हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
 पितरों के प्रति श्रद्धा का अनुष्ठान

 पितरों के प्रति श्रद्धा का अनुष्ठान

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, पर्यावरण, विशेष, सामाजिक
0
मृत्यु के उपरान्त मानव का क्या होता है? यह प्रश्न आदिकाल से अनुत्तरित चला आ रहा है और रहस्य ही बना हुआ है। मानव के भविष्य, पृथ्वी पर अस्तित्व-समाप्ति के उपरान्त उसके स्वरूप के विषय में भांति-भांति के मत निरंतर प्रकाश में आते रहे हैं। सामान्यतः मृत्यु विलक्षण और भयावह समझी जाती है। यद्यपि कुछ दार्शनिक इसे मंगलप्रद और शरीररूपी कारागृह में बंदी आत्मा की मुक्ति के रूप में भी ग्रहण करते रहे हैं, तथापि मानव में मृत्यु का भय सदैव रहा है और यह मृत्यु के समय की सम्भाव्य पीड़ा से नहीं है, बल्कि वह मृत्यूपरांत घटनाक्रम के रहस्य से आक्रांत होता है।
कठोपनिषद (1/1/20) में आया है – ‘जब मनुष्य मरता है, तो एक संदेह उत्पन्न होता है। कुछ लोगों के मत से मृत्यूपरांत जीवात्मा की सत्ता रहती है, कुछ लोग ऐसा नहीं मानते।’ आदिकाल से ही ऐसा विश्वास रहा है कि मृत्यु के समय व्यक्ति जो विचार रखता है, उसी के अनुसार दैनिक जीवन के उपरान्त उसका जीवात्मा आक्रान्त होता है – अन्ते या मतिः सा गतिः। कुछ पुराणों का कथन है कि जब व्यक्ति मर जाता है, तो आत्मा आतिवाहिक (तत्क्षणादेव गृह्याति शरीरमातिवाहिकम  – विष्णु धर्मोत्तर 13-14) शरीर धारण कर लेता है, जिसमें पंच तत्वों में से अब केवल तीन – अग्नि, वायु एवं आकाश तत्व बचे रहते हैं, जो शरीर से ऊपर उठ जाते हैं और पृथ्वी एवं जल तत्व नीचे रह जाते हैं। शवदाह के समय से लेकर दस दिन तक जो पिंडदान किए जाते हैं, उनसे आत्मा एक दूसरा शरीर धारण कर लेता है, जिसे भोगदेह (पिंड का भोग करने वाला) कहा जाता है। वर्ष के अंत में जब सपिंडीकरण होता है, आत्मा एक तीसरा शरीर धारण कर लेता है, जिसके द्वारा कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक को जाता है। (वेदांत सूत्र 4/3/4)
ऐसा विश्वास है कि जिस मृतक के लिए पिंडदान नहीं होता अथवा जिसके लिए सोलह श्राद्ध नहीं होते, वह सदा के लिए पिशाच की स्थिति में रहता है – यस्यैतानि न दीन्यत प्रेतश्रद्धानि षोडशः पिशाचत्वं ध्रुवं तस्य दत्तै श्राद्धशतैरपि। (गरुड़ पुराण/प्रेत खंड 34/131) इस स्थिति से बाद में अगणित श्राद्ध करने के उपरान्त भी मुक्ति संभव नहीं है। ब्रह्म पुराण ने इस शरीर की स्थिति को यातनीय (यातना पाने वाला) कहा है, किन्तु अग्नि पुराण ने इसे यातनीय अथवा आतिवाहिक अभिहित किया है और कहा है कि यह शरीर आकाश, वायु एवं तेज से बनता है। पद्मपुराण (2/67/98) का कथन है कि जो व्यक्ति कुछ पाप करते हैं, वे मृत्यु के उपरान्त भौतिक शरीर के समान ही दुःख भोगने के लिए एक शरीर पाते हैं।
इस विषय में अन्तर्निहित धारणा यह रही है कि जब तक मृतात्मा पुनः शरीरी रूप में आविर्भूत नहीं होता, तब तक उसे स्थूल शरीर को दाह, भूमि में गाड़ने अथवा अन्य विधि से नष्ट कर देने के बाद एक सूक्ष्म शरीर धारण करना पड़ता है। इस सूक्ष्म शरीर का निर्माण क्रमशः होता है (मार्कण्डेय पुराण 10/73) और यह मृत्यूपरांत बहुत दिनों के बाद ही मिलता है।
———————————-
पितर कौन हैं
सामान्यतः पूर्वजों द्वारा सूक्ष्म रूप धारण करने की इसी अवस्था को पितर की श्रेणी दी गई है, तथापि धर्मशास्त्रों में इस विषय में विशद विवेचन है।
पितृ का अर्थ है पिता, किन्तु पितरः शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है – 1. व्यक्ति के मृत तीन पूर्वज एवं 2. मानव जाति के आरम्भिक अथवा प्राचीन पूर्वज, जो एक पृथक लोक के अधिवासी के रूप में परिकल्पित हैं (ऋग्वेद 10/14/2; 70; 10/15/2 एवं 9/97/39)।
