हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
97 साल की यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव

97 साल की यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव

by अरुण आनंद
in अक्टूबर-२०२२, विशेष, संघ, सामाजिक
0

किसी वैचारिक संगठन का सौ सालों तक टिका रहना और लगातार विस्तार पाना साबित करता है कि उस संगठन ने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर कार्य किया है तथा आम जन के बीच उसने नैसर्गिक नेतृत्व की क्षमता विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपनी सौंवी वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन है और इसके स्वयंसेवक देश भर में तीन दर्जन से अधिक संगठन चलाते हैं। इसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वैचारिक संरक्षक माना जाता है, जो दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है और वर्तमान में भारत में अपने लगातार दूसरे कार्यकाल का आधा सफर तय कर चुकी है। लगभग दर्जन भर राज्यों में इसकी सरकारें हैं और वह देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। इसके शीर्ष स्तर पर मूलत: संघ से आए कार्यकर्ता ही हैं, जिनमें स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं जो संघ में लम्बे समय तक पूर्णकालिक कार्यकर्ता अर्थात प्रचारक के रूप में काम करते रहे।

रा.स्व.संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के शुभ दिन पर हुई थी। रा.स्व.संघ हर साल विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है। इसी दिन सरसंघचालक का वार्षिक उद्बोधन भी होता है जो संघ और इससे प्रेरित अन्य संगठनों के लिए समकालीन संदर्भों में एक मार्गदर्शिका की तरह काम करता है। रा.स्व.संघ की उम्र 2025 में 100 साल हो जायेगी। इस लम्बी यात्रा में कई ऐसे पड़ाव आए जिनका स्थायी प्रभाव संघ की दशा और दिशा पर पड़ा, ऐसे कुछ महत्वपूर्ण  पड़ावों के बारे में हम यहां चर्चा करेंगे।

रा.स्व.संघ की स्थापना 1925 में ’विजयादशमी’ के उत्सव के दिन हुई थी। रा.स्व.संघ की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने केवल 15-20 युवाओं के एक छोटे समूह के साथ की थी। इसकी स्थापना के अवसर पर वहां उपस्थित लोगों में भाऊजी कावरे, अन्ना सोहनी, विश्वनाथराव केलकर, बालाजी हुद्दर और बापूराव भेड़ी शामिल थे जिन्होंने प्रारम्भिक वर्षों में संघ के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई।

रा.स्व.संघ की कार्यशैली का मूल आधार दैनिक शाखा है। लगभग एक घंटे के लिए तय समय व स्थान पर लोग एकत्र होते हैं तथा शारीरिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक विकास से सम्बंधित गतिविधियों व कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। पहली ऐसी दैनिक ’शाखा’ वास्तव में 28 मई 1926 से शुरू हुई, जिसका एक नियमित कार्यक्रम था। जिस स्थान पर रा.स्व.संघ पहली शाखा आरम्भ हुई थी, वह नागपुर का मोहितेबाड़ा मैदान था, जो वर्तमान में रा.स्व.संघ मुख्यालय परिसर का हिस्सा है। वर्तमान में संघ की 60,000 से अधिक दैनिक शाखाएं हैं। रा.स्व.संघ को अपना वर्तमान नाम इसकी स्थापना के लगभग छह महीने बाद मिला। 17 अप्रैल 1926 को डॉ. हेडगेवार ने अपने घर पर एक बैठक बुलाई जिसमें 26 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। उस संगठन का नाम तय करने के लिए एक विस्तृत चर्चा हुई। कई नाम सुझाए गए और अंत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम सर्वसम्मति से तय किया गया।

’भगवा ध्वज’ को संघ में ’गुरु’ माना जाता है। जब रा.स्व.संघ की शुरुआत हुई, तो कई स्वयंसेवक चाहते थे कि इसके संस्थापक डॉ हेडगेवार को ’गुरु’ के रूप में नामित किया जाए, क्योंकि हर स्वयंसेवक उन्हें एक आदर्श के रूप में देखता था। लेकिन डॉ. हेडगेवार ने तय किया कि किसी व्यक्ति में कमियां आ सकती हैं इसलिए भारतीय शाश्वत परम्परा में त्याग, शौर्य, यज्ञ की अग्नि के प्रतीक भगवा ध्वज को ’गुरु’ के स्थान पर विराजमान होना चाहिए।

हर साल व्यास पूर्णिमा के दिन भगवा ध्वज की विधिवत पूजा की जाती है। इसे ’गुरुपूजा’ के रूप में जाना जाता है और यह उन छह मुख्य त्योहारों में से एक है जिसे रा.स्व.संघ हर साल मनाता है। रा.स्व.संघ में पहली ’गुरुपूजा’ 1928 में आयोजित की गई थी जब ’भगवा ध्वज’ की औपचारिक रूप से पहली बार ’गुरु’ के रूप में पूजा की गई थी। तब से, इस परम्परा में कोई रुकावट नहीं आई है और भगवा ध्वज रा.स्व.संघ के पदानुक्रम में सर्वोच्च स्थान पर है। प्रत्येक दैनिक शाखा पर प्रतिदिन भगवा ध्वज लहराया जाता है।

