनायी…….
एक व्यक्ति अपने ऊँट को लेकर कहीं जा रहा था। कुछ दूर चलने के बाद उसने ऊँट के गले में बंधी रस्सी छोड़ दी, फिर भी ऊँट अपने मार्ग पर ठीक से चलता रहा। रस्सी को जमीन पर घिसटता देखकर एक चूहा आया और वह उस रस्सी को पकड़कर ऊँट के साथ-साथ चलने लगा।
थोड़ी देर बाद चूहे ने अहंकार से ऊँट की ओर देखा और कहा – तुम अपने को बहुत शक्तिशाली समझते हो; पर देखो, इस समय मैं तुम्हें खींचकर ले जा रहा हूँ। यह सुनकर ऊँट हँसा और उसने अपनी गर्दन को जरा सा हिलाया। ऐसा करते ही चूहा दूर जा पड़ा।
यह कथा सुनाकर श्री गुरुजी ने कहा – ऐसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक अपना यह विशाल संगठन है। इसकी रस्सी का एक छोर पकड़कर यदि मैं यह कहूँ कि मैं इसे चला रहा हूँ, तो यह मेरा नहीं, चूहे जैसी क्षूद्र बुद्धि वाले किसी व्यक्ति का कथन होगा ………
वस्तुत: संघ सब स्वयंसेवकों की सामूहिक शक्ति से चल रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि हम इसमें और अधिक बुद्धि और शक्ति लगायें।
यही हम सबका कर्तव्य है।