हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
दीपावली के विविध स्वरूप

दीपावली के विविध स्वरूप

by डॉ. नीतू गोस्वामी
in अध्यात्म, विशेष, संस्कृति, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022
0

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दीपावली का त्यौहार भारतवर्ष के हर राज्य में मनाया जाता है। अंतर है तो बस मनाए जाने के तौर तरीकों का। भारत की यही विविधता उसे महान बनाती है तथा राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने में दीपावली जैसे जन-जन को जोड़ने वाले त्यौहारों की महती भूमिका है।

शुभम् करोति कल्याणं आरोग्यं धन सम्पदाम्

शत्रु बुद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमस्तुते

प्रकाश जीवन में सुख स्वास्थ्य और समृद्धि लेकर आता है जो विपरीत बुद्धि का नाश करके सदबुद्धि दिखाता है। ऐसी दिव्य ज्योति को प्रणाम है।

दीपावली के पावन पर्व पर सम्पूर्ण भारत में प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। इसको मनाने का प्रत्येक सम्प्रदायों, जातियों, वनवासियों आदि का अपना अलग अनूठा ढंग और अलग कारण, विविध मान्यताएं और परम्पराएं हैं। भारत के अलग अलग राज्यों शहरों गांवों में विविध धर्मों में यह त्यौहार अपनी विविधता रखते हुए भी एकता का ही सूचक प्रतीत होता है, क्योंकि सभी जन इस दीपों के उत्सव को मनाते हैं जो उन्नति, सुख, समृद्धि का प्रतीक है। आइए जानते हैं भारत में किस तरह यह पर्व मनाया जाता है।

पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में दीपावली

पूर्वी भारत में बंगाल, उड़ीसा, बिहार और झारखंड राज्य शामिल हैं। यहां उत्तर भारत जैसी दीपावली मनाई जाती है। पूर्वांचल में दीपावली से एक दिन पूर्व यम का दीप निकाला जाता है। दीपावली की सुबह सूर्योदय से पहले घर से दरिद्र भगाया जाता है। जिसमें पुराने सूप को किसी लोहे के औजार से पीटते हुए पूरे घर में घुमाया जाता है फिर उसको पूरे मुहल्ले के साथ तलाब के किनारे जलाया जाता है। बंगाल के कलकत्ता शहर में दिवाली से एक दिन पूर्व पूर्वजों के सम्मान मे 14 दिए जलाए जाते हैं और उस दिन चौदह प्रकार के साग खाने में सम्मिलित किए जाते हैं। दीपावली पर शाक्त पूजा यानी काली मां की पूजा अर्चना की जाती है। दीपावली के तीसरे दिन भाइयों को नये अनाज धान को कुचल कर उसके चंदन से टीका किया जाता है जो एक विशेष पर्व है और जिसे भाई फोटा कहा जाता है। ओडिशा में आद्य काली की पूजा का विशेष महत्व है। ओडिशा के आदिवासी समाज में दिवाली पूर्वजों को नमन करने का पर्व है जिसे कोरिया काठी भी कहते हैं। इसमें जूट की टहनियों को जलाया जाता है। उनका मानना है कि ऐसा करना पूर्वजों को न्योता देना है जिससे उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है।

झारखंड में आदिवासी दिवाली का त्यौहार एकदम शांत तरीके से मनाते हैं। झारखंड में इस त्यौहार को सोहराई के नाम से जाना जाता है। यहां के लोग इस अवसर पर दैनिक जीवन से जुड़ी चीजों की पूजा करते हैं। यहां की महिलाएं घरों की मिट्टी से पुताई करती हैं और विविध प्रकार की चित्रकारी यहां की जाती है। घर के पालतू जानवर की पूजा भी यहां प्रचलित है। असम, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश में इस दिन काली पूजा का महत्व है। यहां दीपावली की मध्यरात्रि तंत्र साधना के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।

