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निर्माण एवं सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा

निर्माण एवं सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा

by हिंदी विवेक
in देश-विदेश, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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भगवान विश्वकर्मा सृजन के आदि देव माने जाते हैं जिन्होंने अपने महानतम कर्म से स्वर्णिम इतिहास रचा। प्राचीन ग्रंथों में विश्वकर्मा को प्रजापति, आदित्वदेव ,शिल्पी, त्रिदाचार्य आदि नामों से पुकारा गया है। विश्वकर्मा के अवतार विभिन्न युगों एवं मनवन्तरों में हुए हैं। देव, राक्षस, गंधर्व , मानव आदि योनियों में इनके अवतारों का वर्णन मिलता है ।

इन्हीं अवतारों में से एक हैं “भैमेन अवतार“। ब्रहमा जी के मानस पुत्र ऋषिधर्म देव की आठ संताने हुई। जिन्हें अष्टवासु कहा गया है। इन्हीं अष्टवासु की आठवीं संतान के पुत्र हैं श्रीभौमेन विश्वकर्मा। उनकी मां का नाम वस्त्री या जिन्हें अंगिरा एवं भुवना के नाम से भी जाना जाता है। विश्वकर्मा की मां देवगुरू बृहस्पति की बहन एवं अंगिरा ऋषि की पुत्री थीं। विश्वकर्मा  शिल्पशास्त्र  के आचार्य और आविष्कारक माने जाते हैं। धनकुबेर व श्रीलंका नरेश की राजधानी का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। भगवान इंद्र की भव्य इंद्र नगरी जो सुमेरू पर्वत पर बसी थी विश्वकर्मा के द्वारा ही बनायी गयी थी। त्रेतायुग में सेतुबंध और रामेश्वरम का निर्माण भी विश्वकर्मा के पुत्रों नल और नील के द्वारा ही ही हुआ था जिसकी प्रशंसा प्रभु श्रीराम ने भी की है।

इससे यह सुस्पष्ट होता है कि विश्वकर्मा शिल्प एवं वास्तु विद्या के अधिष्ठाता  तथा निर्माण एवं सृजन के देवता हैं। विश्वकर्मा वैदिक देवताओं में से एक हैं। उन्हें पृथ्वी ,जल, प्राणी आदि का निर्माता कहा जाता है। अथर्ववेद में वात सतेज ब्राह्मणों एवं पुराणों में इसका गौरवपूर्ण वर्णन मिलता है। संहिता में उन्हें सर्वदृष्टा प्रजापति कहा गया है। शतपथ ब्राह्मण में वे विधाता प्रजापति हैं। महाभारत में विश्वकर्माको देवताओं का महान शिल्प शास्त्री तथा स्वयंभुव मन्वन्तर के शिल्प प्रजापति कहकर गौरवान्वित किया गया है।

विश्वकर्मा शब्द बडे़ ही व्यापक अर्थां में हैं। यजुर्वेद के अनुसार विश्वकर्मा अर्थात सभी कर्म क्रिया कलाप जिन के द्वारा हुए इस अर्थ में श्रृमंग के रचयिता परमेश्वर  के रूप में विश्वकर्मा का बोध होता है। उन्होंने ब्रह्मा जी की इच्छा के अनुसार नवीन अनुसंधानों ,उपकरणों और सौर ऊर्जा की उपयोगिता के ज्ञान का उपयोग करके विष्णु भगवान के लिए सुदर्शन  चक्र, शिवजी के लिए त्रिशूल ,इंद्र के लिए विजय नामक रथ एवं पुष्पक विमानों का निर्माण किया। जिसे आधुनिक भाषा में क्रमशः प्रक्षेपास्त्र  तथा आकाशयान कहते हैं।

विश्वकर्मा एक आदर्श  एवं उच्चकोटि के शिल्पी ही नहीं वरन आदि अभियंता हैं। वास्तु तथा स्थापत्य शास्त्र गुणी हैं तथा वास्तुशास्त्र ग्रन्थ के रचयिता  माने जाते हैं। वास्तुकला को एक शास्त्र के रूप में प्रस्तुत करने वाला यह विश्व का पहला ग्रंथ है। उनका नवनिर्माण कार्य एवं सशोधन  केवल वास्तुकला या शिल्प शास्त्र तक ही सीमित नहीं था वे  शस्त्र शास़्त्र तथा विमानन के भी जनक थे।उनके द्वारा निर्मित  प्रसिद्ध पुष्पक विमान की विशेषता थी कि वह भूतल पर जल में और आकाश  मार्ग से सामान रूप से भ्रमण कर सकता था। विश्व  इतिहास में भगवान विश्वकर्मा ही एकमात्र ऐसे महापुरूष हैं जो ललित एवं सांस्कृतिक कलाओं के ज्ञाता एवं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सृजनकर्ता दोनों हैं । कहा गया है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही माँ लक्ष्मी जी को अलंकारों से विभूषित है । त्रेता युग से महाभारत काल तक जितने भी नवनिर्माण हुए सभी के सभी भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही सम्पन्न कराये गये।

स्वनाम धन्य सम्पूर्ण विश्व के सृजनकर्ता,  अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित, सम्पूर्ण समाज के हित में कार्य करने वाले,जिनकी कथनी व करनी में अंतर न हो, जिनमें सर्वकालिक दिशा  दर्शन  की क्षमता है   ऐसे भगवान विश्वकर्माअपनी सृजन शक्ति के कारण सर्वथा पूजनीय हैं। भगवान विश्वकर्मा हमें  सतत अभ्यास, लगन और श्रम की प्रेरणा देते हैं ।

– मृत्युंजय दीक्षित

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