‘प्रचारक’ या पूर्णकालिक कार्यकर्ता रा.स्व.संघ के संगठनात्मक ढांचे की रीढ़ हैं। प्रचारकों के पहले जत्थे में दादाराव परमार्थ, बाबासाहेब आप्टे, रामभाऊ जामगड़े और गोपालराव यरकुंटवार शामिल थे। 1932 के उत्तरार्ध में, वे रा.स्व.संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और उन्हें रा.स्व.संघ के काम को आगे बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र राज्य के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया। आज रा.स्व.संघ के 4,000 से अधिक प्रचारक हैं जो देश भर में काम करते हैं। प्रतिबद्ध व समर्पित स्वयंसेवकों के निर्माण के लिए संघ में कई प्रकार के प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं। संघ में इन्हें ’अभ्यास वर्ग’ या ‘संघ शिक्षा वर्ग’ के नाम से जाना जाता है। संघ का पहला बड़ा प्रशिक्षण शिविर 1929 में नागपुर में आयोजित किया गया था। यह 1 मई से 10 जून तक 40 दिनों के लिए आयोजित किया गया था। प्रारम्भ में, इन शिविरों को ’ग्रीष्मकालीन शिविर’ कहा जाता था, क्योंकि ये गर्मी की छुट्टियों के दौरान आयोजित किए जाते थे। इन शिविरों के लिए 1950 के बाद ’संघ शिक्षा वर्ग’ नाम का इस्तेमाल किया गया।

नागपुर से करीब 50 किमी दूर सिंदी नामक स्थान पर फरवरी 1939 में रा.स्व.संघ के शीर्ष नेतृत्व की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई थी। इसका आयोजन संघ  के एक वरिष्ठ पदाधिकारी नानासाहेब तलातुले के आवास पर किया गया था। रा.स्व.संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार, माधव सदाशिव गोलवलकर, जिन्हें ’गुरुजी’ के नाम से जाना जाता है, बाला साहेब देवरस, अप्पाजी जोशी, विट्ठलराव पाटकी, तलातुले, तात्याराव तेलंग, बाबाजी सालोदकर और कृष्णराव मोहरिल ने बैठक में भाग लिया। इस बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिनका रा.स्व.संघ के कामकाज के तरीके पर लम्बे समय तक प्रभाव पड़ा। इन फैसलों का रा.स्व.संघ की संरचना पर एक निश्चित प्रभाव पड़ा। इस बैठक में संघ की प्रार्थना तैयार की गई तथा यह तय किया गया कि अब से मराठी या अंग्रेजी में नहीं बल्कि संघ शाखाओं पर संस्कृत में दिशा-निर्देश दिए जाएंगे। संघ में तब से अभी तक वही प्रार्थना चली आ रही है। सार्वजनिक रूप से इस प्रार्थना का वाचन पहली बार इस बैठक के बाद पुणे के एक एक शिविर में डा. हेडगेवार तथा गुरूजी की उपस्थिति में किया गया था।

1940 में रा.स्व.संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार का निधन हो गया और गुरुजी गोलवलकर ने रा.स्व.संघ के दूसरे सरसंघचालक के रूप में पदभार संभाला। उन्होंने अगले 33 साल के कार्यकाल में एक छोटे संगठन को अखिल भारतीय संगठन में बदल दिया। उनके कार्यकाल के दौरान अधिकांश रा.स्व.संघ से प्रेरित संगठन अस्तित्व में आए, जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पहुंच का विस्तार किया। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण संगठनों में से एक था- भारतीय जनसंघ, जिसे आप भाजपा का पूर्ववर्ती संगठन कह सकते हैं। इसकी स्थापना 1952 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी।

1974 में, रा.स्व.संघ के तीसरे सरसंघचालक बालसाहेब देवरस ने वसंत व्ययाख्यानमाला में अपने उद्बोधन में घोषणा की, अगर अस्पृश्यता गलत नहीं है, तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है। इसने संघ द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त करने तथा सामाजिक समरसता स्थापित करने के बड़े पैमाने पर प्रयासों की शुरूआत की। इसका परिणाम यह हुआ कि संघ ने समाज सेवा के क्षेत्र में व्यापक कार्य करने का निर्णय लिया। परिणाम यह है कि वर्तमान में रा.स्व.संघ के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों के बैनर तले देश भर में करीब दो लाख सेवा परियोजनाएं चला रहे हैं। 1983 में रा.स्व.संघ ने रामजन्मभूमि आंदोलन में कदम रखा। संघ से प्रेरित विश्व हिंदू परिषद ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। अंततः 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के साथ आंदोलन की परिणति हुई। इस आंदोलन ने राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में हिंदुत्व को स्थापित किया।

पिछले 96 वर्षों में, रा.स्व.संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया है। 1948, 1975 और 1992 में। 1948 में, महात्मा गांधी की हत्या के बाद संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, 1975 में इसे आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित कर दिया गया था और 1992 में इसे बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया था। तीनों बार, कुछ ही समय में प्रतिबंध हटा लिया गया, और रा.स्व.संघ को उस पर लगाए गए झूठे आरोपों से मुक्त कर दिया गया। हर प्रतिबंध के बाद संघ ने पहले से अधिक मजबूती से वापसी की। 1949 में प्रतिबंध हटने के बाद रा.स्व.संघ ने अपने संविधान का मसौदा तैयार किया। 1975-77 के दौरान, रा.स्व.संघ ने लोकतंत्र को  बहाल करने के लिए एक भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व किया और इसकी भूमिका को विश्व स्तर पर मान्यता मिली।

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय सम्मेलन (17-19 सितंबर, 2018) को छठे सरसंघचालक मोहन भागवत ने संबोधित किया, जहां उन्होंने 21वीं सदी के लिए रा.स्व.संघ के रोडमैप का खुलासा किया और रा.स्व.संघ की विश्वदृष्टि को प्रस्तुत किया। यह अपने प्रकार का पहला आयोजन था जहां समाज जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े ऐसे लोगों तक संघ पहुंचा जो अभी स्वयंसेवक नहीं बने और संघ के सम्बंध में कई भ्रांतियों का निराकरण किया गया।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

अरुण आनंद

Next Post
कांग्रेस बचाव का स्वर्ग कहां?

कांग्रेस बचाव का स्वर्ग कहां?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0