पश्चिम भारत में दीपावली

समुंद्र तट पर बसे गोवावासियों की दीपावली देखने लायक होती है। पारम्परिक नृत्य और गान से शुरू होने वाली दीपावली पर पारम्परिक व्यंजनों का स्वाद भी महत्वपूर्ण है। यहां दीपावली पांच दिन मनाई जाती है और रंगोली का विशेष महत्व है।

गुजरात में सभी लोग दिवाली से पहले की रात को घरों के सामने रंगोली बनाते हैं, देशी घी का दीपक पूरी रात जलाए जाते हैं। फिर अगली सुबह उस लौ से उठे धुंए से तैयार काजल को महिलाएं अपनी आंखों में लगाती हैं। यह बहुत शुभ प्रथा मानी जाती है। महाराष्ट्र में दीपावली चार दिन की होती है। पहले दिन वसु बारस मनाया जाता है। जिसके दौरान आरती गाते हुए गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। दूसरे दिन धन तेरस पर बही खातों का पूजन किया जाता है। नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पूर्व उबटन कर स्नान करने की परम्परा है और चौथे दिन माता लक्ष्मी की पूजा कर दीपावली मनाई जाती है।

गुजरात में नर्मदा और वरुज आदिवासी समाज के लोगों द्वारा दिवाली एक या दो दिन की नहीं अपितु 15 दिन की मनाई जाती है। यह अच्छा स्वास्थ्य पाने का पर्व है। दिवाली के दिन यहां विविध प्रकार के वृक्षों की लकड़ियां इकठ्ठा की जाती हैं और बाद में इन्हें जलाया जाता है। इस अग्नि का धुंआ समाज में धनयोग और अच्छे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। गांव की युवा पीढ़ी प्रत्येक रात को पारम्परिक नृत्यसंगीत का प्रदर्शन करती है।

महाराष्ट्र के आदिवासी जो ठाकर कहलाते हैं, वह भी इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। ठाकर आदिवासी समाज में चिबड़ा के सूखे फल को इस्तेमाल करके लैम्प बनाए जाते हैं जिनको बाद में सूखे उपले के ऊपर रखा जाता है इस समय खासतौर से अनाज को बांस से बनी टोकरियों में रखा जाता है और दीपावली वाले दिन इस कांधा कहे जाने वाले अनाज की पूजा होती है। इस पर्व पर इस समुदाय में ढोल बजाकर खुशी व्यक्त की जाती है

उत्तर भारत में दीपावली

जम्मू एवं कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान में दीपावली पांच दिन की मनाई जाती है। यहां पहला दिन नरक चतुर्दशी कृष्ण से जुड़ा पर्व है, दूसरा दिन देवता कुबेर और भगवान धनतेरस से जुड़ा है। तीसरा दिन माता लक्ष्मी और भगवान राम से जुड़ा है तथा चौथा दिन गोवर्धन पूजा श्री कृष्ण से एवं पांचवां दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है।

इस पर्व पर इन क्षेत्रों में रात्रि में जुआ खेला जाता है जिसे शुभ माना जाता है। हरियाणा के गांव में लोग दिवाली कुछ अलग ढंग से मनाते हैं। इस त्यौहार पर घर की पुताई करवाई जाती है। घर की दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है, जिस पर हर सदस्य का नाम लिखा जाता है। पूरे आंगन में मोमबत्तियों और दिए से रोशनी की जाती है साथ ही घर घर से चार दीपक चौराहे पर रखे जाते हैं जिसे टोना कहते हैं।

