मच्छरों का अधिवेशन

चीन से आई एक खबर कि वह अब डेंगू से लड़ने के लिये मच्छरों का

बधियाकरण कर उन्हें फैक्ट्री में पैदा करेगा। उसके बाद क्या हुआ एक खबर

पड़ोसी देश चीन में मच्छरों का अधिवेशन हो रहा था। जो जितनी तेजी से भिनभिना सकता था, वो उतनी ही ऊंची कुर्सी पर चिपका हुआ था। कुर्सी पर मजबूती से चिपके रहने के लिये जोरदार आवाज में भिनभिनाना आवश्यक अहर्ता है फिर ये तो मच्छर ठहरे बैठना कम ही जानते हैं। उड़ना मच्छरों की नियति है। वह बैठे नहीं रह सकता, वह बैठता तभी है जब उसे काटना हो। निरंतर उड़ना उसका धर्म है और काटते रहना उसका कर्म। वह अपना धर्म और कर्म दोनों पूरी ईमानदारी के साथ निभाता है। फिलहाल मच्छरों का ये अधिवेशन आपातकालीन परिस्थितियों में बुलाया गया था। विषय था-मच्छरों के मौलिक अधिकारों का हनन-सुरक्षा और उपाय।

एक बड़े पंख व लम्बे डंक वाला मच्छर माइक के सामने भिनभिना रहा था- मेरे सजातीय बंधुओ! ये पोर्टेबल लोगों का देश अब हमारे रहने लायक नहीं बचा, ये देश जब तब अपनी बोनसाई मानसिकता का परिचय हमें देता रहा है। इस बोनसाई मनुष्य ने पहले पेड़ों की बोनसाई की, कुत्ते और बिल्ली का विकास रोक कर उनकी भी नस्ल बोनसाई बना दी। पर अब तो इसने हद ही कर दी, हम मच्छरों के तो अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया, हम मच्छरों की बधियाकरण की प्लानिंग कर रहा है अब। और तो और जन्म लेने के हमारे प्राकृतिक अधिकार को छीन कर फैक्ट्री में हमारा निर्माण कराया जा रहा है। वो भी हमारे बीमारी फैलाने वाले मूल गुणधर्म को खत्म कर के। गुस्से में भिनभिनाते हुए बड़े डंक वाले ने जोरदार चक्कर लगाया और कुर्सी पर चिपक गया। तभी मलेरिया वाली मादा एनाफिलिस आई और बैचेन स्वर में भिनभिनायी, भाई साहब सच कह रहे हैं ये देश अब मच्छरों की प्रजाति के लिये खतरा बन गया है। अब हमें कोई दूसरा ठिकाना देखना होगा। लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर जायें कहां? उसके बैठने से पहले ही डेंगू वाला मच्छर कर्कश आवाज में भिन्नाया- इस दुनिया में एक ही देश ऐसा है जहां हर पीड़ित को शरण मिल जाती है। सारे बेघरों की शरणास्थली है वह, हमें वही चलना चाहिए। सारे मच्छर समवेत स्वर में गुंजाये, इंडिया… इंडिया… इंडिया…

तभी एक बूढ़ा मच्छर जो काफी समय से अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा था घ्ाुन्नाया- अपने अनुभव से कहता हूंं  इंडिया जैसा देश दुनिया में दूसरा नहीं है। पूर्व में भी हम इनसेक्टों में से टिड्डी-दलों ने इंडिया में आक्रमण कर अपना आतंक फैलाया है और खुब फले-फूले हैं।

तभी अध्यक्षता कर रहा आतंक नामक जहरीली प्रजाति का मच्छर घ्ाुर्राया- हमारी प्रजाति के संरक्षण के लिये भी वहां कई सुविधायें उपलब्ध हैं और न केवल संरक्षण, बल्कि प्रजनन व संवर्धन के लिये भी वहां की भ्ाूमि बड़ी उर्वरा है। वहां मानवता के रखवाले लोग डेंगू जैसे खतरनाक मच्छर को भी मारने में संकोच करते हैं। मानवता जो आड़े आ जाती है। धरना और प्रदर्शन के लिये भी वहां सबको समान अधिकार हैं। हम चाहें तो अपने जीवित रहने के अधिकार के लिये वहां आंदोलन भी कर सकते हैं। वहां की अदालतें हमारी सेवा में 24 घंटे हाजिर हो सकती हैं। हमारेे डेंगू किलर कितना भी आतंक फैलाएं, कितनें भी लोगों की जान लें पर हमारी जान बचाना मानवीयता का तकाजा है भाई। आश्चर्य नहीं एक समय ऐसा भी हो जब स्वास्थ्य विभाग के हाथों में संवेदना की दुहाई की हथकड़ी डाल दी जाये और डी.डी.टी. आदि पर भी बैन लगवा दिया जाये। हम पर बड़े-बड़े सेमिनार आयोजित किये जाएं। उसमें तथाकथित मानवतावादी हमारे अधिकारों की रक्षा के लिये लम्बे-लम्बे वक्तव्य दें। ये नाग को दूध पिलाने वालो का देश है। यहां की आस्तीनें सांप पालने के लिये अभिशप्त हैं। हमारा भविष्य वहां उज्ज्वल है।

इतना कहने के बाद सारे मच्छरों ने उड़ान भरी और वे सीधे पाकिस्तान पहुंचे। जिन-जिन मच्छरों के डंक भोथरे हो गये थे, उन्होंने उन्हें नुकीले किये। जिनके अंदर का जहर खत्म हो गया था उन्होंने उसे रिचार्ज किया। सभी शस्त्रों से लैस होकर, पूर्ण तरह प्रशिक्षित हो वे भारत की ओर कूच करने को तैयार हो गये। लेकिन ये क्या, अचानक हेलीकाप्टरों ने कीटनाशक का ऐसा छिड़काव किया कि मच्छरों के सारे मुगालत दूर हो गये। ये भारत अब वो सत्तर साल पहले वाला इंडिया नहीं  रहा है।

                         साधना बलवटे 

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