कांग्रेस बचाव का स्वर्ग कहां?

भारत जोड़ने के लिए 5 महीनों की यात्रा पर निकले राहुल गांधी का मुख्य लक्ष्य केवल कांग्रेस में अपने हाथों को मजबूत करना रह गया है। उनके आसपास केवल मोदी विरोध की जमीन पर आजीविका चलाने वाले समूह ने घेरा डाल रखा है। मजबूत कांगेे्रस ही भाजपा का मुकाबला कर सकती है लेकिन ऐसा होता कहीं परिलक्षित नहीं हो रहा है।

150 दिन यानी पांच महीने यात्रा पर रहने और इस दौरान 3570 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए निश्चित रूप से आत्मविश्वास और साहस चाहिए। इस मायने में राहुल गांधी की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने ऐसा साहस दिखाया है। पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर के बाद इतनी लम्बी पदयात्रा करने वाले राहुल गांधी दूसरे नेता होंगे। चंद्रशेखर ने जनवरी 1983 में कन्याकुमारी से भारत यात्रा शुरू की थी जो दिल्ली के राजघाट पर जून ,1984 में खत्म हुई। कुल मिलाकर उन्होंने 4200 किलोमीटर की यात्रा की थी। चंद्रशेखर और राहुल गांधी की यात्रा के पीछे की सोच, रचना,व्यवहार और  प्रकृति में कोई साम्य नहीं है। इसलिए दोनों की तुलना नहीं की जानी चाहिए। कोई भी नेता देश में यात्रा करने के लिए स्वतंत्र है। उसका उद्देश्य राजनीतिक है तब भी इसमें कोई बुराई नहीं है। अगर कांग्रेस का उद्देश्य अपने सिकुड़ चुके जनाधार को फिर से पाना तथा एक सशक्त पार्टी बनाना हो तो इसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। प्रश्न है कि क्या राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को वाकई राजनीतिक लाभ हो सकता है? सीधे इसका उत्तर न में दे दिया जाए तो अनेक लोग कहेंगे कि निष्कर्ष जल्दबाजी में निकाला जा रहा है।

सच कहें तो अभी तक की यात्रा से निकले संदेश कांग्रेस की दृष्टि से उम्मीद नहीं जगाते। वर्तमान भारतीय राजनीति की समस्या यह है कि अनेक नेता और राजनीतिक पार्टियां केवल एक सूत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा संघ विरोधी एजेंडे पर काम करने की कोशिश करते हैं। यह नकारात्मक एजेंडा होता है, जिसके विपरीत प्रतिक्रिया होने की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। चाहे राहुल गांधी की भारत यात्रा हो या नरेंद्र मोदी के समानांतर स्वयं को विपक्ष का चेहरा बनाने की कोशिश में कवायद कर रहे नीतीश कुमार, इनकी पूरी ऊर्जा इस बात पर लगी है कि उनकी सोच के अनुसार लोग मान लें कि नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार, भाजपा,उनका मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सब इस देश के लिए अनर्थकारी हैं। ऐसा कोई वक्तव्य सामने नहीं है जिनसे हम समझें कि वे कांग्रेस को जनता के दिलों में उतारने के लिए यात्रा कर रहे हैं। यही बात नीतीश कुमार के साथ भी लागू होती है। वे केवल यह कह रहे हैं कि देश को बचाने के लिए विपक्ष को इकट्ठा होना पड़ेगा। देश को क्यों बचाना है ,किससे बचाना है और देश को बचाने का उनका एजेंडा क्या है यानी उनकी विचारधारा व रूपरेखा क्या है इस पर एक शब्द नहीं। दूसरे विपक्षी नेताओं को भी देखें। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के स्वर में भी भारत के लिए ऐसी रूपरेखा या विचारधारा सामने नहीं आई है जिससे जनता को लगे कि अब मोदी, भाजपा और संघ का परित्याग कर इनका वरण करने का समय आ गया है।

किसी संगठन या व्यक्ति से वैचारिक असहमति या मतभेद होना स्वभाविक है। अगर कांग्रेस के ट्वीट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गणवेश के निकर को जलता हुआ दिखाया जाए और यात्रा के आगे बढ़ने के साथ उसके अंत की कामना हो तो इसे क्या मानेंगे? प्रश्न तो उठेगा कि क्या भारत जोड़ो यात्रा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके विचार परिवार के अन्य संगठनों, जिनमें भाजपा भी शामिल है, को नष्ट कराने के लक्ष्य से चल रही है? क्या इस यात्रा के दौरान यह कोशिश है कि जनता में इतना गुस्सा पैदा किया जाए कि वह विरुद्ध होकर इन्हें नेस्तनाबूद कर दें? यह साफ-साफ हिंसा और प्रतिशोध की ज्वाला के रूप में सामने है। भारत के कम्युनिस्ट संघ को खत्म करते करते स्वयं नष्ट हो गए। संघ, जनसंघ और भाजपा को समाप्त करने की कामना करनेवाले असंख्य नेता और अनेक संगठन कब कहां खो गये किसी को पता नहीं।   इस यात्रा में शामिल लोग इसकी रणनीति बनाने वाले संघ के विरुद्ध विरोधियों को हमले के लिए उकसा रहे हैं? अगर भारत जोड़ो यात्रा के बीच या ही साथ इस के अंत के बाद केरल में संघ के कार्यकर्ताओं या समर्थकों के विरुद्ध हिंसक हमले होते हैं तो इसके लिए कौन उत्तरदाई होगा? क्या इन्हें जिम्मेवार नहीं ठहराया जाएगा? दूसरी ओर जब आप एक संगठन को जलाकर नष्ट करने की सार्वजनिक घोषणा करते हैं तो उसके विरुद्ध उसके कार्यकर्ता समर्थक ही नहीं देश भर में तटस्थ लोगों की भी प्रतिक्रियाएं होती हैं। एक ट्वीट से संघ भाजपा और ऐसे अन्य संगठनों के प्रति सहानुभूति और समर्थन ज्यादा बढ़ेगा।