उतराखंड में दीपावली देखने लायक होती है। उतराखंड के जौनसार आदिवासी क्षेत्र में पूरे देश के एक महीने बाद दिवाली मनाई जाती है जिसे बुधी दिवाली कहा जाता है। यहां यह पर्व दो दिन का दिन का होता है। पहले दिन गांव के सभी लोग पूरी रात जाग कर स्थानीय देवता की पूजा करते हैं। पूजा के बाद देवदार की लकड़ियों को जलाया जाता है। समुदाय के सभी लोग इसके आस पास लोकगीत गाते हुए नृत्य करते हैं। अगले दिन सब एक दूसरे के यहां चाय और चिवड़ा का नाश्ता करने जाते हैं। स्थानीय मंदिर में अखरोट चढ़ाते हैं। जिन्हें बाद में भक्तों को प्रसाद रूप में वितरित कर दिया जाता है। खेतों में रोशनी की जाती है और अच्छी फसल की कामना की जाती है।

दक्षिण भारत में दीपावली

दक्षिण भारत में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पंडुचेरी आदि राज्यों में दीपावली मनाई जाती है किंतु विशेष महत्व एक दिन पूर्व मनाए जाने वाले पर्व नरक चतुर्दशी का है। यहां एक विशेष परम्परा है जिसे थलाई दिवाली कहा जाता है। इसके अनुसार नवविवाहित जोड़ा दीपावली के दिन लड़की के घर जाता है जहां उसका स्वागत किया जाता है, उपहार दिए जाते हैं। वह जोड़ा एक पटाखा जलाते हैं और मंदिर दर्शन करने जाते हैं।

आंध्रप्रदेश में दीपावली में हरी कथा या भगवान श्री हरि की कथा का संगीतमय बखान कई क्षेत्रों में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर को मार डाला था। इसीलिए सत्यभामा की विशेष मिट्टी की मूर्तियों की पूजा अर्चना होती है।

कर्नाटक में दो दिन दिवाली मनाते हैं। पहला दिन अशिवजा कृष्ण और दूसरा दिन वाली पदयमी जिसे नरक चतुर्दशी कहते हैं, मनाते हैं। इसी दिन लोग तेल स्नान करते हैं।

तमिलनाडु में दीपावली पारम्परिक रूप से मनाई जाती है। इस दिन सुबह घर साफ किए जाते हैं नये कपड़े पहने जाते हैं और उन कपड़े पर हल्दी का एक टीका लगाया जाता है। इस दिन एक विशेष दवा तैयार की जाती है जिसे घर के प्रत्येक सदस्य को सबसे पहले खाना होता है जिसे लेह्यम कहा जाता है।

लेह्यम धनिया के बीज, काली मिर्च, अजवाइन, जीरा, गुड़, आरसी, कांधा, थिप्प्ली की छाल, सूखे मेवे, घी, शहद के मिश्रण से तैयार किया जाता है जो शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक और पाचक होती है।

मध्यभारत में मुख्यत: दो राज्य आते हैं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। यहां के आदिवासी क्षेत्रों में दीपदान किए जाने का रिवाज है। इस अवसर पर आदिवासी स्त्री एवं पुरुष नृत्य करते हैं। धर्म की दृष्टि से यदि देखें तो सभी धर्मों में दिवाली अलग अलग प्रकार से मनाते हैं।  हिन्दू इसे 14 साल के वनवास से भगवान राम की वापसी और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में और देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मनाते हैं।

जैन लोग अपने भगवान महावीर के आध्यात्मिक जागरण को चिन्हित करने के लिए मनाते हैं जो मानव जाति के अंधकार से ज्ञान का प्रतीक है। सिखों में अपने युवा आध्यात्मिक नेता गुरुगोविंद के पवित्र शहर अमृतसर में वापसी के उपलक्ष्य में दीपावली मनाते हैं। जब गलत कारावास से वह मुक्त हुए थे। बौद्ध धर्म में अपने सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने और शांति और ज्ञान के मार्ग का अनुसरण करने में निर्णय का सम्मान करने के लिए भी यह त्यौहार मनाते हैं। कुल मिलाकर देखें तो सभी धर्मों में भी दीपावली उन्नति, समृद्धि,सुख शान्ति का प्रतीकात्मक त्यौहार है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

डॉ. नीतू गोस्वामी

Next Post
दीपों का त्यौहार

दीपों का त्यौहार

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0