ऋग्वेद (10/15/1) में पितृगण निम्न, मध्यम और उच्च, तीन श्रेणियों में व्यक्त हुए हैं तथा प्राचीन, पश्चात्कालीन एवं उच्चतर (10/15/2) कहे गए हैं। वे सभी अग्नि को ज्ञात हैं, यद्यपि सभी पितृगण वंशजों को ज्ञात नहीं हैं (10/15/3)। वे अग्नि एवं इन्द्र के साथ आहुतियां लेने आते हैं (10/15/10 एवं 10/16/12) और अग्नि उनके पास आहुतियां ले जाता है (10/15/12)। जल जाने के उपरान्त अग्नि ही मृतात्मा को पितरों के पास ले जाता है (ऋग्वेद 10/16/1-2-5 एवं अथर्ववेद 18/2/10)।
ऐसा माना गया है कि शरीर के दाह के बाद मृतात्मा को वायव्य शरीर प्राप्त होता है और वह (मृत) मनुष्यों को एकत्र करने वाले यम एवं पितरों के साथ हो लेता है (ऋग्वेद 10/14/1-8; 10/15/14 एवं 10/16/5)। मृतात्मा पितृलोक में चला जाता है एवं अग्नि से प्रार्थना की जाती है कि वह उसे सत्कर्म वाले पितरों एवं विष्णु के पाद न्यास (विक्रम) की ओर ले जाए (ऋग्वेद 10/14/9; 10/15/3 एवं 10/16/4)।
पितरों की अन्य श्रेणियां भी हैं, यथा – पितरः सोमवन्तः, पितरः बर्हिषदः एवं पितरः अग्निष्वात्ताः। शतपथ ब्राह्मण ने इनकी परिभाषा इस तरह की है – “जिन्होंने सोमयज्ञ किया, वे पितर सोमवन्त, जिन्होंने पक्व आहुतियां (चरु एवं पुरोडाश के समान) दीं और एक लोक प्राप्त किया, वे पितर बर्हिषद तथा जिन्होंने इन दोनों में से कोई कृत्य नहीं किया और जिन्हें अग्नि ने (जलाकर) समाप्त कर दिया, वे पितर अग्निष्वात्ता कहलाए।” किन्तु बाद में पितरों की श्रेणियों के नामों में कुछ अंतर आया। नांदीपुराण (हेमाद्रि) में आया है – ‘ब्राह्मणों के पितर अग्निष्वात्त, क्षत्रियों के बर्हिषद, वैश्यों के काव्य, शूद्रों के सुकालिन तथा म्लेच्छों एवं अस्पृश्यों के व्याम हैं।’
——————————
मनु स्मृति (3/193-198) ने पितरों की कई कोटियां दी हैं और चारों वर्गों के लिए पितरों के नाम क्रमशः सोमपा, हाविर्भुज, आज्यपा, सुकालिन दिए हैं और आगे चल कर (3/199) कहा है कि ब्राह्मणों के पितर अनाग्निदग्ध, अग्निदग्ध, काव्य, बर्हिषद, अग्निष्वात्त एवं सौम्य नामों से पुकारे गए।
शातातप स्मृति (6/5-6) में पितरों की बारह कोटियों के नाम आए हैं  – पिण्डभाजः (3), लेपभाजः (3), नान्दीमुख (3) एवं अश्रुमुख (3)। वायु पुराण (72/1 एवं 37/6), ब्रह्माण्ड पुराण (उपोदधात 9/53), पद्म पुराण (5/9/3-3), विष्णुधर्मोत्तर (1/138/2-3) एवं अन्य पुराणों में पितरों के सात प्रकार आए हैं, जिनमें तीन अमूर्तिमान हैं और चार मूर्तिमान। स्कन्द पुराण (6/216/9-10) ने पितरों की नौ कोटियां दी हैं – अग्निष्वात्ता:, बर्हिषद:, आज्यपा:, सोमपा:, रश्मिपा:, उपहूताः, आयन्तुनः, श्राद्धभुजः एवं नांदीमुखः।
मनु स्मृति (3/201) ने कहा है कि ऋषियों से पितरों की उदभूति हुई, पितरों से देवों एवं मानवों की तथा देवों से स्थावर एवं जंगम के सम्पूर्ण लोक की उदभूति हुई। दृष्टव्य है कि यहां देवगण और मानव पितरों से उदभूत माने गए हैं, अर्थात जीवित रहते मानव संतति उत्पन्न कर, मृत्यूपरांत पितर बन जाता है और पितर रूप में अपने सत्कर्मों के बल पर देवत्व प्राप्त करता है।
वैदिक साहित्य की बहुत सी उक्तियों में ‘पितरः’ शब्द व्यक्ति के समीपवर्ती, मृत पुरुष पूर्वजों के लिए प्रयुक्त हुआ है। तैत्तिरीय ब्राह्मण (1/6/9/5) में उल्लेख है -“अतः तीन पीढ़ियों तक वे (पूर्वजों को) नाम से विशिष्ट रूप से व्यंजित करते हैं, क्योंकि ऐसे बहुत से पितर हैं, जिन्हें आहुति दी जाती है।” किन्तु वैदिक साहित्य के उपरान्त की रचना में, विशेषतः पुराणों में पितरों के मूल एवं प्रकारों के विषय में विशद वर्णन मिलता है।
– आलोक बृजनाथ

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #पितृपक्ष #श्राद्धपक्ष #मनुस्मृति #ऋग्वेद #सोलहश्राद्ध #पिंडदान #पितर #कठोपनिषद #पूर्वज #श्राद्ध #श्राद्धकर्म #श्राद्धअनुष्ठान #

हिंदी विवेक

Next Post
हमारा कोहिनूर, कब तक रहेगा हमसे दूर!

हमारा कोहिनूर, कब तक रहेगा हमसे दूर!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0