राहुल गांधी ने यात्रा के पूर्व नई दिल्ली में एनजीओ, स्वयं को गैर राजनीतिक मानने वाले एक्टिविस्टों और कुछ बौद्धिक व्यक्तित्वों  से मुलाकात की थी। उनमें ऐसे चेहरे शामिल थे जो लम्बे समय से नरेंद्र मोदी, भाजपा व संघ के विरुद्ध अभियान चलाने के लिए पहचाने जाते हैं। इनमें ऐसे वैश्विक एनजीओ से जुड़े लोग भी थे जो भारत के साथ अनेक देशों में काम करते हैं और यहां के बारे में रिपोर्ट जारी करते हैं। यात्रा में ऐसे एनजीओ, एक्टिविस्ट, बौद्धिक और मीडिया से जुड़े लोग दिख रहे हैं। कुछ तो पूरी यात्रा में शामिल हैं। कांग्रेस के बयान के समानांतर उनके बयान और सोशल मीडिया पर ट्वीट, पोस्ट आदि आ रहे हैं। इनमें वे भी हैं जो शाहीनबाग से लेकर कृषि कानून विरोधी आंदोलन और इसके पूर्व सरकार के विरुद्ध होने वाले दूसरे अभियान, चाहे  असहिष्णुता हो या कोरोना काल में टूलकिट पर सरकार की विफलता के लिए चलाये गए विश्वव्यापी अभियानों में शामिल रहे हैं।

नीतीश से मुलाकात में भाकपा और माकपा के नेताओं ने विपक्षी एकजुटता की बात की। यही पार्टियां केरल में भारत जोड़ो यात्रा का विरोध कर रही हैं। इसका उपहास उड़ाते हुए कहा कि, यह सीट जोड़ो यात्रा है। इससे इतना तो साफ हो गया कि कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व ने इस यात्रा का उद्देश्य विपक्षी एकता नहीं रखा है। ऐसा होता तो दूसरी पार्टी के नेताओं से भी चर्चा की जाती या जगह-जगह उन्हें शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया जाता। इस सच को कोई नकार नहीं सकता कि सोनिया गांधी परिवार के नेतृत्व में वर्तमान कांग्रेस अभी अस्ताचल की ओर जाती दिख रही है। यह कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी रूप में उपस्थित रहेगी या नहीं इसी पर बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है। एक ओर यात्रा चल रही है और दूसरी ओर गोवा के 11 में से 8 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। दूसरे राज्यों में भी नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना लगा हुआ है।

यात्रा में कांग्रेस के वे नेता शामिल नहीं हैं जिन्होंने पार्टी में संगठन चुनाव या बदलाव के लिए आवाज उठाई थी। सोनिया गांधी परिवार के प्रति निष्ठा रखने वाले नेताओं का लक्ष्य राहुल गांधी को किसी तरह स्थापित करना है ताकि वे कांग्रेस के प्रमुख बन सकें या अध्यक्ष कोई रहे तब भी उनके हाथों में नियंत्रण बना रहे। दूसरे, इस यात्रा का लाभ उठाते हुए वह ऐसे लोगों को जोड़ने का काम कर सकते हैं जिनको साथ लाकर भविष्य में आंदोलन अभियान चलाया जा सके। लोगों के मिलने के साथ ये बैठकें भी कर रहे हैं और भविष्य की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर कोई मंच या समूह खड़ा करने की दिशा में काम हो रहा है, तो सोनिया गांधी परिवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस और इन दोनों का कुछ लक्ष्य एक दूसरे के साथ मिलता है।

यात्रा में हो रहे भारी खर्च तथा इसको महिमामंडित करने के लिए सोशल मीडिया और अन्य जगह आकर्षक अभियानों को देखने के बाद निश्चित रूप से प्रश्न उठेगा कि कांग्रेस के पास अचानक इतना धन आया कहां से? कांग्रेस संसाधनों की बात सार्वजनिक तौर पर करती रही है। स्पष्ट है कि इसके पीछे वैसे लोगों ने धन लगाया है जिनके पास ले देकर मोदी, भाजपा और संघ विरोधी एजेंडे के लिए कांग्रेस नजर आता है।

 

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