चुनाव के वक्त राहुल गांधी जब मंदिर दर्शन में जाते हैं लोग मजाक उड़ाते हैं। कहते हैं राहुल गांधी कालनेमि है। तब कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें यह सब सुनकर बुरा लगता है। वे कहते हैं राहुल गांधी छल कपट से मुक्त बहुत सीधे और साधारण लोग हैं।
राहुल गांधी आजकल भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। फिलहाल वे केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के निकट हैं। रास्ते में कितने ही मंदिर पड़ते हैं। लेकिन दंग रह जाएंगे देखकर राहुल गांधी के लिए जितने भी स्थान तय किए गए हैं, ठहरने और मिलने के लिए, लिस्ट में केवल चर्च ही चर्च, और चर्चों से जुड़ी हुई संस्थाएं हैं। मंदिर एक भी नहीं।
बात यहीं खत्म नहीं होती। उन्होंने फादर से पूछा, जीसस गॉड के रूप हैं क्या यह सही है? फादर कहते हैं, जीसस ही असली भगवान है जो मानव के रूप में, पुरुष के रूप में प्रकट होते हैं, न कि शक्ति इत्यादि के रूप में। यहां शक्ति का अर्थ देवी से है और इस देवी रूप को फादर नकारते हुए, जीसस को गॉड बताते हुए उनके पुरुष रूप पर जोर देते हैं।
पहली बात तो फादर की सोच अपने आप में पूरी क्रिश्चियनिटी की सोच दर्शाता है और फादर किस प्रकार से संकीर्ण मानसिकता को दिखाते हैं। भगवान के देवी रूप को न केवल नकारते हैं बल्कि पूरा बयान सुनने पर लगेगा कि जैसे मजाक भी उड़ाते हैं। अध्यात्म को छोड़कर यदि सामाजिक रूप से भी देखें तो हम लोगों को पढ़ाया गया ‘इक्वलिटी बिफोर लॉ’ हमारे संविधान में ब्रिटेन से लिया गया है। ब्रिटेन एक क्रिश्चियन देश है लेकिन असलियत देखिए।
दूसरी बात कि राहुल गांधी पर मीम बनाया जा सकता है लेकिन राहुल गांधी के शातिर बुद्धिमत्ता को नकारा नहीं जा सकता। राहुल गांधी को अच्छे से पता है कि मंदिर जाना उत्तर भारत की राजनीति के लिए मजबूरी हो सकता है, दक्षिण भारत के लिए नहीं। और यह समझ बड़ी महीन समझ है। इसलिए राहुल गांधी ने एक भी मंदिर में अपने पड़ाव को स्थान नहीं दिया है।
और ये लोग मोदीजी को सांप्रदायिक बताते हैं। वही मोदी जो दक्षिण भी जाता है तो ईशा फाउंडेशन वाली आदियोगी शिव की विशालकाय प्रतिमा का अनावरण करके आ जाता है। शिव का भक्त स्वयं को बताने वाले राहुल गांधी कम से कम एक बार वहीं चले जाते।
– विशाल झा