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सरकता जाए है नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता

सरकता जाए है नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता

by आशीष अंशू
in अक्टूबर-२०२२, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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लगातार पड़ रहे छापों से भ्रष्टाचारियों में खलबली मची हुई है। ईमानदारी का ढोल पीटने वाली आम आदमी पार्टी के मंत्रियों के भी सैकड़ों करोड़ के घोटाले पकड़ में आ रहे हैं। इनसे लोगों की नजर में केद्र सरकार की विश्वसनीयता बढ़ी है क्योंकि 8 सालों से केंद्र में घोटालाविहीन सरकार चल रही है।

19 अगस्त को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर पर जब सीबीआई का छापा चल रहा था, आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व यह निर्णय करने में व्यस्त था कि मीडिया में दिल्ली सरकार की नई शराब नीति को छोड़कर किन-किन मुद्दों पर बात करनी है। मीडिया का ध्यान नई शराब नीति के कथित घोटाले से कैसे भटकाना है? मतलब अर्थशास्त्र से जुड़े प्रश्नों का जवाब वनस्पतिशास्त्र के जवाबों से देने के लिए पार्टी के सारे प्रवक्ता तैयार किए गए थे।

जब यह छापा चल रहा था, सिसोदिया ने अपने ट्वीट में सफेद झूठ लिखा कि छापा शिक्षा मंत्री के घर पड़ा है। इस छापे का शिक्षा से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था। यह छापा दिल्ली के आबकारी मंत्री के घर पड़ा था। प्रसंगवश दिल्ली पूरे देश में इकलौता ऐसा राज्य है जहां शिक्षा और शराब के ठेकों का मंत्रालय एक ही व्यक्ति के पास है। इसलिए दिल्ली के इन दो मंत्रालयों के इकलौते मंत्री को सुबह छह बजे स्कूल जाना पड़ता है और शाम को छह बजे ठेका।

मनीष सिसोदिया समेत 15 लोगों के खिलाफ 17 अगस्त को ही एफआईआर दर्ज कर लिया गया था। इस एफआईआर में उस एक करोड़ रुपए की बात भी लिखी है, जिसे सिसोदिया ने गलत ठहराया। बात सिर्फ एक करोड़ की नहीं है। इसलिए एफआईआर होने के दो दिनों के बाद 19 अगस्त को सिसोदिया के आवास समेत 07 राज्यों में, 21 जगहों पर सुबह आठ बजे से रात के आठ बजे तक, बारह घंटे छापेमारी चली।

सिसोदिया के अलावा एक छापा महाराष्ट्र में 60 वर्षीय सांसद संजय राजाराम राउत के घर पर भी पड़ा। सिसोदिया अब तक बचे हुए हैं लेकिन राउत को पात्रा चॉल घोटाले के मामले में 01 अगस्त को ही गिरफ्तार कर लिया गया था।  मुंबई की विशेष अदालत ने गिरफ्तार शिवसेना नेता संजय राउत की न्यायिक हिरासत 19 सितम्बर तक बढ़ा दी है। महाराष्ट्र में शिवसेना में इस गिरफ्तारी के बाद बहुत अफरा-तफरी है। पहले सरकार का जाना और उसके बाद पार्टी के सबसे बड़बोले नेता के गिरफ्तार हो जाने का संदेश यही था कि सावधान हो जाओ। अब भ्रष्टाचारी नेता बचेंगे नहीं।

बेशक ये दो मामले चर्चा में आए हैं। लेकिन ईडी और सीबीआई की सक्रियता की वजह से देश भर में गलत करने वालों के अंदर डर का माहौल है। इस तरह के छापे सिर्फ दिल्ली और महाराष्ट्र में नहीं पड़े हैं। बल्कि देश भर में इस तरह के छापे डाले गए हैं और निरंतर चल रहे हैं। जब सिसोदिया या संजय राउत जैसे किसी राजनेता के घर पर जांच होती है तो उनकी पार्टी और सोशल मीडिया पर पूरे मामले को जाने समझे बिना उनकी पार्टी के ट्रोलर्स सक्रिय हो जाते हैं। जिन्हें ना छापे से मतलब होता है और ना ही उसके पीछे की सच्चाई से। उनकी पार्टी के नेता का मामला है इसलिए उसके पक्ष में बोलना उन्हें अपना कर्तव्य लगता है, जबकि वही लोग सरकार से करप्शन को लेकर जीरो टॉलरेंस अपनाने की बात करते हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई जांच पर 21 अक्टूबर 2021 को प्रतिबंध लगाया था, जब सुशांत सिंह राजपूत की कथित हत्या के मामले की आंच मातोश्री तक पहुंची थी। एक तरफ महाराष्ट्र में सीबीआई पर प्रतिबंध लगा और दूसरी तरफ केंद्र की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सक्रिय हो गई। उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री रहते-रहते ईडी ने शिवसेना नेता अनिल परब, संजय राउत, भावना गवली, प्रताप सरनाईक, यामिनी जाधव, यशवंत जाधव के साथ एनसीपी नेता नवाब मलिक, अनिल देशमुख पर जांच बिठा दी। राउत की चर्चा मीडिया में सबसे अधिक हुई लेकिन जेल तो मलिक और देशमुख को भी जाना पड़ा।

मोदी सरकार का वादा था, ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा। शासन के 8 साल पूरे होने के बाद भी मोदी सरकार में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार सामने नहीं आया। जिस तरह ममता, केजरीवाल की वर्तमान और उद्धव ठाकरे की पूर्व सरकार में भ्रष्टाचार और गिरफ्तारी के मामलों की कतार लगी हुई है। उन मामलों को देखकर सीबीआई और ईडी की सक्रियता से किसी को क्या शिकायत होगी?

गुजरात में नई-नई सक्रिय हुई आम आदमी पार्टी दिल्ली के धोखे और फरेब के मॉडल को लेकर गुजरात गई है, क्योंकि उनके झूठ का मॉडल दिल्ली की तरह पंजाब में भी बिक गया। अब उन्हें लगता है कि यह गुजरात में भी बिक जाएगा।

पंजाब में तो सरकार बनने के बाद वहां के लोगों को पता चला कि उनकी सरकार के पास अपने कर्मचारियों को देने तक के पैसे नहीं हैं। अहमदाबाद में भी आम आदमी पार्टी ने प्रोपोगेंडा रचा कि स्थानीय पुलिस ने हमारे कार्यालय पर छापा मारा। समय रहते अहमदाबाद की पुलिस ने आम आदमी पार्टी के दावों का खंडन कर दिया। उनकी तरफ से कोई छापेमारी नहीं हुई थी। आम आदमी पार्टी के लोग अफवाह फैला रहे थे।

आम आदमी पार्टी के प्रपंच को समय रहते पंजाब ने भी समझ लिया है। प्रदेश की प्रमुख पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को ज्ञापन देकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से पंजाब की आबकारी नीति की जांच कराने की मांग की है। अनुमान है कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पंजाब के अंदर शराब की नीति में 500 करोड़ रुपये का घोटाला किया है। आरोप है कि दिल्ली की तर्ज पर ही पंजाब में भी घोटाला हुआ है।

जो यह कह रहे हैं कि सिर्फ विपक्ष की सरकार जहां है, वहां छापे पड़ रहे हैं। उन्हें इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि जहां छापे पड़ रहे हैं वहां नकद की बरामदगी और कागजात मिलने की बात सामने आ रही है या नहीं? यदि विपक्ष के वे नेता जिनके घर छापे पड़ रहे हैं, सच्चे हैं तो डर किस बात का? यदि वे भ्रष्ट हैं फिर उनका बचाव क्यों किया जा रहा है?

विपक्ष की सरकार जिन प्रदेशों में है, सिर्फ वहीं सीबीआई और ईडी के छापे पड़ रहे हैं। यह बात सच नहीं है। पिछले ही महीने गुजरात के एक व्यापारिक समूह के 58 ठिकानों पर ईडी की छापेमारी हुई और 1000 करोड़ रुपए के काले धन का खुलासा हुआ।

अब सवाल यह उठता है कि ईमानदारी की कसम खाकर आने वाली आम आदमी पार्टी तक भ्रष्टाचार से खुद को मुक्त नहीं रख पाई। चुनाव आयोग भी निष्क्रिय पड़े राजनीतिक दलों के पंजीकरण रद्द कर रहा है। ऐसे राजनीतिक दल भ्रष्टाचार का अड्डा बने हुए थे। चुनाव आयोग ने 253 पंजीकृत परंतु गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज पालिटिकल पार्टी) को निष्क्रिय घोषित कर दिया। अब ऐसे सभी राजनीतिक दल जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा निष्क्रिय घोषित किया गया है वे चुनाव चिह्न आदेश, 1968 का लाभ नहीं ले पाएंगे। इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

निर्वाचन आयोग ने कहा है कि 86 अन्य अस्तित्वहीन राजनीतिक दलों को सूची से हटा दिया जाएगा और उन्हें भी चुनाव चिह्न आदेश का कोई लाभ नहीं मिलेगा। नियमों की अवहेलना करने वाले इन सभी 339 दलों के खिलाफ चुनाव आयोग कार्रवाई करेगा। 25 मई 2022 से देखा जाए तो देश में ऐसे निष्क्रिय दलों की संख्या 537 हो गई है।

राजनीतिक पार्टियों की भूख खत्म होने का नाम नहीं ले रही और चुनाव साल दर साल महंगा होता जा रहा है। ऐसे में ईडी और सीबीआई के छापों का भय नेताओं को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है तो यह छापे सही हैं। इनकी गति और तेज होनी चाहिए। जिससे देश में ईमानदार आदमी एक बार फिर से सिर उठाकर जी सके।

 

 

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